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Abhishek Singh
मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं, उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ, बादलों के सीस पर स्यंदन चलाता हूँ पर, न जानें, बात क्या है ! पर, न जानें, बात क्या है ! इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है, सिंह से बाँहें मिलाकर खेल सकता है, फूल के आगे वही असहाय हो जाता , शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से रामधारी सिंह दिनकर #NojotoQuote पुरुरवा और उर्वसी #nojotohindi #nojoto
__Jaislline__
सन्यास प्रेम को बर्दाश्त नहीं कर सकता, ना प्रेम सन्यास को , क्योंकि प्रेम प्रकृति है। और परमेश्वर सन्यास है।। -उर्वशी ©__Jaislline__ उर्वशी (भूमिका) #Mood
HintsOfHeart.
"इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है, सिंह से बाँहें मिलाकर खेल सकता है, फूल के आगे वही असहाय हो जाता , शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता। विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से !" ©HintsOfHeart. #रामधारी_सिंह_दिनकर -'उर्वशी' से।
vikash agarwal
चांद सी एक हसीना, उर्वशी रौतेला, जिसने अपने हुस्न को ही प्रमोट किया, नतीजा यह हुआ कि, एक बेहतरीन अदाकारा होते हुए भी, वह बॉलीवुड की, शो पीस हसीना बन कर रह गई।। ©vikash agarwal उर्वशी रौतेला।। #moonbeauty
Kumar Manoj Naveen
**पुरुवा-पच्छुआ** पुरूवा बयारिया में मन बउराता , लस- लस देहि करे,पोर- पोर अईठाय। भोरे-भोरे उठे में मन अंउजाला , मेहरारु जगावस त मन अनसाय। कहेली हमार धनिया उठी मोरे राजा, गरुवारी में कुबेर होता भुखहीं मालवा चिलाय, पुरुवा के हावा मन असकतियावे , मन करे दिन भर सूतले रहल जाय। पच्छुआ के हावा कब दोने आई , खरिहनिया के अनजा जाई ओसाय। पुरुवा के हावा में मन लरुवाला , पच्छुआ के हावा सब देला सुखाय। भले बहे पुरुवा चाहे बहे पछुआ, दूनो के बाटे आपन- आपन मिजाज। हावा के महातम त सब केहू जानेला, बिना हावा के जियलो ना जाय। *नवीन कुमार पाठक * #पुरुवा -पछुआ#
Umesh Kushwaha
उर्वी ! अकेली नही हो तुम अभी और कभी नही जैसे सूखे पत्ते टहनियों से टूटकर बिखर जाते है ठीक वैसे ही अभी और खालीपन है कहीं; शेष पीछे छोड़ जब कभी आगे बढ़ोगे तुम तो शायद वो तुम नही तुम्हारा अकेलापन हो; इन बेरहम सवाल से जब निकलोगे तुम तो पूछना खुद से कभी की सीपियाँ समंदर में यूं ही नही तैरा करती वो अपने अंदर रखती हैं कई मोतियाँ पर शायद उस यकीन को न पाओगे तुम; हर कोना ज़हन का उसे ढूंढता है जो यहीं कहीं की आओगे तुम पर शायद कभी नही; रियायतें मिली नही फिर उन खूबियों को जिन्हे मिलनी चाहिए थी कभी यकीनन पर शायद वो तुम नही, तो इन सूखी टहनियों में क्या शाखें आयेंगी कभी इतनी की लचीलापन हो फिर वो सारे दुःख सिमट जाएं एक जगह जिन्हे कभी याद न रखोगे तुम पर शायद ये मुमकिन नही कभी भी कहीं भी और हां अकेली नही हो तुम अभी और कभी नही! ©Umesh Kushwaha #उर्वी
सुरेश चौधरी
अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते ! अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः !! किसी जगह पर बिना बुलाये चले जाना, बिना पूछे बहुत अधिक बोलते रहना, जिस चीज या व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए उस पर विश्वास करना मुर्ख लोगो के लक्षण होते है. नीति सूक्त