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The Rathore Saab

अक्सर सुनाती है मां के बचपन की कहानी जब भी जाता हूं गले लगा कर रो लेती है नानी #TheRathoreSaab #writer

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अक्सर सुनाती है मां के बचपन की कहानी
जब भी जाता हूं गले लगा कर रो लेती है नानी अक्सर सुनाती है मां के बचपन की कहानी
जब भी जाता हूं गले लगा कर रो लेती है नानी
#TheRathoreSaab #Writer

Wazid Ali

#Poetry #Quotes #Art #पुराना #बचपन# स्कूलबारिशमेरी बचपन की हर कहानी सुनने वाला, अब किस के बचपन की कहानी में खोता होगा, स्कूल में पढ़ने वाले

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  #Poetry #Quotes #Art #पुराना #बचपन# स्कूल#बारिश#मेरी बचपन की हर कहानी सुनने वाला,
अब किस के बचपन की कहानी में खोता होगा,
स्कूल में पढ़ने वाले

Rupesh Soni

#बचपन#बचपन की कहानी #Talk

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Bablu Kumar

कहानी बचपन की #विचार

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बचपन की चोट,मार और अभी में बस इतना फर्क है कि:-
उस वक्त शरीर पर चोट लगता था और अभी दिल पर
उस वक्त रोते-रोते शाम हो जाती थी और अभी सुबह हो जाती है कहानी बचपन की

rahul Kumar Chaudhary

बचपन की कहानी

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।। याद बहुत आते हैं गुडे गुडियों  वाले दिन।। 



।। 1 रुपये मे 4 नेमचुस के पुरियो वाले दिन।। बचपन की कहानी

Kumar Manoj Naveen

कहानी बचपन की

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*पुराने माँ -बाप* 
वो दिन भी क्या दिन थे, जब खेल के देर से  छुपकर आते थे हम घर। इंतजार में ही रहते थे, पापा गुस्से में इस कदर।उनकी डांट -मार का होता था इतना डर ,हिम्मत कहाँ थी हममे ,उनके आगे जाते थे हम सिहर। 
वो डर व सिहरन बहुत याद आते हैं। 
  याद मुझे है जब गाँव पर नाच का था प्रोग्राम, हिम्मत थी कहाँ कैसे करे देखने जाने का इंतजाम।  माँ को हमने मनाया, नाच प्रोग्राम की महिमा बताया,  बड़ी मुश्किल से उनने पापा को समझाया, जैसे-तैसे उनको भी थोड़ा सा तरस आया,तब एक घंटे का परमिशन आया।
 कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही , पापा का बुलावा आया। बोले एक घंटा हो गया, चलो पढ़ने का समय हो गया। 
वो नाच प्रोग्राम देखे बगैर घर वापस आ जाना ,बहुत याद आते हैं। 
  वो दिन भी क्या दिन थे, 
 घूमने और खेलने के लिए मार खाना, कम अंक आने पर ताना खाना,कभी गलती से पेंट-शर्ट पर चश्मा लगा लो तो हीरोगिरी का भूत भगाना।  
वो डर और तानें बहुत याद आते हैं। 
 गाँव का बाजार करना ,सिर पर रखकर गेहूँ का पिसाना, मार खाने के डर के  बाद भी बागीचे में भागकर खेलना। कुछ भी कहें  बहुत याद आते हैं। 
  माँ की डांट में छुपा प्यार , पापा की मार में छुपा संस्कार, जिसके माँ -बाप हो ऐसे फिर उन्हें और क्या है दरकार । 
ये प्यार और संस्कार बहुत याद आते हैं।  
 ये उनकी डांट-मार का ही है असर,
 संघर्षरूपी जीवन पथ पर है 
 अग्रसर ।
 कठिनाइयां भी हो रही हैं बेअसर।विचलित नहीं है संस्कार की डगर।
 अच्छे से हो रहा है गुजर-बसर। 
 काश आजकल के मां-बाप भी होते कुछ इस तरह अगर.......
    मनोज कुमार (नवीन) कहानी बचपन की
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