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कशिश आपकी कशिश लगी कुछ ऐसी तुम्हारे नाम धुन की श्याम-श्याम जपता रहे ये मन बाँवरा, सुध-बुध जाने कहाँ खो गया जबसे तुम्हारी शरण लगन लगी, चँहु-दिशा अब श्याम ही श्याम नजर आए दूजा न कोई काम याद आए,कैसी लगन लगी मेरे श्यामा दिन की शुरुआत तुम्हारे ही गुणगान से होती, जग ये रमा सांसरिक प्रेम में मगर हम तो रमे हमारे श्याम भक्ति के प्रेम में, हर रंग जीवन का गहरा लगे जबसे मस्तक पर हमारे श्याम चरण धूलि लगी, संसार से चाहे कुछ न मिला तुम्हारी भक्ति से इस तरूणा का जीवन सफल हुआ, हारी हूँ ख़ुद से ही इस अभागी को सहारा देते रहना, रमज़ान कोरा काग़ज़ 2022 अठारहवीं-रचना👉कशिश_आपकी #tarunasharma0004 #hindipoetry #trendingquotes #KKRकशिशआपकी #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ानक
आलोक कुमार
आखिरी फैसला मित्रों....बस यूँ ही चलते-चलते अपने देश में विभिन्न सरकारों द्वारा किसी सन्दर्भित विषय पर लिए गए फैसलों में से किन फैसलों को आप चिरस्थायी काल तक विद्यमान रहने एवं सभी भारतवासियों द्वारा स्वीकार्य फैसला मानते हैं और जिसे "आख़िरी फ़ैसला" की संज्ञा देने की बात मन में दौड़ाने की कल्पना कर सकें. शायद ऐसा कोई फैसला दूर-दूर तक अब तक नजर आया ही नहीं. तो फिर आख़िरी फ़ैसला का तो जिक्र करना बेवकूफ़ी और मूर्खतापूर्ण भरी ही परिपाटी होगी. तो फिर "आख़िरी फ़ैसला" का प्रारुप, आलेख एवं श्रोत का माध्यम किसे बनाना उचित होगा. जैसा कि अब तक संविधान रूपी मानव के दिशानिर्देशों एवं प्रावधानों के आधार पर "आख़िरी फ़ैसला" दिया जाता रहा है, जो कि एक-दूसरे के लिए वर्ग के आधार पर खुद में ही अलग-थलग हुआ है. अब सत्तर साल गुज़र चुके हैं, जो कि वर्तमानकालीन वातावरण के अनुसार मानवों के औसत उम्र 60 वर्ष से 10 वर्ष ज्यादा भी हैं. इसलिए अब नए वातावरण के अनुसार संविधान रूपी मानव की पदस्थापना करना अत्यावश्यक होना भी लाज़िमी हो गयी है. मेरा मानना है कि यह इक्कीसवी शताब्दी की पहली "आख़िरी फ़ैसला" बन जाएगी. सधन्यवाद............... "इक्कीसवी शताब्दी का बड़ा ही निहितार्थ एवं चरितार्थ पहला 'आख़िरी फ़ैसला'"
Jayant Maurya
Jitendra Rathor
ajay Pandey
pt.विकास kumar शर्मा
Kapil Kumar
"बचपन गुजरा था जहाँ, अब वो वीरान पड़ा है। मेरे गाँव की मिट्टी में उदास चौबारा ड़ेरा खड़ा है।" विश्व पर्यटन दिवस पर शुभकामनाएं। तस्वीर मेरे गाँव के चौबारे डेरे (मंदिर) की है। यहाँ 10 वीं शताब्दी में खजुराहो शैली में बने परमारकालीन मंदि
Brajesh Kumar Bebak