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Anmol Dubey (nikky)
न मांझी न रहबर न हक में हवायें है कश्ती भी जर्जर ये कैसा सफर है? ✍️अनमोल दुबे (निक्की ) न मांझी न रहबर न हक में हवायें है कश्ती भी जर्जर ये कैसा सफर है??
Rajesh rajak
देखा है मांझी को दरिया में नाव खेते हुए, पार लगाए हैं उसने जाने अंजाने , भूले भटकों को,झेले है कई मौसम,अनेकों तूफ़ान,बो भी रोज अपनी जान की परवाह किए बिना,क्यों कि बो मांझी है। एक तू भी मांझी था मेरे जीवन का,और तूने मेरी नाव को साहिल नहीं दिया। मांझी
Kalpana Srivastava
अगर मुश्किलें बलवान होती तो कोई मांझी जन्म नहीं लेता.. एक ने पहाड़ तोड़ा तो दूसरे ने लहरों का रुख मोड़ा.. ©kalpana srivastava #मांझी
Ganesh vinayak
गर तरिकी से मिलती कलेजे को ठंडक तो जरूरत क्या परवाने को मिटने की शमा पर कश्तियां डुबोए मांझी ही दरिया में तो जरूरत क्या जाने की साहिल पर ______ganesh vinayak मांझी
CK JOHNY
बिना रहबर के चले थे जो मार्ग मेँ ही छले गए थे वो। बिन गुरु मंजिल न मिलती रुहानियत बगिया न खिलती। भेदी से भेद जिन जिन लिया बेरोकटोक ठिकाने पहुंचे वो। वक्त बदलेगा उसी खुशनसीब का मन मत छोड़ गुरमत पे चलेगा जो। बिना रहबर के चले थे जो मार्ग में ही छले गए थे वो। रहबर
parmod bagri
पहाड़ से भी टकराया जा सकता है नामुमकिन को मुमकिन बनाया जाता है सच्चे प्यार की तो यादें ही काफी है पहाड़ को चीरकर रस्ता बनाया जा सकता है सच्चे प्यार को अगर सताया ना होता पत्थर को अगर गरूर आया ना होता बच जाता तु अगर सच्चे प्यार के बीच में आया ना होता Parmod bagri दशरथ मांझी परिनिर्वाण दिवस पर विशेष दशरथ मांझी
आकिब सईद
बड़ा शौक था रहबर बनने का सो रहबर बना बैठा हूं, अपनी सिसकियों में यादों का समंदर समेटे बैठा हूं, रहोगी तुम आबाद मेरे बगैर भी यह सोचकर, तुम्हारा हर जख्मों सितम इन सिसकियों में पिरोए बैठा हूं, बड़ा शौक था रहबर बनने का सो रहबर बना बैठा हूं। #रहबर
बेबस
नशे काटकर मोहब्बत का दिखवा नहीं किया है.... पहाड़ काटा हे ,मोहब्बत के नाम का रास्ता दिया है... दशरथ मांझी
CK JOHNY
कहीं भी जाने की जरुरत नहीं उस राही को जिसे रहबर मिल गया, भटकनों से बच गया वो इस कद्र मंजिल से हुआ रूबरू जिस खुशनसीब को जिंदगी में मुर्शिद कामिल मिल गया। खुद से वाकिफ हुआ जो वो खुदा से हुआ वासिल इस भवसागर में नाखुदा सतगुरु जिसे हासिल हो गया । अब खौफ क्या डूबने का मुझे भंवर या समुंदर में, पतवार भी तू कश्ती भी तू तेरी बेखुदी में मुझे साहिल मिल गया। ख्वाब में भी न था जिस जहाँ का सहल होना मुझे अपनी रहमत से मेरे महबूब तूने ऐसा मेरा मुकद्दर लिख दिया। सर को झुकाऊँ कहाँ किस तरफ करुँ सिजदा तुझे, तेरी मुहब्बत का गुल हर तरफ हर जगह खिल गया। अब क्या माँगू क्या अरदास करुँ कैसे फैलाऊँ झोली, बिन बोले बिन माँगे मेरा होता है पूरा ऐसा मुझे वो काबिल कर गया। शुक्र शुक्र है तेरा हरजाई साँस पुख्ता जिहन में इतवार तेरा, तेरी सोहबत तेरे सत्संग तगुरू सेवा से जीवन मेरा संवर गया। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 03.07.2020 रहबर