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mau jha
दिल में उसके एक तमन्ना बाकी है अभी कहानी का एक पन्ना बाकी है वो लक्ष्मी है तुम भगवान तो बनो वो सीता है, तुम राम तो बनो, हर जुल्म पर जो बोल उठे ऐसी आवाम तो बनो,किसी की चीख किसी की कराह लिखूँ एक मुस्कुराते हुए चेहरे की सिसकती हुई आह लिखूँ क्योंकि ये सब कुछ उसके अंदर है वो औरत नहीं, समंदर है. ©mau jha नारी कविता
mau jha
पाई-पाई जोड़कर वो तुम्हारे घर को बनाती है हाथ उठाते उसपर तुमको शर्म नहीं आती है,भूख उसे भी है पर खाना उसने खाया नहीं पता लगाओ देखो शायद पति दफ्तर से आया नहीं ,हर दिन की देरी उसके लिए समस्या भारी है इसी समर्पण सहित तपस्या उसकी जारी है भाग्य मनाओ फिर भी तुमको छोड़ वो नहीं जाती है हाथ उठाते जिसपर तुमको शर्म नहीं आती हऐ ©mau jha नारी कविता
मनुस्मृति त्रिपाठी
पानी और स्त्री एक समान जितने बड़े घर में रहती हैं उतनी ही साज़ सज्जा के साथ पेश की जातीं हैं पर कुछ भी हो एक वक़्त के बाद नारी और नाली एक ही नज़र आती हैं,,नर्गिस बेनूरी नारी और नाली
Ajay Chavan
खुद को तलास्ते तलास्ते जिंदगी कम पडगयी रास्ते चूनने मै ही सारी जिंदगी निकल गयी जब लगा था चलने मंजिल के रास्ते तब मौत ने घर पे दस्तक देते हुये कहणे लगी चल वक्त हो गया चलने का मायुश हो कर मै ने मौत से क हा जरा रुख न्हीं सक ते क्या मौत हस कर बोली सारी उम्र निकाल दीं खुद को तला सने मै अब क्या करलेगा चंद पलो मै...... वक्त के पहले सोचो ओर वक्त रहते पुरा करो. Ajay chavan समय किसी के लिये नाही रुकता..
Geeta Sharma pranay
मै नारी अबला ! कैसे अपने आप को कह दूँ ? बस! थोड़ा-सा सुख मैने क्या चाह लिया, सब के लिए मै कामचोर ही हो गई, ? मै नारी अबला! हर क्षेत्र में मैं आत्म-निर्भर बनी, अपनी मेहनत से, कुछ देर थक कर क्या बैठी, मै तो सब के लिए आलसी ही हो गई? मै नारी अबला ! हर क्षेत्र में, कभी माँ, तो कभी पत्नी बनकर मुझसे ही बार-बार अग्नि-परीक्षा की लालसा होने लगी, बस! क्या यही जीवन हैं मेरा ? मै नारी अबला! कैसे समाज के ठेकेदारों ने मुझ पर आरोप लगा दिया? मैरे द्वारा किया गया त्याग-तप को ही गलत ठहरा दिया ? क्या मै बस भोग की वस्तु हूँ? मै नारी अबला! कैसे मैं खामोश हो जाऊ,, " मै शर्मो-हय्या की प्रति-मुर्ति क्या बन बैठी, मै तो स्वयं के लिए निर्बल हो गई? मै नारी अबला? कैसे मै सदियों से लगा कलंक अभी भी अपने मस्तक पर धारण करूँ ? मैने आवाज़ क्या उठाई , तो सारे पुरुषत्व को ठेस लग गई ? हाँ "हूँ मै अबला " बस! अपनी ममता के आगे, और अपने दाम्पत्य जीवन व घर-परीवार के आगे, तभी तो मैं माँ और पत्नी बनकर सारी बुराई का ठीकरा अपने ऊपर ले लेती हूँ | मैं नारी अबला! कैसे अपने आप को कह दूँ ? गीता शर्मा 'प्रणय' 30.05.2020 मै नारी अबला #कविता
FAUJI MUNDAY SOHANLAL MUNDAY
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