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Vidhi

दिल की दिल्ली सूखी बंजर बेहाल
पैरों में पड़ी पायल भीगी डूबी मरती हुई
सिर्फ दो दिन पहले चली एक गोली
दो शाम बाद माता घुमाई गई निर्वस्त्र
वो अपने मजमें जलसों में डूबे
नाले में ढूंढ़ रहे ज्ञान विज्ञान चमत्कार
दे रहे प्राचीन हिन्दू सभ्यता का विश्व ज्ञान
और एक वृद्ध सामंती की लाश दबा कर
सुनाते रहे लाल किले से अगले चुनाव का आह्वान
 #राजनीति #फासीवाद #संघी #YQbaba #YQdidi

BIDISH GOSWAMI

फासीवाद

फासीवाद सिर्फ तभी नहीं
जब ज़ुल्मो से अपना केहर छा दू,
तब भी तो कहलाएगा ये
खुद को जब मैं खुदा मान लू।

फासीवाद सिर्फ तभी नहीं
जब कानून का मज़ाक बनाता हूं,
तब भी तो कहलाएगा ये
जब बलात् नए कायदे अमल में लाता हूं।

फासीवाद सिर्फ तभी नहीं
जब मैं भाषण देने जाता हूं,
तब भी तो कहलाएगा ये
जब आवाज़ उनकी बंद करवाता हूं।

फासीवाद सिर्फ तभी नहीं
जब में गिद्ध की तरह शिकार करू,
तब भी तो कहलाएगा ये
जब तहजीब अपनी महान और बाकी सब तुच्छ कहूं।

फासीवाद सिर्फ तभी नहीं
जब में बस तबाही पे उतर आऊ,
तब भी तो कहलाएगा ये
जब मैं इन तरीकों को पावन पाऊं।
 #फासीवाद #fascism #anti #revolt 
#raiseyourvoice

Udey Che

फासीवादी सत्ता के खिलाफ जनता का हथियार कलम #nojotophoto

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 फासीवादी सत्ता के खिलाफ जनता का हथियार कलम

देवेन्द्र साहु

फासीवादी सरकार को ध्वस्त करें! भाकपा(माले) को मजबुत करें!! #nojotophoto

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 फासीवादी सरकार को ध्वस्त करें!
भाकपा(माले) को मजबुत करें!!

मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *

कभी-कभी लगता है कविता हम कवियों का ढोंग है हम होते है कुछ और पर कविता लिखते समय कुछ और हो जाते हैं क्यों नहीं लिख पाते हैं बिना लाग-लपेट #poem

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कभी-कभी लगता है  कविता 
हम कवियों का ढोंग है
हम होते है कुछ और
पर कविता लिखते समय 
कुछ और हो जाते हैं
क्यों नहीं लिख पाते हैं
बिना लाग-लपेट के 
आज पूंजीवाद पनप रहा है 
फासीवाद का सहारा लेकर
कब तक छायावाद की छाँव में रहेगे
क्यों डरते हैं हम यथार्थवाद से
कठिन समय में और.कठिन होता
कविता का होना
काफी नहीं है कविता के लिए सिर्फ रोना
या सिर्फ विरोध, आक्रोश या गाली…
कविता को अपने शब्दों के औजार को 
दुरुस्त और  पैना करना होगा
शायद किसी को आपत्ति हो
मुझपे नहीं, मेरे शब्दों पर उनके मिजाज पर,
उनके  बड़बोले पन पर 
कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सच्चाई यही है
और इसे कहने में
सिर्फ कविता ही समर्थ है ।।

©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) कभी-कभी लगता है  कविता 
हम कवियों का ढोंग है
हम होते है कुछ और
पर कविता लिखते समय 
कुछ और हो जाते हैं
क्यों नहीं लिख पाते हैं
बिना लाग-लपेट

Kh_Nazim

बंदरबांट...! धुँआ उठ रहा है उस ठण्डी राख़ से, जिसमें जलन का आगरा ठंडा पड़ा है फैल रहा है वो धुंध की तरह आवोहवा में जहाँ हर कण का जीवन बसा है #कविता #khnazim

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