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भाँति-भाँति के नृत्य ~~~~~~~~~~~~~~~ भाँति-भाँति के प्रदेश यहाँ भाँति-भाँति के नृत्य कला,भावों और मुद्राओं का संगम, होता इसमें ध्वनि संगीत का होता समावेश, नृत्य कला की है अदभुत पहचान, अपने-अपने क्षेत्रों के रंग संस्कृति दिखलाते नृत्य कला है महान,साज-सज्जा और श्रृंगार और प्रादेशिक वस्त्र से नृत्य कला का सुगम अनुभव कराते,गीत-लोकगीत सूफ़ी,घूमर, गरबा,गिददा,भंगड़ा, भाँति-भाँति की नृत्य शैली,भाँति-भाँति की भाषा शैली,करती अपना-अपना योगदान, अपने-अपने प्रदेश की प्रतीकता को प्रदर्शित है करती, देश विदेश में भारतीय नृत्य-संस्कृति को सम्मान है दिलाते सभी नृत्य कलाकारों को है सलाम, भाँति-भाँति की नृत्य शैली कला के रंग बिखराती जीवन को सरगम-मय बनाने का है आधार, अपने प्रदेश की प्रतीकता को है दर्शाती प्रादेशिक सौंदर्य का
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
भाँति-भाँति के पुष्प से , महक रहा है बाग । फ़ागुन के दिन आ गये , कोयल गाये राग ।। मन्द-मन्द चलने लगी , शीतल आज बयार । सबके मन को मोह ले , देखो यही बहार ।। करें प्रकृति से हम सभी , अब अपनी पहचान । खट्टे मीठे बैर से , सब लगते इंसान ।। भाँति-भाँति के पुष्प हैं , भाँति-भाँति के नाम । बिना स्वार्थ सब कार्य हों , देव शरण हो धाम ।। फ़ागुन के फल देख लो , खट्टे मीठे बैर । कहते हैं मिलकर रहो , मत कर अपने गैर ।। मन आनंदित हो रहा , अब पीपल की छाँव । फ़ागुन का आनंद भी , मिलता जाकर गाँव ।। भाभी साली पर लिखे , सब फ़ागुन के गीत । लाल गुलाबी रंग में , भूल गये मनमीत ।। जीजा जी जब हो खड़े , कुर्ता धोती साट । चुपके से फिर रंग को , रख देना तुम खाट ।। २२/०२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR भाँति-भाँति के पुष्प से , महक रहा है बाग । फ़ागुन के दिन आ गये , कोयल गाये राग ।। मन्द-मन्द चलने लगी , शीतल आज बयार । सबके मन को मोह ले , द
कविवर
Charu
रंगीन दुनिया की वास्तविकता जानी तो अपना बेरंग होना सच्चा लगा.. ©charu रंगीन दुनिया - "लोग भाँति-भाँति के मिलेंगे यहां कुछ अपने काम से मतलब रखने वाले कुछ बनते कामों में पुरज़ोर अड़ंगा लगाएंगे जो पीछे मुड़कर देखा
kumaarkikalamse
पलंग, गद्दे, तकिये को पूरा चादर करती है, गरीब, अमीर, सबका पूरा आदर करती है! सर्दी, गर्मी, सावन सबमें डटकर रहती सदा, छोटी, बड़ी छत, सबका पूरा आदर करती है! झोपड़ी की चाय में दूध कम, महल में ज्यादा, पकाने वाली लौ, सबका पूरा आदर करती है! कोई कुछ नहीं पाता, कोई सब पा है जाता, मसान की धरती, सबका पूरा आदर करती है! भाँति-भाँति के लोग, नाना-नाना प्रकार की बातें, ऊपर वाली कुदरत, सबका पूरा आदर करती है! पलंग, गद्दे, तकिये को पूरा चादर करती है, गरीब, अमीर, सबका पूरा आदर करती है! सर्दी, गर्मी, सावन सबमें डटकर रहती सदा, छोटी, बड़ी छत, सब
vishnu prabhakar singh
भाग कर जाओगे कहाँ जीवन ही जीवन है यहाँ बाहें फैलाये हुए व्यपार में निकष के ही शिष्टाचार में भाँति-भाँति के अवसर यहाँ भली भाँति ये सहचर जहाँ तुम्हारा पहलू सबल आजाद है जीवन एक सफल आवाज है सौजन्य सहजता बिखेरता है संसर्ग ही से यह, निखरता है सुख-दुख का साथी है विचार का सहपाठी है जीवन सर्वभूत है इसकी प्रकृति अटूट है! तुम तो ठहरे परदेशी,साथ क्या निभाओगे समय वाली गाड़ी से,तुम निकल जाओगे। भाग कर जाओगे कहाँ जीवन ही जीवन है यहाँ बाहें फैलाये हुए व्यपार में
Anita Saini
पूरब हो या पश्चिम उत्तर हो या दक्षिण सारे जहाँ से अच्छा हमारा प्यारा देश है। तुलसी पीपल बरगद पूजे जाते नागों को भी यहाँ दूध पिलाते कण कण में ईश्वर का समावेश वन उपवन की यहाँ गाथा विशेष (बाकी रचना अनुशीर्षक में) पूरब हो या पश्चिम उत्तर हो या दक्षिण सारे जहाँ से अच्छा हमारा प्यारा देश है। तुलसी पीपल बरगद पूजे जाते नागों को भी यहाँ दूध पिलाते कण कण
Ravindra Singh
'होली आ गयी’ होली आ गयी सारे मोहल्ले में मेरे ख़ुशी है छा गयी। पर मेरा दिल अभी भी उदास है, इस पावन पर्व पर तू क्यूँ ना मेरे पास है। मेरा भी जी करता है तुझे गुलाल लगाऊँ, तू रोके बहुत फिर भी लगा रंग तुझे सताऊँ। तू दुबकती फिरे पूरे घर में बचने मुझसे , ढूँढ तुझे, भाँति-भाँति रंगों से तुझे भिगाऊँ। जब बैठ जाए थक हार कर तू, उठा गोद में तुझे भरे रंगों की नाँद में तुझे गिराऊँ। सुबह से लेकर शाम तक करूँ परेशान तुझे, रात में उतारने थकावट तेरी,तेरे पैर दबाऊँ। तू नहीं पास, तेरी कल्पना ही सही, तेरी हर अदा मुझे कल्पना में भी भा गई। होली आ गयी, सारे मोहल्ले में मेरे ख़ुशी है छा गयी। पर मेरा दिल अभी भी उदास है, इस पावन पर्व पर तू क्यूँ ना मेरे पास है। ©Ravindra Singh #Colors होली आ गयी’ होली आ गयी सारे मोहल्ले में मेरे ख़ुशी है छा गयी। पर मेरा दिल अभी भी उदास है, इस पावन पर्व पर तू क्यूँ ना मेरे पास है।
vinay vishwasi
मन का मीत (एक गीत)- गुनगुनाऊँ मैं जो हर पल, मिला न ढंग का गीत कहीं। संग-संग चलूँ मैं हरदम उसके, मिला न मन का मीत कहीं। (पूरा गीत caption में पढ़ें) #विश्वासी मन का मीत गुनगुनाऊँ मैं जो हर पल मिला न ढंग का गीत कहीं, संग-संग चलूँ मैं हरदम उसके मिला न मन का मीत कहीं।
Sonam kuril
दुनिया में भाँति भाँति के मनुष्य है , कुछ भ्रमित है कुछ चकित है , कुछ ज्ञानी कुछ अज्ञानी है , अन्धविश्वास, पाखंड का ऐसा चक्र्व्यूह रचा है , जो तोड़ सके वही अर्जुन है , मानवता मर सी गयी है , इंसानियत सिसकियाँ ले रही , रो रही रूह धरती की , की सारी सृष्टि को आगोश में अपने ले रही , साधुओं का बोल बाला है , जोगिया बन औरत का जिस्म लूट रहा , राजनीति के दंगल में, जनता का मरना तय रहा , जो देश बचने निकला था , वही देश को लूट रहा , ये दुनिया जंग का मैदान हुई , अपना ही अपने का घर तोड़ रहा , कौन अपना कौन पराया है , यहां हर कोई मतलब से बोल रहा , जो गरीब थे गरीब ही रह गए , ऊँचे तबकों में ऊँचे ही पहुंच गए , जिसे न प्यार मिला वो प्यार ढूंढ रहा , जिसे मिला उसे कदर नहीं , प्यार नहीं जिस्म का व्यापार हुआ , जैसे सारा संसार कोठा हुआ , कलयुग देखो कैसा मुँह फाड़ रहा , अपना ही अपने का दुश्मन हुआ, अभी वक़्त है संभाल सको तो संभल जाना , कल हो न हो किसे पता | दुनिया में भाँति भाँति के मनुष्य है , कुछ भ्रमित है कुछ चकित है , कुछ ज्ञानी कुछ अज्ञानी है , अन्धविश्वास, पाखंड का ऐसा चक्र्व्यूह रचा ह