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Divyanshu Pathak

#महावीर_जयंती की सभी देश वासियों को शुभकामनाएं। #21_दिन_का_लॉक_डाउन के साथ आज हम सब corona से जूझ रहे है।एक उम्मीद है कि एक दिन इसे ख़त्म कर #पाठकपुराण #क्रमशः_01_महावीर_जयंती

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महावीर ने कहा कि
जीव भारी होता है प्रणतिपात से,
हिंसा करने से।
जीव भारी होता है हिंसा की स्मृति से।
हिंसा की स्मृति ही वास्तविक हिंसा है।
क्रियमाण हिंसा उतनी बड़ी नहीं है।
हिंसा के संस्कार की स्मृति बड़ी हिंसा है।
वही हमें भारी बनाती है।
हमारी हिंसा उस स्मृति को और भारी बना देती है।
यदि मन में हिंसा का संस्कार न हो
और हिंसा का संस्कार स्मृति रूप में जाग्रत न हो तो
वर्तमान की हिंसा संभव ही नहीं है।
जो भी वर्तमान में हिंसा कर रहा है,
उसके मन में हिंसा का संस्कार है।
उस हिंसा के संस्कार की स्मृति जाग्रत हो रही है।
अत: हिंसा का मूल वर्तमान घटना से ज्यादा हिंसा की स्मृति है।
घटना तो परिणाम है। #महावीर_जयंती की सभी देश वासियों को शुभकामनाएं। #21_दिन_का_लॉक_डाउन के साथ आज हम सब corona से जूझ रहे है।एक उम्मीद है कि एक दिन इसे ख़त्म कर

pandeysatyam999

यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्। स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥ जिसे किसी के प्रति प्रेम होता है उसे उसी से भय भी #nojotophoto

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 यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्। स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥ जिसे किसी के प्रति प्रेम होता है उसे उसी से भय भी

Shivam Mishra

मां हिन्दी को हिन्दी दिवस पे समर्पित जय हिन्दी मां मां हिन्दी तेरी क्या बात कहूँ मां को मां जाना सबसे पहले तुझसे अब इस से ज्य़ादा क्या

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मां हिन्दी को हिन्दी दिवस पे समर्पित 

जय हिन्दी मां 

मां हिन्दी तेरी क्या बात कहूँ 
मां को मां जाना सबसे पहले तुझसे अब इस से ज्य़ादा क्या  जज़्बात कहूँ 

जब भी हुआ प्रेंम य़ा करनी हुई कोई पूजा 
मां हिन्दी तुझसा माध्यम रास ना आया मुझको दूजा l

हिन्दी जैसी भावनायें  किसी और भाषा मे व्यक्त नहीं होती 
मां हिन्दी तू तो बचपन से दिल से जुड़ी है सीख जायें हम कितना भी हिन्दी हमारी श्वासों मे बसती है वो त्यक्त नहीं होती 

मां हिन्दी तेरे कम शब्दों मे इतना होता है इतना अर्थ 
क्यूंकी महल कितने भी बना लो विदेशी भाषाओं के भूमि हिन्दी की ना हो तो सब है व्यर्थ l

ऐ मां हिंन्दी तुमको नमन है ऐसे ही हमारे जीवन को अर्थ दो 
अपने बच्चों को ऐसे ही सामर्थ्य दो l

शिवम मिश्र 
हिन्दी पुत्र l मां हिन्दी को हिन्दी दिवस पे समर्पित 

जय हिन्दी मां 

मां हिन्दी तेरी क्या बात कहूँ 
मां को मां जाना सबसे पहले तुझसे अब इस से ज्य़ादा क्या

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं ज्ञान-सार हूँ।। मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ, अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ। मैं समय की हूँ गति, पुरुषार्थ की मैं हूँ मति। मैं सार हूँ म #Poetry #kavita #tourgurugram #tourdelhi

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मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ मैं ब्रह्म हूँ,
मैं सत्य का स्तम्भ हूँ।
माथे मुकुट मोती जड़ित,
मैं हूँ प्रत्यंचा एक तनित।
मैं हूँ धरा अम्बर भी मैं,
एकाकी हूँ मैं अंतर भी मैं।
संशय रहित, कभी द्वन्द्व हूँ,
श्लोक मन्त्र और छंद हूँ।
रावण कभी हूँ मैं प्रपंचित,
ज्ञान संचित ज्ञान वंचित।
यज्ञ हूँ मैं अश्वमेधी,
मैँ बली पूजा की बेदी।
मैं प्यास और मैं ही क्षुधा,
मैं ही गरल मैं ही सुधा।
मथ के सागर मैं हूँ निकला,
अमृत हूँ मैं विष मैं हूँ पिघला।
भाव उदित मैं काव्य जनित,
शत्रु सखा मैं हूँ अमित।
मैं कालजयी नश्वर भी मैं,
दानव भी मैं ईश्वर भी मैं।
मैं परम् और मैं हूँ खण्डित,
मैं स्वछंद और मैं ही बन्दित।
युधिष्ठिर मुख का सत्य भी,
मैं ही स्वीकार्य और त्यक्त भी।
जिह्वा-ध्वनित वाणी भी मैं,
दान-रहित पाणी भी मैं।
कर्ण भी मैं मैं कुंती हूँ,
कभी सार्थक किंवदन्ति हूँ।
स्तोत्र जटिल तुलसी सरल,
पाषाण वज्र जल सा तरल।
आदि अनन्त मैं रोध हूँ,
स्नेह मैं और क्रोध हूँ।
दुर्बुद्धि भी कभी बोध हूँ,
मानवजनित कभी शोध हूँ।
यम भी मैँ और तम भी मैं,
खुशियों की लड़ी मातम भी मैं।
मैं हक हूँ और हुंकार हूँ,
आर्तनाद और पुकार हूँ।
आजन्मा और मैं अमर्त्य हूँ,
मैं ही परम एक सत्य हूँ।
मैं जीत की हूँ गर्जना,
मैं शंखनाद हूँ अर्चना।
मैं तो ज्वलित अंगार हूँ,
मैं जीव-मृत्यु हार हूँ।
व्याधी भी मैं उपचार हूँ,
मैं ही तो जीवन सार हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ म
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