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Ajit Prajapati
vikas thakur
छोड़ दिया टहलना गली मोहल्लों में, इश्क भी अब तो डिजिटल हो गया है!📱 कौन करता है अब बातें रूह की, अब सब कुछ फिजिकल हो गया है!💏 अब नहीं उमरते जज्बात चिट्ठियों में, जमाना कुछ ज्यादा ही प्रैक्टिकल हो गया है!🧐 किस्से कहानियों में मैजिक नहीं अब, अब तो सोचना भी लॉजिकल हो गया है!🤔 जमकर इस्तेमाल करेंगे दिमाग वाले तेरा, ऐ दिल! तू क्यों इतना इमोशनल हो गया है!😔 छोड़ दिया टहलना गली मोहल्लों में, इश्क भी अब तो डिजिटल हो गया है!📱 कौन करता है अब बातें रूह की, अब सब कुछ फिजिकल हो गया है!💏
Adv.Poonam Bharti
एक किताब है नाम the eyes of darkness 1981 को पब्लिश हुई थी इसमे लिखा है कि कॅरोना वायरस को चीन ने अपने शहर वुहानके एक लैब में सबसे छुपा कर बनाया था ,बाद में चीन इसको use करेगा अपनी गरीब लोगों की आबादी कम करने के लिए जिससे कि उसे सुपर पावर बनने में आसानी हो ,और इस बुक में कॅरोना वायरस का नाम वुहान 400 के नाम पर है इस किताब में पहले ही बता दिया है कि आगे चलकर चीन इस वायरस का उपयोग करेगा बायो लॉजिकल हथियार के रूप में लेखक का नाम dean Koontz किताब के पेज 353 से 356 एक किताब है नाम the eyes of darkness 1981 को पब्लिश हुई थी इसमे लिखा है कि कॅरोना वायरस को चीन ने अपने शहर वुहानके एक लैब में सबसे छुपा कर
Lamha
थैंक यू.... सच कहूं तो ये कोई शब्द है ही नहीं.... ये बस एक जरिया जब आप और कुछ न बोल पाएं किसी के सहयोग के बदले और सभी लफ्ज़ खामोश हो जाएं.... मुझे नहीं पता ये लिखना कितना सही है... क्या मैं इसमें आपको बता पाऊंगी आप जरूरी क्यों हैं? ये मायने नहीं रखता में सब लिख पाऊं या नहीं क्योंकि आसमां को पन्ने पर उतरना नामुमकिन है... ये पत्र लॉजिकल होगा या नहीं पता नहीं...बस इतना पता है ये एक कोशिश मात्र ही रहेगा सूर्य को बताने का की उसकी आवश्यकता और अहमियत क्या है.... कभी कभी सोच में पड़ जाती हूं क्या एक शिष्य बनने के लायक हूं भी या नहीं पर आप मुझे गुरु की कतार में सबसे आगे मिलते हैं..... जीवन आसान हो जाता है जब कोई आपको आपकी तरह समझे ना की अपनी समझ के अनुसार.... शायद मैं कभी ही खुदको पहचान पाता या उस परिंदे की तरह बन जाता जिसने स्वत ही अपने पर काट लिए हों... मैं अपने आप को समझ सकता हूं क्योंकि आपने मुझे प्रेरित किया स्वयं की खोज करने को... एक उद्देश्य के बिन जीवन बेकार है ये समझाया भी तो आपने... लिखना चाहती तो बहुत कुछ हूं पर क्या अभी कह देना नैतिक रहेगा.... शायद नहीं... कैसे लगे जब एक जुगनू बताए हजारों सौर्य मंडलों के सूर्य कैसे जगमगाते हैं.... क्या कभी एक बूंद बता पाई है सागर कितना विशाल वा गहरा है.... शायद अभी कुछ वक्त बाकी है पर मुझे उस वक्त की ओर अग्रसर करने के लिए, मुझे वो बनाने के लिए जो मैं हूं मैं सदा ही आपसे कहूंगी जो आप न होते तो मैं मुझ जैसी नहीं होती... एक बेहतरीन वक्त की तलाश में अग्रसर आपकी शिष्य सही मायने में बनने को उत्सुक.. तान्या... ©Tanya Sharma (लम्हा) थैंक यू.... सच कहूं तो ये कोई शब्द है ही नहीं.... ये बस एक जरिया जब आप और कुछ न बोल पाएं किसी के सहयोग के बदले और सभी लफ्ज़ खामोश हो जाएं...