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Abhilasha Dixit
सखी सुन रही! कोकिला गीत, लिया है !उसने उर कोजीत जो स्वभाव से ही स्नेहिल है, जीवो से रहती घुल मिल है। मन में लहराता प्रेम तरल है, मादक स्वर में जो ओझल है। कैसे,? अनजानी हो सकती. उसकी विह्वल प्रीति पुनीत। सखी सुन रही कोकिला गीत।। शकुंतला स्मरण ©Abhilasha Dixit शकुंतला स्मरण
Abhilasha Dixit
तप विश्वामित्र का, ययाति चंद्रवंश तेज शकुंतला और दुष्यंत बन आए थे। गुणों के महा पुंज में सुरम्यसे निकुंज में भारत के वैभव का अनंत बन आए थे। रुप और तेज दोनों वर में प्रखर थे फूल के सिंगारमें लता सी थी लतायनी कोटि अनंगप्रिया संग थे लजारहे । नील घनश्याम बीचजैसे कोई दामिनी। ©Abhilasha Dixit शकुंतला और दुष्यंत विवाह
अल्पेश सोलकर
हाच कट्टा इथेच बसून रंगवलेली स्वप्न खऱ्याच्या दिशेने चालली आहेत.... " आपलाही टाईम येणार.." हाच कट्टा इथेच बसून रंगवलेली स्वप्न खऱ्याच्या दिशेने चालली आहेत.... " आपलाही टाईम येणार.."
yogesh atmaram ambawale
का अशी दूर दूर चालली आहे का माझ्या बद्दल तुझ्या मनात अविश्वासाची भीती वाढली आहे, खूप प्रेम आहे तुझ्यावर, माझ्यासाठी तू राधेची सावली आहे, पण हल्ली असेच का वाटत आहे माझ्यापासून तू दूर दूर चालली आहे. सुप्रभात मित्रानों आजचा विषय आहे दूर दूर चालली... #चालली #दूर चला तर मस्त मस्त कविता करा. #collab #yqtaai Best YQ Marathi Quotes पेज ला भे
Sharddha Saxena
❤️शकुन्तला का सौन्दर्य❤️ हे प्रिय! जैसे काई से रमणीय कमल हो काले कलंक से शोभयमान चन्द्रमा वल्कल वस्त्रों में भी तुम मुझे लगती हो अप्सरा। हे शकुन्तले! नवीन कोपल के समान लाल तुम्हारे अधरोष्ठ कोमल शाखाओं के समान तुम्हारी यह भुजाएं हे शकुन्तले! इन फूलों के समान तुम मेरे चित्त को लुभाती हो। ना आभूषण है कोई फूलों से स्वयं को सजाती हो हाय शकुन्तले! तुम बिना किसी हाव-भाव के मेरे मन को लुभाती हो। अप्सरा हो तुम या तपस्विनी इस सोच में तुम मुझे पल-पल डुबोती हो तपस्विनी के वेशभूषा में भी तुम मुझे अप्सरा सी लगती हो। ©Sharddha Saxena दुष्यंत द्वारा शकुंतला के सौंदर्य के बखान पर श्रृंगार रस से परिपूर्ण एक कविता।
Sakshi CHAUHAN