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Anjali Jain
जब बचपन में मुझे ढ़ेर सारी पत्रिकाएं पढ़ने को मिलती थी, तब लगती थी असली आजादी! जब पिताजी ने ,दादी और ताऊजी के मना करते रहने पर भी मेरी पढ़ाई नहीं रुकने दी थी, तब लगी असली आजादी! जब मेरे पिता ने मनपसन्द जीवन-साथी चुनने की मेरी इच्छा को नहीं दबाया था, तब लगी थी असली आजादी! हर निर्णय लेते समय, जब मेरी सहमति भी ली जाती थी, तब लगती थी असली आजादी! मैंने हर दफ़े मिलने वाली आजादी का अच्छे से उपयोग किया, तब हुई असली आजादी! मेरे पिता को कभी मुझ पर पछतावा नहीं हुआ, तब लगी थी असली आजादी! मैंने ख़ुद को मिली आज़ादी को अपनी बेटी तक पहुँचाया, तब हुई असली आजादी! मेरी बेटी पर मुझे नाज है,ये है मेरी असली आजादी!! #असली आजादी#18.08.20 #flyhigh
रामकंवार पारासरिया
*देश की असली आजादी तो क्रांति के आई थी* तेरी दर्द भरी कहानी में मैं कैसे शामिल हो जाऊं, बहरूपिए हो तुम मैं कैसे शामिल हो जाउ, मैं कैसे भूलूं शहीदों की चीखों को, मैं कैसे भूलूं 23 साल के नौजवानों को, सूली आज भी मुझे वह दिख रही है, मेरी आंखो के सामने वह टिक रही है, अरे क्या करते हो तुम भारत पाकिस्तान का बंटवारा, जरा उन जवानों को भी याद कर लो जिन्होंने अपना जीवन इन दोनों मुल्कों पर वारा। मैं गांधी जी का बन जाऊं पुजारी, लेकिन बंटवारे के वक्त क्या उन्हें याद नहीं आई हमारी, वतन बंट रहा था तुम मौन थे, अब पूछ रहे हो कि नाथूराम गोडसे कौन थे, बंग भंग हुआ तब भी तुम ना समझे, दिल का टुकड़ा छीन ले गया जिन्ना तब भी तुम ना संभले, अच्छा हुआ गांधीजी तुम को गोडसे ने मार दिया, जब जिन्ना की बातों में आकर हिंदुस्तान और पाकिस्तान को अलग किया, मेरी नजर में हिंदुस्तान का आज हर एक युवा मौन है, जरा पूछो उन फांसी पर लटके हुए जवानों से कि वह कौन है, मुझे आज भी याद है जो कत्लेआम हुआ, हिंदुस्तान जब पाकिस्तान के रूप में बर्बाद हुआ, हां तुम थे अहिंसा के पुजारी मैं भी बन जाऊं, पर मैं उस आजाद को कैसे भूल जाऊं, आजाद था, आजाद है,आजाद रहेगा,इस वचन को मैं कैसे झुटलाऊँ, जलियां की वह आग आज भी सीने में चिंगारी बन कर बैठी है, सभी अपनी अपनी राजनीति में लगे हुए हैं कौन कहता है कि देश मेरी माटी, अरे पूछो उन माताओं को जिन्होंने अपने सीने पर पत्थर रख दिया, अपने आंख के तारे को देश के लिए न्योछावर कर दिया, पूछो उस पिता से जिसके सामने भगत सिंह ने बंदूक के बोई थी, क्या उस रात उस पिता की आंखें चैन से सोई थी, इंकलाब की वह बोली घर-घर में गूंज उठी थी, तुम्हारी अहिंसा की उस टोली में कितनी चीखें रोज उठी, तुम सही हो यह "पारासरिया" मानता है, व्यक्तिगत तौर पर नहीं पर इतिहास के जरिये उनको जानता है, तुमने अपने तरीके में शांति अपनाई थी, लेकिन देश की असली आजादी तो क्रांति से आई थी, देश की असली आजादी तो क्रांति के आई थी। *देश की असली आजादी तो क्रांति के आई थी* तेरी दर्द भरी कहानी में मैं कैसे शामिल हो जाऊं, बहरूपिए हो तुम मैं कैसे शामिल हो जाउ, मैं कैसे भूल
writer Mahesh Bhadana
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी जिंदगी घुटन से कम नही रही बोझ से दबी जिंदगी रही आँखों मे चुभती दो रँगी जिंदगी मिली जज्बातों में दबी सौगाते मिली खुली सांसे लेने में जकड़ी जिंदगी मिली जब जब सम्हाला अपने को कैद में जिंदगी मिली चैन की जिंदगी गुजारने में उम्रों की तंग हाली मिली लगता है मरने के बाद ही सकून की जिंदगी मिले तोड़े झूठे रिश्तो की रस्म तब ही आजादी की असली सुबह मिले प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" आजादी की असली सुबह मिले #Freedom
Janmeda Rahul