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Priya Kumari Niharika
ईमान ध्यान और जान लगा, मैं काज करूं दिन रात अगर फिर भी वेतन के बदले ग़र, मिलता जाए आघात अगर तो बेजुबान बनकर कब तक, आखिर इसको बर्दाश्त करू या रोजगार ठुकराकर मैं, दाने का भी मोहताज बनू अब तो अकादमिक शिक्षा का, कोई भी मूल्य न होता है डिग्रियों का भार भी रद्दी सा, कौशल के तुल्य न होता है परिणाम भले उत्कृष्ट रहे, फिर भी बहुमूल्य न होता है कौशल विकास से ज्यादा अब, डिग्री अतुल्य न होता है आधी जीवन शिक्षा लेकर, बिल्कुल आराम न मिलता है डिग्री पाकर खुश मत होना, उसका भी दाम न मिलता है प्रतिभा का सम्मान यहां, शिक्षित को काम न मिलता है और सरकारी नियुक्ति न हो, तो समाज में नाम न मिलता है डिग्रीधारी नारी अक्सर, बन जाती है निर्भर,निर्बल निर्णय की शक्ति छीन जाती, कर पाती न कष्टों का हल कौशल की ओर बढ़ो अब तुम, यह देगा तुम्हें आत्मबल तो पराधीन परजीवी नहीं, स्वच्छंद उड़ोगी तुम भी कल इस प्रतिस्पर्धा के युग में, डिग्रियां जलाई जाती है कौशल की बुनियाद पे ही, रोजगार दिलाई जाती है या रिश्वतखोरो को अक्सर, रेबड़ीया खिलाई जाती है तब जाकर फॉर्मल सूट पैंट,और टाई सिलाई जाती है ©Priya Kumari Niharika ईमान ध्यान और जान लगा, मैं काज करूं दिन रात अगर फिर भी वेतन के बदले ग़र, मिलता जाए आघात अगर तो बेजुबान बनकर कब तक, आखिर इसको बर्दाश्त करू
oyeguptaji
read in discription अक्सर पहली नौकरी लोग सिर्फ नौकरी करने के लिये नहीं करते... पहली नौकरी अहसास दिलाती है कि पैसा पेड़ पे नही उगता.. पहली नौकरी बताती है कि पिता
Hrishabh Trivedi
The Non-Family Man (भाग-1) (अनुशीर्षक में पढ़े) डिस्क्लेमर:- कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं, इन्हें अपने ऊपर ना लें, और प्लीज़ मुझे भी इनसे ना जोड़े, जैसा कि आप लोग हर कहानी के
sandy
❤️💛❤️💛 ट्रेन मधलं प्रेम 💛❤️💛❤️ कॉलेज नुकतच पूर्ण होऊन जॉब ला लागली होती मी. कितीही डोळ्यावर झोप असली तरी धडपडत उठायचं, तयारी करायची, स्वतःच
Drg
'अपना सा' अजनबी ".. ना कभी फिल्मों जैसे हमारी नज़रें टकराई, ना कभी मौका मिला हमारी मुस्कानों को एक दूजे से बतियाने का। ना कभी बस के इमरजेंसी ब्रेक पर हमारा छूना मुमकिन हुआ और ना कभी 'हमारी' कोई कहानी बनी.." (कहानी अनुशीर्षक में पढ़ें) 'अपना सा' अजनबी कॉलेज के वो तीन साल, पलक झपकते ही गुज़र गए थे। ये दास्ताँ, कॉलेज से घर तक के सफ़र, बस नंबर ,८१ से जुड़ी है। आम तौर पर तो
Ravi Jha
सफर और सवाल #NojotoQuote जनवरी का महीना , सर्द मौसम और शाम से ही रही लगातार हल्की- हल्की बारिश के कारण शहर की भीड़ काफी कम हो गई थी, मैं दोस्त की जन्मदिन पार्टी से
Jyotshna Rani Sahoo
वो कौन था ( A suspense story in caption) सुहानी हमेशा से ही ट्रेन पर सफ़र करती है। वैसे तो मजबूरी है।उसे करना पड़ता है,क्यूं की दफ़्तर से घर काफी दूर है।लगभग एक दिन का आधा वक्त सफ
Hrishabh Trivedi
Welcome to Ajoobanagar (Part 2) डिस्क्लेमर:- कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं, इन्हें अपने ऊपर ना लें, और प्लीज़ मुझे भी इनसे ना जोड़े...... धन्यवाद 😊 Part 1👉 #hr
sandy
❤️💛❤️💛❤️💛❤️💛❤️💛❤️💛❤️ तुम्हाला पाहिजे दिवा, पण पणतीचा काय गुन्हा 💛❤️💛❤️💛❤️💛❤️💛❤️💛❤️💛 स्मिता ये स्मिता दरवाजा जोऱ्यात वाजत होता, स्मिताने दार