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Tilak Gondavi
टुकडा -टुकडा जोड-जोड पतवार बनाना सीख लिया । मैं ने अपने जख्मों को हथियार बनाना सीख लिया। #टुकडा टुकडा जोड जोड#
Parasram Arora
हिसाब लगा रहा हूँ आज उन पापों का जो अब तक मुझसे हुए ही नहीं और उन . पुण्यों का नए सिरे से मूल्यांकन करने का कदाचित समय भी यही है जिन्हे अर्जित किया है मैंने अनजाने मे जिनके लिए मै अधिकृत भी था नहीं # पाप पुण्य का लेखा जोखा
Kishor Rokade
"आठवण" दिली होतीस वचने कधी..कायम सोबत राहण्याची.. प्रेमाला कधी जोड असते का.? सांग जातीधर्माची..! आठवणीत जिवंत आहे माझ्या..आजही तो काळ.. तुझ्या सोबत घालवलेली..दिवस,रात्र अन संध्याकाळ.! दोष नाही तुझ्या निर्णयाला..जग तु खोट्या वचनाला.. आस आहे भास आहे.. तु जागशील छत्रपती शिवशंभु विचाराला.! अशाच या जगण्यात..जर तु आनंदी असणार.. छत्रपती शिवशंभुनची शपथ..! ना आडवा येणार..ना डगमगणार.! तुझ्या आयुष्यात आनंद..कसा बहरत राहणार.. यासाठी सदैव प्रयत्नशील राहणार.! तुझाच shree..✍️ जोड शिवविचारांची.. जय शिवराय....
Ankit verma 'utkarsh'
"ऐसे पूण्य कर्म करने वालों को यहाँ पर एक Credit Card मिलता है...! और उसे प्रयोग कर आप यहाँ स्वर्गीय सुख का उपभोग ले सकते है..!'' मैंने कहा, "भगवन.... मुझे यह पता नहीं था. इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया.!!" अच्छे कर्मों का लेखा जोखा part 9
Ankit verma 'utkarsh'
"हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये..!'' और मैं गिड़गिड़ाने लगा.! इंद्र को मुझ पर दया आ गई.!! इंद्र ने तथास्तु कहा और मेरी नींद खुल गयी..! मैं जाग गया..! अब मैं वो दौलत कमाऊँगा जो वहाँ चलेगी..!! अच्छे कर्मों का लेखा जोखा part 10
Ankit verma 'utkarsh'
कल रात मैंने एक "सपना" देखा.! मेरी Death हो गई.... जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे इसलिये यमराज मुझे स्वर्ग में ले गये... देवराज इंद्र ने मुस्कुराकर मेरा स्वागत किया... मेरे हाथ में Bag देखकर पूछने लगे ''इसमें क्या है..?" अच्छे कर्मों का लेखा जोखा part 1
Ankit verma 'utkarsh'
मैंने इंद्र के पास Complaint की इंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा कि, ''आप व्यापारी होकर इतना भी नहीं जानते..? कि आपकी करेंसी बाजु के मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका और बांगलादेश में भी नही चलती... और आप मृत्यूलोक की करेंसी स्वर्गलोक में चलाने की मूर्खता कर रहे हो..?'' यह सब सुनकर मुझे मानो साँप सूंघ गया..! अच्छे कर्मों का लेखा जोखा part 4
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी लेखा जोखा पेश हुआ,हकीकते शर्माती है वायदे वचन से खूब घुमाते है आय खो चुकी जनता रोजगार पर हाथ मलती है महँगाई के भार,घर घर फूंकते दूध आटे पर कर वसूलते है हर महीने दाम बढ़ाते फिर बजट से कियो भरमाते हो अमृत महोत्सव का नारा देकर जहर जनता में बटवाते है तामझाम और विज्ञापन के बल पर छलने की विसात बिठाते है रुपये की कीमत दम तोड़ती फीकी चमक हर चेहरों पर है सियासत वाजी के कारण भारत का अंग अंग घायल है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" लेखा जोखा पेश हुआ,हक़ीक़ते शर्माती है