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शुभ'म
चलो अब कसम से इस दिल के अन्धरों में ! मोहब्बत का कुछ चिराग जलाते चलते हैं !! समा को रौशन करती दुआ की रोशनी जो ! अब खुद को खुदा की रोशनी से इश्क कराते चलतें हैं !! बिखरनें को है कुछ नही समा में सवरनें के अलावा ! अब अपनें संवरनें को उसके सब्रने से इजहार कराते चलतें हैं !! इक करार तो है ही अब शायद सन्धि भी हो जाए उससे ! चलो अब कुछ देर में खुद को अपनें महबूब से मिलातें चलतें हैं !! -Sp"रूपचन्द्र" ©Sp"रूपचन्द्र"✍ #सन्धि ,#इजहार #Sunrise
Divyanshu Pathak
17 वीं शताब्दी में भारत दुनियाभर के अमीर देशों में से एक था। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद - मुग़ल साम्राज्य सूबेदार और जागीरदारों के हाथ में चला गया। वे आपस में लड़ने लगे। 1739 में नादिरशाह के आक्रमण और 1761 में अहमदशाह अब्दाली के हमले ने मुग़ल साम्राज्य को तबाह कर दिया। 1857 ई.तक बहादुर शाह जफ़र नाममात्र का सम्राट रहा। मराठों ने मुगलों की सुरक्षा का दायित्व ले रखा था वे पेशवाओं के सहारे अपनी शक्ति का विस्तार कर रहे थे। 14 जनवरी 1761 में अहमदशाह अब्दाली से मराठों ने पानीपत की तीसरी जंग लड़ी जिसमें अहमदशाह अब्दाली जीत गया। अगर मराठे जीत गए होते तो अंग्रेज उनसे लोहा लेने का साहस नहीं करते। ख़ैर- अवध- 1728 ई. में सूबेदार सादत ख़ाँ (मीर मुहम्मद अमीन ) ने मुग़ल साम्रा
Pnkj Dixit
🌷 मौन 🌷 मौन को स्वीकृति मत समझ मुस्कुराहट है , सुपुर्दगी नहीं । हंसकर मिलना आदतानुसार खूबसूरत है , चरित्रहीन नहीं ।। मन की मटमैली परत उतार दो इंसान ही रह बन्दे , हैवान नहीं । कर्मफल का फैसला , कर्म करेंगे भगवान सदा साथ है , शैतान नहीं ।। मौन अपरिभाषित है । मौन ही शापित है ।। मौन की महिमा अपरम्पार । मौन से ही है सकल संसार ।। ०५/०७/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' 🌷 मौन 🌷 मौन को स्वीकृति मत समझ मुस्कुराहट है , सुपुर्दगी नहीं । हंसकर मिलना आदतानुसार खूबसूरत है , चरित्रहीन नहीं ।। मन की
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। अधरा हनुः पूर्वरूपम्।उत्तरा हनुरुत्तररूपम्। वाक् सन्धिः। जिह्वा सन्धानम्। इत्यध्यात्मम्। अधर हनु (ऊपरी जबड़ा) पूर्व-रूप है; उत्तर हनु (नीचे का जबड़ा) उत्तर-रूप है; वाक् है सन्धि; जिह्वा है संयोजक (सन्धान)। इतना ही है अध्यात्मम्। The upper jaw is the first form; the lower jaw is the latter form; speech is the linking; the tongue is the joint of the linking. Thus far concerning Self. तैत्तिरीयोपनिषद् शिक्षावली प्रथम अनुवाक #।। ओ३म् ।। अधरा हनुः पूर्वरूपम्।उत्तरा हनुरुत्तररूपम्। वाक् सन्धिः। जिह्वा सन्धानम्। इत्यध्यात्मम्। अधर हनु (ऊपरी जबड़ा) पूर्व-रूप है
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey. 🎇 ब्रह्माजी ने कहा- महाभाग्यशाली श्रेष्ठ महर्षियों! अब मैं तुम लोगों से रजो गुण के स्वरूप और उसके कार्य भूत गुणों का यथार्थ वर्णन करूँगा। 🎇 ध्यान देकर सुनो संताप, रूप, आयास, सुख दु:ख, सर्दी, गर्मी, ऐश्वर्य, विग्रह, सन्धि, हेतुवाद, मन का प्रसन्न न रहना, सहनशक्ति, बल, शूरता, मद, रोष, व्यायाम, कलह, ईर्ष्या, इच्छा, चुगली खाना, युद्ध करना, ममता, कुटुम्ब का पालन, वध, बन्धन, क्लेश, क्रय-विक्रय, छेदन, भेदन और विदारण का प्रयत्न, दूसरों के मर्म को विदीर्ण कर डालने की चेष्टा, उग्रता, निष्ठुरता, चिल्लाना, दूसरों के छिद्र बताना, 🎇 लौकिक बातों की चिन्ता करना, पश्चात्ताप, मत्सरता, नाना प्रकार के सांसारिक भावों से भावित होना, असत्य भाषण, मिथ्या दान, संशयपूर्ण विचार, तिरस्कार पूर्वक बोलना, निन्दा, स्तुति, प्रशंसा, प्रताप, बलात्कार, स्वार्थ बुद्धि से रोगी की परिचर्या और बड़ों की शुश्रूषा एवं सेवावृत्ति, तृष्णा, दूसरों के आश्रित रहना, व्यवहार कुशलता, नीति, प्रमाद (अपव्यय), परिवाद और परिग्रह ये सभी रजोगुण के कार्य हैं। ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey. 🎇 ब्रह्माजी ने कहा- महाभाग्यशाली श्रेष्ठ महर्षियों! अब मैं तुम लोगों से रजो गुण के स्वरूप और उसके कार्य भूत गुणों का
रजनीश "स्वच्छंद"
क्या गारंटी है।। सज़दे में सर झुका तो दूँ, कटेगा नहीं, क्या गारंटी है। बहते पवन को रुका तो दूं, बहेगा नहीं, क्या गारंटी है। सच और झूठ की उलझन में कैसे कोई मैं बात कहुँ, सच मे ये दिल लगा तो दूँ, हटेगा नहीं, क्या गारंटी है। ईमान हुआ सिक्का खोटा, अभी चला अभी बैठ गया, बिकने को इसे सजा तो दूँ, छलेगा नहीं, क्या गारंटी है। कोई दर्द बड़ा ही ज़ालिम है, मिटने से ज्यादा बढ़ता है, मैं जो आज इसे मिटा भी दूँ, बढ़ेगा नहीं, क्या गारंटी है। अपना ही साया दुश्मन अपना, अंतर्मन की लड़ाई है, आज मैं सन्धि कर तो लूं, लड़ेगा नहीं, क्या गारंटी है। कुछ बातें चुभीं दिल को ऐसे, ज़ख्म बड़ा ही गहरा था, प्रत्यंचा तो मैं चढ़ा भी दूँ, तनेगा नहीं, क्या गारंटी है। याद तो बच्चे होते हैं, वक्त के साथ ही बढ़ते जाते हैं, यादों को आज भुला भी दूँ, पलेगा नहीं, क्या गारंटी है। कंकड़ पत्थर और तिनका, मन मे घर की चाह रही, नींव तो पक्की कर भी दूँ, ढहेगा नहीं, क्या गारंटी है। मन मे कुछ अवसाद लिए, बर्फ़ हुआ था दिल भी मेरा, मैं आज इसे पिघला भी दूँ, जमेगा नहीं, क्या गारंटी है। हर बात मैं सच ही कहता हूं, किस्सा ये तेरा मेरा है, दिल पे दस्तक जो दे दूं, धड़केगा नहीं, क्या गारंटी है। ©रजनीश "स्वछंद" क्या गारंटी है।। सज़दे में सर झुका तो दूँ, कटेगा नहीं, क्या गारंटी है। बहते पवन को रुका तो दूं, बहेगा नहीं, क्या गारंटी है। सच और झूठ की उल
Ravendra
Archana Tiwari Tanuja
(1)-हिंद.... हिंदी.....हिन्दुस्तान इनसे मिल कर बना मेरा देश महान इसके जैसी कोमलता और मधुरता इसके जैसी भाव मृदुलता कही नहीं। (2)-हिंदी भाषा के है रुप अनेक हर शहर,जिला,गाँँव और कस्बा सब की भाषा में ही निहित है ..... अलग - अलग बोली का अंदाज..। (3)-देवो की इस पावन धरती पर निस दिन हिंदी की निर्मल धार बहे गंगा सी पतित पावनी हिंदी भाषा गोदावरी,यमुना,सरस्वती सी निर्मल। (4)-हिंदी से ही बना हिन्दुस्तान..... यूं तो हर भाषा का है अपना मोल पर हिंदी हमारी सबसे है अनमोल.. पहचान है मेरी हिंदी से ही..........। (5)-अनगिनत रसो,छंदों, अलंकारों दोहों, सन्धि,समास,पर्यायवाची शब्दों से मिलकर और जाने कितनी ही विधाओं से मिल बना हिंदी का स्वरूप। (6)-कंठ से निकला हर शब्द हिंदी है हिंदी के बगैर हमारा कोई वजूद नहीं हर भाव को मैं जानू और पहचानू.... भाषा सिर्फ एक ही !!!!.....हिंदी है। (7)-मेरे मन की एक वेदना............ अपने ही देश मे हिंदी हुई पराई है.. गिटपिट-गिटपिट सब अंग्रेजी बोले हिंदी भाषा का दर्द जाने नहि कोई । (8)-अन्य भाषा का ज्ञान बुरा नहीं... पर ऐसे ज्ञान का क्या है मोल????? जो अपनी भाषा का मान घटनाएं है गर्व हमें हम हिंदी भाषी है......। (9)-चाँद पर परचम लहराने वाले... सब जग मे अपनी क्षमता मनवाने वाले अपनी मातृभाषा को तुम भूल गए.... हिंदी को उसका खोया सम्मान दिलाओं। (10)-"जब तक है हिंदी हिन्दुस्तान मेंं तब तक है हिन्दू सभ्यता और संस्कार गर चाहते हो अपना अस्तित्व बचाना तो फिर से हिंदी भाषा का उत्थान करों। 19/09/2020 @archanatiwari_tanuj #हिंदीदिवस2020 (1)-हिंद.... हिंदी.....हिन्दुस्तान इनसे मिल कर बना मेरा देश महान इसके जैसी कोमलता और मधुरता इसके जैसी भाव मृदुलता कही नहीं।
Shivanya
सो एक रोज क्या हुआ वफ़ा पे बहस छिड़ गई मैं इश्क को अमर कहूं वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई मैं इश्क का असीर था वो इश्क को कफ़स कहे कि उम्र भर के साथ को वो बदतर अज़ हवस कहे.. भले दिनों की बात थी भली सी एक शक्ल थी ना ये कि हुस्ने ताम हो ना देखने में आम सी ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे मगर वो साथ हो तो फि