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पंकज कुम्हार
भोर का पंछी ये करती शोर सूरज की किरण ये चलती हवाएं सनन सनन ये भोर से पंछी बतियाये चीं-चीं करके करते है नमन भोर का पंछी
Pratibha Tiwari(smile)🙂
भोर का पंछी है किसी तलाश में किसी अपने की चाह में किसी पराए को छोड़ने की फिराक में। भोर का पंछी.... जिंदगी से हारकर भी जीतने की तलाश में, सब कुछ खोकर भी कुछ पाने के ख्वाब में। भोर का पंछी....... वजूद ढूंढने की तलाश में, जो अपने होके भी अपने ना रहे उन्हें खोने की तलाश में अपना हक पाने की तलाश में दूजे का हक देने की तलाश में। भोर का पंछी........ हर इंसान पंछी बनने की चाह में, इंसानियत को खोने के ख़्वाब में, जो एक दूसरे के अस्तित्व के पूरक हैं एक दूसरे से भागने की तलाश में। भोर का पंछी......... प्रतिभा❤✍ ........ #भोर का पंछी
Shaikh Akhib Faimoddin
भोर का पंछी हर मंझील हर रास्ते पर आँखे कुछ ना कुछ ढुंढती रही,धीरे धीरे खुबसुरत शाम खाँमोशी बुनती रही|ना जाने क्या तलाश थी पंछी को जो घर लौटते वक्त भी उसकी आँखे नम होती रही| सुरज तो जलते जलते छुप गया आसमा के सीने में ना जाने पंछी के सीने में कौनसी आग जलती रही|जैसे तैसे वो घर लौटा और की बंद अपनी आँखे तो बेवफा जिंदगी फिर उसके सीने में हसीन सपने बुनती रही| भोर का पंछी
Manoj Kumar MJ"
भोर का पंछी निकल चला है अपने घर से दूर कही.. उसे भी आएगी घर की याद, शाम तक लौट आएगा ही। भोर का पंछी
Rajnish Shrivastava
रवि गगन से अपनी छवि जल में निहार रहा । धरती को अपनी स्वर्णिम छटा से निखार रहा । बड़ा मनमोहक है प्रभात का खूबसूरत नजारा हर कोई अद्भुत सौन्दर्य को दिल मे उतार रहा । ©Rajnish Shrivastava #भोर का नजारा
meena mallavarapu
भोर का पंछी भोर का पंछी न जाने क्यों आज उदास कर गया वह चहक जो मन को भाती थी आज क्यों आंखें कर गई नम परिन्दों के झुंड उड़ रहे हैं पंख फैलाए आता है ख़याल मन में इस झूंड में से गर छूट जाए पंछी एक मुड़ कर शायद ही देखेंगे बाकी है ज़िन्दगी की रीत यही है उसूल यही परिपक्व मन उदास क्यों हो इस सच्चाई से! भोर का पंछी # कविता