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एस पी "हुड्डन"
नहीं आता मुझे झूठ बोलना शायद तभी अकेला हूं, तमाशबीनों मुझे जी भर देखो मैं लुटा हुआ मेला हूं। आँसू छुपाए दर्द सहे अपने सारे गम छोड़े अनकहे, ऐसे ही तो कितनी दफा मैं अपने आप से खेला हूं। ©एस पी "हुड्डन" #तभी_अकेला_हूं #CalmingNature
@YahanZazbaatBikteHai..
अब nojoto भी रंगीन मिजाज हो गया मुबारक हो😂😂 ©@YahanZazbaatBikteHai.. #nojoto #तभीकहूंमेरीरीचक्योंरूकगई😂😂
Pakhi Mitra
You :तुम,आप His :उसका, उनका Come :आओ,आइये Sit :बैठो,बैठिये सिर्फ़ "संवाद" ही नहीं "सम्मान" करना भी सिखाती है "हिंदी"। *हिन्दी दिवस* पाखी...✍🏻✍🏻 #करो_हिन्दी_का_मान, #तभी_बढ़ेगी_देश_की_शान ꫰ #आप_सभी_को_विश्व_हिन्दी_दिवस_की_हार्दिक_शुभकामनाएं_ 🙏🏻🙏🏻
Ghumnam Gautam
अश्रुओं से हो गया अभिषिक्त हूँ तुम गए जबसे तभी से रिक्त हूँ ©Ghumnam Gautam #astrology #अश्रु #अभिषिक्त #तभी_से #रिक्त #ghumnamgautam
Nishant Khurpal 'Kabil'
#तभी_तो_चेहरे_से_मुरझाया_हुआ_लगता_है। #निशांत_खुरपाल 'काबिल' #Bhola_Fan_Club #Share_Like_and_Comment
अनामिका वैश्य आईना
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
कभी आपने यह नोटिस किया है कि जब हम छोटे थे, तब किसी बात पर हमारी मां बाप हमसे नाराज़ हो जाते थे, और कहते थे, कि छोड़ कर चले जायेंगे। हम बच्चें उनके पिछे दौड़ते थे, और माफ़ी मांग लेते थे। और वो हमें माफ़ भीं कर देते थे, पर कभी छोड़ कर नही गए। पर आजकल तो बच्चें बड़े होने के बाद अगर नाराज हो जाएं तो मां बाप मना मना कर हार जाते हैं। पर मजाल है बच्चें मान जाएं, यह इतना सत्य बोलते हैं की अगर इन्होंने कह दिया कि घरऔर तुमको छोड़ कर चले जायेंगे तो चले जाते हैं। बाप खड़ा रहता है लाचार, तो रो रहीं हैं मां बिचारी।। बाप खड़ा हाथ जोड़े, और उनके मां आड़े आ रही।। कभी बाप देखता बच्चें को तो कभी उनकी लाचारी।। देखना पड़ा ये दिन पहले निकली क्यों न अर्थी हमारी।। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma माना मेरी बाते बोरिंग होतीहैं । परबातपतेकीहोतीहैं तभीतोकोई इसकापताहोतेहुएभीइग्नोरकरताहै।#dodil
गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश
केवल तभी हर पल मुस्कान तेरी बनी रहे, तभी जग मुस्कुराए, माया विवेक की तू धनी बने, तभी जग जगमगाये। है दुआ की खुशियों की बारिश हो तुझपे सतत- दिन सुहानी रूहानी रजनी हो, तभी जग चैन पाये।। केवल तभी
Vandana Gupta
"बस तभी" एक बेटी जो परी होती है अपने पिता की, उस घर की चहचहाती चिड़िया होती है, पिता की पलकों पर बैठी माँ की दुलारी होती है, बस तभी वो दुत्कारी जाती है, तानों पर कसी जाती है, हर वक़्त अपमानित की जाती है, हाँ बस तभी वो रोती रहती है अन्दर ही अन्दर, एहसानों से तौला जाता है उसे, पैसे का रौब दिखाया जाता है, बस तभी उसका चहचहाना बन्द हो जाता है, जब ना जाने कितनी ही बार उसे, सूली पर टाँग दिया जाता है, सिमटी रहती है किसी कोने में, उस कोने में ही, खुद को ढूँढती रहती है, जो कभी वो हुआ करती थी, बस तभी वो तलाशती रहती है, अपने वजूद को, जो ज़िन्दा रहती थी सबके अन्दर, बस तभी वो मर चुकी होती है, लोगों के अन्दर, हाँ बस तभी जब, उसका पिता मर जाता है लोगों के लिए!!!! ©वन्दना "बस तभी"