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Digambar Bhor
हे मानवा नको तोडुस मला मी तर अरे जिवन देतो तुला! हे मानवा नको तोडुस मला! माझ्या मायेच्या सावलीची उब देईल तुला! हे मानवा नको तोडुस मला! माझ्या नसण्याची खंत वाटेल तुला! हे मानवा नको तोडुस मला! एक दिवस माझ्या नसण्याने मृत्यू येईल तुजला! तेव्हा मात्र मी काही करू शकणार नाही माझ्या पि्य मुला! लेखक. दिगंबर भोर. बुलढाणा ©Digambar Bhor बुलढाणा #gaon
manoj kumar jha"Manu"
यावत्स्वस्थो ह्ययं देहो यावन्मृत्युश्च दूरतः । तावदात्महितं कुर्यात्प्राणान्ते किं करिष्यति ॥ ( चाणक्य नीति ४/४) जब आपका शरीर स्वस्थ है और आपके नियंत्रण में है। उसी समय आत्मसाक्षात्कार का उपाय कर लेना चाहिए क्योंकि मृत्यु हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता है । युवावस्था में ही धर्म का अर्जन करें।
Dr. Arjun Parmar
महोब्बत की रवानी का एक हसीं एहसास हो तुम !! मेरी इस अधुरी कहानी का एक हसीं आगाज हो तुम !! मे जो गुनगुना रहा हूँ ये तो महज अल्फाज है मेरे !! इन टूटे हुये अल्फाजो की एक हसीं आवाज हो तुम !! अर्जन परमार #NojotoQuote महोब्बत की रवानी का अर्जन परमार #love #poem
Abhi
Bitter Truth जब किसी घर के बुजुर्ग व्यक्ति के चेहरे पर झुर्रियां और बाल सफेद होने लगते हैं तो उनको वृद्धाश्रम का द्वार दिखाया जाता है। #बुढापा
Anand Prakash Nautiyal tnautiyal
जवानी में बुढापे के लिये कुछ लिख रहा हूँ, बुढापा देख उनका, आज फिर कुछ कह रहा हूँ, जो होते थे शहंशाह यूँ, कभी अपनी जवानी में, नैन उनके भिगे मुझको दिखे थे आज पानी में. कदम जिनके बने पथ उन हजारों के लिये, हुवे लाचार क्यूँ अब लडखडाने के लिये, जुँबा जो थी बुलंदी पर अडिग थे फैसलों पर, न जाने क्यूँ सिसकती हैं जरा से फासलों पर. कभी होते खडे जो दूसरों के वास्ते , वही लाचार हैं अब देखने को रास्ते. विधाता का ये कैसा खेल कैसा चक्र है, बिना तेरे मुझे इस जिंदगी पे फक्र है. #बुढापा#
ehsanphilosopher
बरे मायूस सा एक शख्स पड़ा है। गुजर जाने के दहलीज पे खड़ा है। तुम जलाते रहो अदब के दीप हर पल। कौन जाने बुलावा किस दर पड़ा है। बुलावा
Sunita Shanoo
बुढापा अपनों की आंख का आंसू बने या किरकिरी बन जाएं किसी आंख की दिल पर बोझ हो हमारे होने का या कोई फर्क न पड़ता हो किसी को होने न होने का जब किसी भी काम न आएं न देख पाएं सही से न सुन पाएं चुपचाप पडे़-पडे़ भी अघाए हम घुट घुटकर जीने से बेहतर है कहीं दूर निकल जाएं कि नज़र भी न आएं हम हां सही सोचते हो अच्छा होगा मर ही जाए हम...। बुढापा
Prem Narayan Shrivastava