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Anjali Bagga

atal ji ki kavita ki kuch pankti.

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-SaChIN😉

atal ji

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Atul Upadhyay

atal ji

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क्‍या हार में क्‍या जीत में,
किंचित नहीं भयभीत मैं।
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान नही माँगूँगा।। 
हो कुछ पर हार नही मानूँगा।।
 भारत रत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुण्यतिथि पर नमन!

©अतुल उपाध्याय atal ji

Anukrit Agarwal

Atal Ji

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Aaya toh hoga Yamraj 15Augest ko... 
Lekin Atal Ji Ne Jane Se Mana Kardiya Hoga... 
Kyuki Wo Agar uss dinn chale jate toh Anarth Hojata... 
Unhone Kaha Aee Maut Jaa Zara Tehel Kar Aa..
Aaj Tiranga Lehrane De.. 
Waada Hai Mera Aaj Nahi Kal Chal Denge... 
Kal Chalne se Na Tera kaam Rukhega... 
Naa 15 August ko Mere Desh Ka Dhwaaj Jhukega!!
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 Atal Ji

Abd

#Atal ji

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Atal G keh gye ki loktantr rehna chahiye...!

Ye desh rehna chahiye or swetarnt rehna chahiye....!!

Vivdhte mein rhe ek ekta her manav-man mein gantantr rehna chahiye...! 

Prja, Raja se vyakul na ho aisa parjatantr rehna chahiye...!! 

Atal G keh gye ki loktantr rehna chahiye...! 

Ye desh rehna chahiye or swetarnt rehna chahiye....!!

Vasudevkutumbhkambh na bhoole hum,

 her jaata hitkari parbhand tantr hona chahiye...! 

Atal G keh gye ki loktantr rehna chahiye...!!

Ye desh rehna chahiye or swetarnt rehna chahiye....!! 

Neta na ho adhinayak bne her jan, gan ke man mei base....!

Subah swere her ek ghr jan gan man hona chahiye....!! 

Atal G keh gye ki loktantr rehna chahiye...!

Ye desh rehna chahiye or swetarnt rehna chahiye....!! #atal ji

rakesh raj roshan

Atal ji #कविता

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Prem चौधरी

atal ji

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Nitindubey

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Saurabh Wankhede

RIP ATAL JI

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वो राह नहीं वो मंजिल है 
   वो चाह नहीं वो हासिल है 
       वो नम नहीं वो जटल है 
वो डग नहीं वो अटल है RIP ATAL JI

SURESH

#dost Atal ji# #कविता

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मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार।

डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार।

रणचण्डी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास।

मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुआंधारय।

 

फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं।

यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

 

मैं आदि पुरुष, निर्भयता का वरदान लिए आया भू पर।

पय पीकर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पी कर।

अधरों की प्यास बुझाई है, पी कर मैंने वह आग प्रखर।

हो जाती दुनिया भस्मसात्, जिसको पल भर में ही छूकर।

 

भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन।

मैं नर, नारायण, नीलकंठ बन गया न इस में कुछ संशय।

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

 

मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान।

मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।

मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।

मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?

मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर।

 

इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय।

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

 

मैं तेज पुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश।

जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?

शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन दे कर।

विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर।

 

यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर।

गुंजार उठे उंचे स्वर से 'हिन्दू की जय' तो क्या विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

 

दुनिया के वीराने पथ पर जब-जब नर ने खाई ठोकर।

दो आंसू शेष बचा पाया जब-जब मानव सब कुछ खोकर।

मैं आया तभी द्रवित हो कर, मैं आया ज्ञानदीप ले कर।

भूला-भटका मानव पथ पर ‍चल निकला सोते से जग कर।

 

पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर।

उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय।

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

 

मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल।

मुझ को मानव में भेद नहीं, मेरा अंतस्थल वर विशाल।

जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार।

अपना सब कुछ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार।

 

मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट।

यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

 

मैं ‍वीर पुत्र, मेरी जननी के जगती में जौहर अपार।

अकबर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीना बाजार?

क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलने वाला आग प्रखर?

जब हाय सहस्रों माताएं, तिल-तिल जलकर हो गईं अमर।

 

वह बुझने वाली आग नहीं, रग-रग में उसे समाए हूं।

यदि कभी अचानक फूट पड़े विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!
 

होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?

मैंने तो सदा सिखाया करना अपने मन को गुलाम।

गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए?

कब दुनिया को हिन्दू करने घर-घर में नरसंहार किए?

 

कब बतलाए काबुल में जा कर कितनी मस्जिद तोड़ीं?

भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

 

मैं एक बिंदु, परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दू समाज।

मेरा-इसका संबंध अमर, मैं व्यक्ति और यह है समाज।


इससे मैंने पाया तन-मन, इससे मैंने पाया जीवन।
मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दूं सब कुछ इसके अर्पण।
 
मैं तो समाज की थाती हूं, मैं तो समाज का हूं सेवक।
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

©SURESH #dost Atal ji#
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