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मोन्टू भाई

सुर्या पारिख #rain #शायरी

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Alka Jain

निष्ठा

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Gautam_Anand

हर वक़्त हर बात पे मेरी निष्ठा ना तौलिये
इन बिखरे हुए रिश्तों के लिये ख़ुद को टटोलिए
निराश करती है हर एक बात में दिमाग़ की बात
ना आजमाइए तहज़ीब को कभी दिल से बोलिये #निष्ठा

Simran

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Lalit Tiwari

ध्येय निष्ठा

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Piyush Pushpam

स्मिता पारिख जी की नज़्म कब आओगे? #story #poem

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Ek villain

#City #सत्य निष्ठा ही हमें धैर्य निष्ठा बनाती है #Society

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वह जानता है कि सांच को आंच नहीं उसे सत्य में जयते की संकल्पना पर पूर्ण विश्वास होता है यही विश्वास उसे ऊर्जा प्रदान करता है सत्य निष्ठा ही हमें धैर्य निष्ठा बनाती है हम अपने धैर्य की ओर बढ़ते चले जाते हैं हमारा धैर्य हमें सफलता प्रदान करता है सत्य निष्ठा के रथ पर सवार होकर बहरे निष्ठा बनकर हम अपना जीवन सार्थक बना सकते हैं इसका विपरीत आ सकते सत्य से प्रभावशाली बनाने का भरसक प्रयत्न करता है वह उसे दबाने के लिए तमाम तिगड़म भी करता है परंतु सत्य के ओजस्वी प्रभाव एवं प्राप्त के समक्ष आ सकते धराशाई हो जाता है

©Ek villain #City #सत्य निष्ठा ही हमें धैर्य निष्ठा बनाती है

jugalmilan

#सत्य और निष्ठा #Rap

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सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं
और
इंसानियत से बड़ा कोई कर्म नहीं #सत्य और निष्ठा

नशीली कलम

हाँ 

में लड़की हूँ👧
मुझे पता है मुझे पराये घर🏣 जाना है

पर ये
देश 🇮🇳तो मेरा अपना 
और  एक आईपीएस💂 बन कर
इसकी सेवा करना मेरा सपना है

🇮🇳आईपीएस🇮🇳 #आईपीएस 
#संघर्ष
#निष्ठा
#मेरा_भारत

SK Poetic

तपस्विनी की स्वदेश निष्ठा #प्रेरक

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writing quotes in hindi पेशवा नारायणराव की पुत्री सुनंदा ने अपनी बुआ रानी लक्ष्मीबाई की तरह अंग्रेजों की सत्ता को चुनौती देकर निर्भीकता का परिचय दिया। सुनंदा को अंग्रेजों ने त्रिचनापल्ली की जेल में बंद कर दिया ।वहाँ से मुक होते ही वे एकांत में भक्ति-साधना करने नैमिषारण्य जा पहुँचीं। वहाँ वे परम विरक्त संत गौरीशंकरजी के संपर्क में आईं। संतजी सत्संग के लिए आने वालों को स्वदेशी व स्वधर्म प्रेम के लिए प्रेरित करते थे। सुनंदा उनकी शिष्या बन गईं।

साध्वी सुनंदा ने साधु-संतों से संपर्क कर उन्हें स्वदेशी व स्वधर्म के लिए जन-जागरण करने के लिए तैयार किया। नैमिषारण्य में लोग ‘साध्वी तपस्विनी’ के नाम से उन्हें पुकारने लगे।

वे साधुओं की टोली के साथ गाँवों में पहुँचतीं और ग्रामीणों को विदेशी सत्ता के विरुद्ध विद्रोह की प्रेरणा देतीं। अंग्रेजों को जब साधु-संतों के इस अभियान का पता चला, तो सीतापुर के आस-पास के अनेक साधुओं को गोलियों से उड़ा दिया गया ।

तपस्विनी सुनंदा चुपचाप नेपाल जा पहुँचीं। वहाँ से गुप्त रूप से पुणे पहुँचकर उन्होंने लोकमान्य तिलक से आशीर्वाद लिया। वे स्वामी विवेकानंदजी से भी बहुत प्रभावित थीं। उन्होंने कलकत्ता में महाकाली कन्या विद्यालय की स्थापना की ।सुनंदा ने बंग-भंग के विरोध में हुए आंदोलन में भाग लिया। 16 अगस्त, 1906 को कोलकाता में रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में हुंकार भरते हुए उन्होंने कहा, ‘यदि हम रक्षाबंधन के पवित्र दिन विदेशी वस्तुओं के पूर्ण बहिष्कार का संकल्प ले लें, तो अंग्रेजी सत्ता की जड़ें हिल जाएँगी।’
अगले ही वर्ष 1907 में राष्ट्रभक्त तपस्विनी ने कोलकाता में स्वदेशी का प्रचार करते हुए अंतिम सांस ली ।

©S Talks with Shubham Kumar तपस्विनी की स्वदेश निष्ठा
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