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Ravindra Yewale
कोई राह नहीं है ,, कुछ राहत नहीं है ,, मेरे सिवा कोइ , मेरे सात नहीं है ,, ऐ जिंदगी की , डोर बळि कमजोर है ,, वक्त के सिवा कोइ ,, साथ नहीं है ,, ©Ravindra Yewale रब्बी
Ravindra Yewale
थोड़ी देर खुद से, नाराज रहना चाहता हूं ,,,, वक्त को थोड़ा , जानना चाहता हु ,, ,, ये ,दुख, दर्द , गम खुशि ,, हर पल किसिना किसी ,,, मोड पर मिलते हैं ,,,, ना , जाने इन्हें क्यु हमरा पता ही , क्यु मिलता है,, ©Ravindra Yewale रब्बी
Ravindra Yewale
सफर युहि नहीं , मिलता ,, दर बदर के , संघर्ष से ही ,, मिलता है रासता ,, होंसला हि है , जिंदगी का वासता ,, सफर है , अनुभ ओक रासता ,, ©Ravindra Yewale रब्बी
Ravindra Yewale
लगता है फिवचर ब्राइट , राइट जंजालो मे फसा , जिवन का राईड हैं लगता अपने को ब्राईड है झोल झपाटो से निकलना , खुदको सभालना दुखो का पहाड अपने सर पर लादना खुशियो का झुटा बहाना यहि तो है ज़िंदगी का ,, तराना सबको लगता , राईट है मगर बोहोत बडा मिस गाईड है अपना है हैल , फटे हाल ,,,, उनको लगता सहि है यार लगता है फिवचर ब्राईड है जंजालो मे फसा ,, जिनन का राईड है ©Ravindra Yewale रब्बी
Ravindra Yewale
मोहोब्बत हि क्यु , उसकी मौत बनि ,, जिंदगी क्यु ,, उसकी ख्खोप बनि ,, बस एक शक्स के लिए ,, उस्ने , कहानी खम्त कर ली ,, ©Ravindra Yewale रब्बी
Ravindra Yewale
दोस्ती बचपन की , थी यारो ,, कभी साथ नहीं , छोड़ा दोस्त का ,, नाहि ,, दोस्ती का ,, हालात तो, हर पल ,,बदल ते गऐ ,, मगर , दोस्ती नहीं तोडि ,, यारो ,,, ©Ravindra Yewale रब्बी
Ravindra Yewale
क्या लिखूं मॉ के , बारे में ,, मॉ के लिए , हर शब्द हर अल्फाज कम है ,, क्युकी मॉ की ममता समंदर से भि ज्यादा गहरि हैं ,, मॉ का प्रेम ,,मॉ की चाहत ,, आसमान में भि नहीं समा सकता ,, मॉ दुनिया है ,, मॉ हि हमारी जिंदगी ,, ©Ravindra Yewale रब्बी
Ravindra Yewale
चल महाकाल की नगरी में ,, महाकाल ने बुलाया है ,, छोड मोह मोया महाकाल दर्शन को आया ,, महाकाल के भक्त हैं निराले ,हर विपदा को , पार करने वाले ,, भोले नाथ है ,अकाल विक्राल महाकाल ,, हर रुप में है भोले नाथ ,, भक्तों को रखतें हैं , खुशहाल ,, ©Ravindra Yewale रब्बी
Ravindra Yewale
रह जाएंगे दिल में तेरे ,, भले ही , निकल जाए जिंदगी से तेरे ,, याद आएंगे तुझे ,, हम ,, क्युकी हमारी पहली प्रेमिका थी तुम ,, और आखरि ख्खाब,,हो तुम ,, ©Ravindra Yewale रब्बी
Ravindra Yewale
, ऐ रोज रोज की , उल्फते उन्हि मेहि हमारी चाहते ,, ढलते सुरज को , उगते सूरज को ,, हमारी पैचान हर रोज मिलि ,, ©Ravindra Yewale रब्बी