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Mohan Sardarshahari

गीतों की‌ गीतांजलि #प्रेरक

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Vk Virendra

गीता सार #gita #गीतासार #Bhakti

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Diwan G

गीतासार #गीता #सार Hindi #nojotohindi

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gita ka gyan  
मुनष्य जिस तरह की सोच रखता है,
वैसे ही वह आचरण करता है।
खुद का आत्म मंथन करके...
मनुष्य अपनी सोच में बदलाव ला सकता है।
जो उसके लिए काल्याणकारी होगा।


जय श्री कृष्णा #NojotoQuote गीतासार
#गीता #सार #NojotoHindi

Kumar Azad

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Kumar Azad

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Kumar Azad

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नितिन कुमार 'हरित'

गीता सार • नितिन कुमार हरित #NitinKrHarit #गीता #गीता_ज्ञान #Poetry

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गीता सार | नितिन कुमार हरित | १ |

जीवन के सुरभित पुष्पों पर, बन के यम मंडराऊं कैसे?
जीवन यदि मैं दे ना सकूं तो, मृत्यु का पान कराऊं कैसे?
मेरे हैं रिश्ते नाते सब से, इन पर बाण चलाऊं कैसे?
हे केशव इतना समझा दो, इस मन को समझाऊं कैसे?

शून्य ही केवल सत्य जगत में, जीवन चिन्ह है खालीपन का,
शून्य से उपजा शून्य को जाए मृत्यु समय सुन पूर्ण हवन का,
माटी माटी से मिल जाए, भ्रम ना टूटे चंचल मन का,
मैं ना मरूंगा, तू ना मरेगा, जीना मरना खेल है तन का।

ये जीवन एक युद्ध है अर्जुन, पल पल लड़ना काम हमारा,
उसका जगत में मोल ना कोई, जो जीवन के रण में हारा,
आज जो छोड़ोगे रण भूमि, तुम पे हंसेगा कल जग सारा,
जिसने जगत में सब कुछ जीता, उसको मिला ना खुद से किनारा।

दुर्योधन कब संमुख तेरे, सतजन का संताप खड़ा है,
दंभ खड़ा है, द्वेष खड़ा है, मैं मैं का आलाप खड़ा है,
जिसने ना माने रिश्ते नाते, नातों पर अभिशाप खड़ा है,
तेरे संग है धर्म खड़ा और तेरे संमुख पाप खड़ा है।

मन की दुर्बलता को त्यागो, मोह को छोड़ो, दृढ़ हो जाओ,
धर्म अधर्म के युद्ध में अर्जुन, धर्म ध्वजा का मान बढ़ाओ,
मैं ही मरूंगा, मैं ही मारूं, तुम केवल साधन बन जाओ,
धर्म के रक्षक, कर्म के संगत, निश्चय करके बाण चलाओ।

©नितिन कुमार 'हरित' गीता सार • नितिन कुमार हरित

#NitinKrHarit #गीता #गीता_ज्ञान

स्मृति.... Monika

#स्मृति की गीतांजलि #गीत (4) #Poetry

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स्मृति.... Monika

#स्मृति की गीतांजलि #गीत (4)

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स्मृति की गीतांजलि
गीत [4]
अपने ही विचारों की श्रृंखला से है मुझे पता चला
तुम ही परम सत्य हो जिसने मेरे ह्रदय में
सुबुद्धि को जागृत किया,
प्रेम के अश्रुधार से सकल कलख को बहा
और अंतर्मन में प्रणय -पुष्प को खिला
भाव की गंगा बहा,
 स्व ह्रदय में तव आलय बना दिया
तुम मुझमें हो निहित
यह कर्म से ही होगा विदित
मनसा, वाचा, कर्मणा से न कभी होऊँ मैं च्युत
मुक्ति का तुम द्वार हो,तुम अक्षर, तुम अच्युत |

©स्मृति.... Monika #स्मृति की गीतांजलि #गीत (4)

#sParihar

ये चलते बादल भी... एक अजीब संदेश दे जाते है
कुछ कहते नहीं... पर सब कुछ सिखला जाते है
एक एक बूँद... ना जाने कब से इकठ्ठा करते हैं
और एक बार में ही... सब कुछ बरसा जाते हैं
ये बादल भी... एक अजीब संदेश दे जाते है! 

अगर ना बरसें तो... पूरी दुनिया बुरा कह जाती है
गर गिराएं कुछ बूदें तो... सब हरियाली आ जाती है 
कुछ ज्यादा हो तो... चारों ओर हाहाकार मच जाती है 
फिर तो अपना रौद्र रूप ये... सबको दिखला जाते है 
और एक बार में ही... सब कुछ बरसा जाते है! 

कभी चमकते हैं... बिजलियों के बीच तो कहीं 
भयंकर... गड़गड़ाहट कर तांडव... दिखलाते है 
कभी संग पानी... गिरा कर अपनी बिजलियाँ 
फिर सब कुछ... विढ्यवंश कर जाते है 
कभी बना कर...गहरे काले रंग का साया 
हम सबको... बहुत ज्यादा डराते है
और एक बार में ही... सारा बरस जाते है!

कभी सारी नदियाँ... तालाबों को पूरा भर देते है 
कभी सारा जीवन ही... मृत्यु की ओर मोड़ देते है 
यूँ अचानक दिखा कर... अपना विकट रूप सबको 
कुछ नया इतिहास... लिख कर रख जाते है 
कभी बनकर वरदान... हम सबके जीवन में 
एक नई सुबह... नई उम्मीद जगा जाते है 
और दे जाते है हमे... अपना आने वाला कल 
की सवार लो अपने हिसाब से...जिसे संवरना हो
कल कौन जाने..? कहीं फिर से बरसा जाते है! #गीत_बादलों_की_कश्मकश
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