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Pankaj kumar
मेरे अंदर से आवाज आई बस अब खड़ी हो जा - थक, हार, टूट मत पूरे विश्व का निर्माण करने वाली तू एक मात्र शक्ति हो... ये तुम्हें जन-जन को बतलाना है। तेरे बिना यहां कोई नहीं... इस शक्ति को सबको आबरू करवाना है। आज की नारी शक्ति जीवन में खुद को और भी सिद्ध करके दिखाना है। मेरे (नारी) बिना यह सृष्टि अधूरा है। ये छोटा-सा घर नहीं, बल्कि पूरा विश्व हमारा आशियाना है...-2 Written by S Pandey ©Pankaj kumar नारी की अंतरात्मा की आवाज #navratra
Rahul Sharma
Sins are like seeds, hidden deep in the layers of heart. Unknowingly they are constantly watered by dying conscience. They develop roots. They are sprouted. And one day they will bloom. पाप बीज की तरह हैं, जो दिल की परतों में छिपाए जाते हैं। अनजाने में वे मरती हुई अंतरात्मा की आवाज से लगातार जल प्राप्त करते हैं। वे जड़ें विक
Shivkumar
" इज़हार " खुद से खुद की गलतियों का इज़हार करके देखो.. अपने अंतरात्मा की आवाज को पहचान करके देखो.. तुम लोगों को बेवकूफ बनाना छोड़ दोगे.. तुम अपने आप को एक बार खुद को सामने वाले के स्थान करके देखो.. ✍S.K.BRAMAN ©Shivkumar " इज़हार " खुद से खुद की गलतियों का इज़हार करके देखो.. अपने अंतरात्मा की आवाज को पहचान करके देखो.. तुम लोगों को बेवकूफ बनाना छोड़ दोगे..
Sonam kuril
मुझे एकांत पसंद है , हाँ ,मुझे एकांत पसंद है , एकांत मुझे सिखाता है , अकेले जीना , अकेले खुश रहना , खुद को बेहतर समझ पाने का एक जरिया , खुदा से फरियाद करना , अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनना , ये सब मुमकिन होता है , एकांत हमें ख़्वाबों को देखने से नहीं रोकता , बल्कि ख्वाहिशों को पूरा करने का रास्ता दिखाता है , यूँही नहीं बीत जाता वक़्त मेरा अकेले , एकांत हमें खुद से मिलाता है , खुद से बातें करना सिखाता है , ये एकांत ही है जो मुझे अकेले में भी अकेला होने नहीं देता , सुन लेती हूँ अपने धड़कनों की धक् धक् को , हाँ बस इसलिए मुझे एकांत पसंद है | #EKANT मुझे एकांत पसंद है , हाँ ,मुझे एकांत पसंद है , एकांत मुझे सिखाता है , अकेले जीना , अकेले खुश रहना , खुद को बेहतर समझ पाने का एक जरिया
Ayush Shukla
'सड़क और मुसाफ़िर' जीवन के उस पराए शहर में न जाने कितने बिखरे गलियों में दर-ब-दर भटका हूँ। जब गली की सड़कें अनंत यात्रा का महामार्ग होने को एक चौराहा में) आतुरता से मिलती हैं ।। असीम अभीप्सा लिए मैं भी उन गलियों से गुजरते हुए सड़क के सीने पर दौड़ लगाते-लगाते जब कई चौराहे से टकराता हूँ। हर चौराहे पर कई सड़क बाहें फैलाए एक नए सफ़र के साथ खड़ी होती हैं, तब ये समझना बड़ा जटिल हो जाता है कि किस रास्ते का आलिंगन करूँ। इस कठिन निर्णय के मैदान में चेतना और अंतरात्मा की आवाज़ के बीच एक घमासान गृहयुद्ध छिड़ जाता है। तब ये मालूम पड़ता है कि ये आंतरिक युद्ध उतना ही स्वाभाविक है जितना संसार का सूर्य और चंद्रमा के समक्ष नियमित रूप से गतिशील होना । कभी-कभी संशय के बादल कुछ पलों के लिए इनकी रोशनी को अवरुद्ध कर देते हैं परंतु सदैव के लिए नहीं! ये सिविल वॉर हमें सही निष्कर्ष तक जाने में मदद तो करते ही हैं साथ ही चंद्रगुप्त और नेपोलियन जैसा एक उत्कृष्ट नेतृत्वकर्ता व योद्धा बनने में भी बड़े सहायक होते हैं ।। अंततः चेतना और अंतरात्मा की इस सम्मलित पुकार को सुनने के पश्चात मध्य-मार्ग अपनाते हुए जब दोनों में सामंजस्य स्थापित कर निष्कर्ष के । किनारे आता हूँ, और एक रास्ता पकड़ अपने निर्धारित मंज़िल की ओर निकल जाता हूँ, तो इन सब उतार-चढ़ाव में एक बात स्पष्ट हो जाती है कि जीवन की इस अनिश्चित यात्रा में सड़क भी मुसाफिर का इंतज़ार करती हैं. सड़क भी अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाना चाहती हैं। आयुष शुक्ला "भईया जी" ©Ayush Shukla Safar 'सड़क और मुसाफ़िर' जीवन के उस पराए शहर में न जाने कितने बिखरे गलियों में दर-ब-दर भटका हूँ। जब गली की सड़कें अनंत यात्रा का महामार्ग ह
S.Badoni गढ़वाली
कुछ तुम ही कहो , मौन हो स्तब्ध हूं मैं । कुछ तो तुम उपकार करो , शब्द दो अशब्द हूं मैं।। क्या मुझे कुछ अनुभव है ? हां, प्रतीत तो कुछ होता सा है । कहो , कुछ तुम ही कहो, आखिर क्यों, मन से क्षुभित हूं मैं ।। क्या मुझे कुछ दुःख है ? दुःख, वही प्रेम का वियोग सा है । शायद हां, लेकिन तुम कुछ कहो, क्यों आखिर हृदय से व्यथित हूं मैं ।। क्या तुम भी समझ ना पायी मुझे , तो कौन समझेगा ? तुम्हारे बिन अधूरा सा हूं मैं । कहो, कहो ना , तुम कुछ कह ही दो ना , आखिर कब तक शब्द बिन निःशब्द रहूं मैं ।। कुछ तुम ही कहो , ........................... ।। ©S.Badoni गढ़वाली #अंतरात्मा
Vikas Sharma Shivaaya'
तेरा संगी कोई नहीं सब स्वारथ बंधी लोइ । मन परतीति न उपजै, जीव बेसास न होइ । तेरा साथी कोई भी नहीं है,सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात की प्रतीति –भरोसा –मन में उत्पन्न नहीं होता तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता।वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है जब संसार के सच को जान लेता है –इस स्वार्थमय सृष्टि को समझ लेता है –तब ही अंतरात्मा की ओर उन्मुख होता है –भीतर झांकता है ! 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' अंतरात्मा
Hitesh Singh
Rain कुछ ख्वाब हैं इन बंद आँखों में. बस इसी चीज से परेशान हूँ. कि आँखे खोलूंगा तो ख्बाब पूरे होंगे या टूटेंगे.. अंतरात्मा