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KK Mishra

सुधारी जा सकती है #nojotophoto

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 सुधारी जा सकती है

Dakshi Raj

गलतियाँ सुधारी जा सकती है #शायरी

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गलतियाँ सुधारी जा सकती है और गलतफमियां भी सुधारी जा सकती है मगर गलत सोच कभी भी नहीं सुधारी जा सकती है...!!! 💯

©Dakshi Raj गलतियाँ सुधारी जा सकती है

Manju Bahuguna

# गलतियां सुधारी जा सकती है #शायरी

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Kanhaiya Saini

गलत सोच सुधारी नहीं #Motivation #विचार

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_kali_

गलती सुधारी जा सकती हैं, लेकिन गुनाह की सजा ही भुगतनी होती है। #गुनाह #मोहब्बत

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Alewar A

आदत सुधारी जा सकती है.. पर मुल स्वभाव बदलना बहोत मुश्किल होता है..इसीलिए खुद को सुधारो..तभी दूसरों के स्वभाव के कारण खुद को तकलीफ नहीं होगी!

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सवय बदलु शकते.....
पण...स्वभाव बदलणे मात्र फारच कठीण... बदला स्वतःला....तर यातना न होई स्वः मनाला.... आदत सुधारी जा सकती है.. पर मुल स्वभाव बदलना बहोत मुश्किल होता है..इसीलिए खुद को सुधारो..तभी दूसरों के स्वभाव के कारण खुद को तकलीफ नहीं होगी!

Kushwaha Arya Status

https://youtube.com/shorts/cWzJIvg4EVE?feature=share आप सभी स्रोता के निवेदन है की बहुत अच्छा एक सैड शायरी लेकर आया हू :- सुधारी भाईया के स

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रजनीश "स्वच्छंद"

सच और झूठ- एक किस्सा कोनों में सिसकतीं मांएं थीं, गोदों में बिलखते बच्चे थे, जो बात सुनी थी भाषण में कितने झूठे कितने सच्चे थे। सत्तर सालो #Poetry #hindipoetry #Haquiqat

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सच और झूठ- एक किस्सा

कोनों में सिसकतीं मांएं थीं, गोदों में बिलखते बच्चे थे,
जो बात सुनी थी भाषण में कितने झूठे कितने सच्चे थे।

सत्तर सालों की एक कहानी, जो आज भी सच्ची लगती है।
दूर गरीबी है करनी हमको, बस बातों में ही अच्छी लगती है।

कभी ठंढ तो कभी दोपहर, सड़कों पे गरीब ही मरता है।
क्या फर्क पड़े उन कानों को, जो सत्ता के करीब ही रहता है।

दो जून रोटी की खातिर, घर क्या, तन भी बिक जाता है।
अंतड़ियों में पेट चिपकते, फिर ईमान कहाँ टिक पाता है।

ज्ञान की बातें लगतीं तब अछि, जब पेट मे रोटी होती है।
क्या बचपन क्या उनकी जवानी, जिस तन सिर्फ लंगोटी होती है।

दादी मां के वो किस्से, अब लगता है कितने अच्छे थे।
जो बात सुनी थी भाषण में कितने झूठे कितने सच्चे थे।


नए दौर की नई चमक है, विकास के हम भी पुजारी है।
पर कितनो का हमने पेट भरा, दुनिया को कितनी सुधारी हैं।

किसान वही, वो मकान वही, बस पेड़ों पे फंदे लगते हैं।
जिन साखों पे थी झूली बिटिया, वो अब मौत के धंधे लगते हैं।

हर लम्हा एक नई कहानी, वो धरती की दरारें कहती हैं।
एक नहर बने, तालाब बने, ये तो सब सरकारें कहतीं हैं।

क्या बदला, कितना बदला, रख दिल पे हाथ जरा बोलो।
धरती पे उतर कर देखो जरा, बातों को हकीकत से तोलो।

सच की जो बुनियाद रखी थी सोचो कितने कच्चे थे।
जो बात सुनी थी भाषण में कितने झूठे कितने सच्चे थे।

©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote सच और झूठ- एक किस्सा

कोनों में सिसकतीं मांएं थीं, गोदों में बिलखते बच्चे थे,
जो बात सुनी थी भाषण में कितने झूठे कितने सच्चे थे।

सत्तर सालो

Arora PR

सुधारक #विचार

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Divya Surbhi

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