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Dakshi Raj
गलतियाँ सुधारी जा सकती है और गलतफमियां भी सुधारी जा सकती है मगर गलत सोच कभी भी नहीं सुधारी जा सकती है...!!! 💯 ©Dakshi Raj गलतियाँ सुधारी जा सकती है
_kali_
मेरा गुनाह ये नहीं था की मेंने उनसे मोहब्बत की, मेरा गुनाह तो ये था की मेंने सिर्फ़ उनसे ही मोहब्बत की... ©_kali_ गलती सुधारी जा सकती हैं, लेकिन गुनाह की सजा ही भुगतनी होती है। #गुनाह #मोहब्बत
Alewar A
सवय बदलु शकते..... पण...स्वभाव बदलणे मात्र फारच कठीण... बदला स्वतःला....तर यातना न होई स्वः मनाला.... आदत सुधारी जा सकती है.. पर मुल स्वभाव बदलना बहोत मुश्किल होता है..इसीलिए खुद को सुधारो..तभी दूसरों के स्वभाव के कारण खुद को तकलीफ नहीं होगी!
Kushwaha Arya Status
रजनीश "स्वच्छंद"
सच और झूठ- एक किस्सा कोनों में सिसकतीं मांएं थीं, गोदों में बिलखते बच्चे थे, जो बात सुनी थी भाषण में कितने झूठे कितने सच्चे थे। सत्तर सालों की एक कहानी, जो आज भी सच्ची लगती है। दूर गरीबी है करनी हमको, बस बातों में ही अच्छी लगती है। कभी ठंढ तो कभी दोपहर, सड़कों पे गरीब ही मरता है। क्या फर्क पड़े उन कानों को, जो सत्ता के करीब ही रहता है। दो जून रोटी की खातिर, घर क्या, तन भी बिक जाता है। अंतड़ियों में पेट चिपकते, फिर ईमान कहाँ टिक पाता है। ज्ञान की बातें लगतीं तब अछि, जब पेट मे रोटी होती है। क्या बचपन क्या उनकी जवानी, जिस तन सिर्फ लंगोटी होती है। दादी मां के वो किस्से, अब लगता है कितने अच्छे थे। जो बात सुनी थी भाषण में कितने झूठे कितने सच्चे थे। नए दौर की नई चमक है, विकास के हम भी पुजारी है। पर कितनो का हमने पेट भरा, दुनिया को कितनी सुधारी हैं। किसान वही, वो मकान वही, बस पेड़ों पे फंदे लगते हैं। जिन साखों पे थी झूली बिटिया, वो अब मौत के धंधे लगते हैं। हर लम्हा एक नई कहानी, वो धरती की दरारें कहती हैं। एक नहर बने, तालाब बने, ये तो सब सरकारें कहतीं हैं। क्या बदला, कितना बदला, रख दिल पे हाथ जरा बोलो। धरती पे उतर कर देखो जरा, बातों को हकीकत से तोलो। सच की जो बुनियाद रखी थी सोचो कितने कच्चे थे। जो बात सुनी थी भाषण में कितने झूठे कितने सच्चे थे। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote सच और झूठ- एक किस्सा कोनों में सिसकतीं मांएं थीं, गोदों में बिलखते बच्चे थे, जो बात सुनी थी भाषण में कितने झूठे कितने सच्चे थे। सत्तर सालो
Arora PR
इस दुनिया को अंगिनित तथाकथित सुधारको ने इस पृथ्वी को सुधारने की कोशिश की हैँ और ये कटु सत्य हैँ कि इन लोगो ने जितनी कोशिश की ज़मीन की धूल और काँटों को साफ कर देने की उतनी ही ज्यादा मुश्किल पड़ ती गई हैँ ये पृथ्वी ये दुनिया.. इन तथाकथित सुधारको. के कार्ण ही . मनुष्य जाति इतनी पीदाओ मे उलझ गई हैँ कि आज कोई छुटकारा भी नहीं दिखता ©Arora PR सुधारक