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Anuj Ray
अरे भई ऊर्फी जावेद आजकल, बड़े बड़े कमाल कर रही है। फाड़कर बुर्खा कभी और कभी हिजाब रोज नए-नए धमाल कर रही है। कभी जन्नत के नज़ारे दिखा रही, कभी आसमान बे रुमाल कर रही है। ©Anuj Ray #ऊर्फी जावेद आजकल..
BANDHETIYA OFFICIAL
इस जिस्म के छूटने से मतलब है, फिर देर नहीं , तुम मेरे क्या,हम तेरे क्या ? किसको किसका हो चक्कर कुछ, ले देके,दे लेके,लेने-देने को हों फेरे क्या ? ©BANDHETIYA OFFICIAL सात ऊर्फ साथ फेरे ! #candle
परवाज़ हाज़िर ........
तू है रातो का सफर तू है तो क्या है डर तुझसा नहीं कोई तू है मेरी नजर खामोंस है मेरा हर पल हर आज तू है उसमें बशर ......... #zazbaat नजरो से #मासुमियत को एक #दिल -ए- नादा समझ सकता है हा हर #ज्जबात को पढ़कर हसी को अन्दाज बना देता है य #फितुर ... ऊर्फ
रिंकी✍️
विश्वास की खोज में निकलता हूं हर रोज मैं लेकिन देखता हूं.......... लोगो को झूठ के बोझ तले दबे जा रहे है हर रोज वे धोखे की वजह है स्वार्थ डूबे जा रहे है लोग लोभ में हर तरफ़ फरेब है इस बात का खेद है बह रहा देखो कितना खून है..... लेकिन फिर भी बस लोगो को आगे निकलने का जुनून है लेकिन मन में एक आश है ढूंढ लूंगा इस भीड़ में भी विश्वास मैं ✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या विश्वास की खोज में निकलता हूं हर रोज मैं लेकिन देखता हूं.......... लोगो को झूठ के बोझ तले दबे जा रहे है हर रोज वे धोख
रिंकी✍️
तपाक से रोटी चकले पर बेली और सटाक से तवे पर बेलन पर बैठ गई उसकी हथेली बेलन– चकले की सहेली थोड़े सने आटे हाथो में थोड़े अनमने ढंग से लगे उसके कुछ बालों में बन रहे है हाथों में कुछ गोल गोल से एक बराबर बनाए गये जैसे तोल मोल के फिर बेलन –हाथो का कमाल घूम रहा चकले पर जैसे कोई थाल। गर्म– गर्म ,नरम –नरम से .... तवे पर सिकती तेरी हाथो की रोटी चूल्हे से निकली ✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या तपाक से रोटी चकले पर बेली और सटाक से तवे पर बेलन पर बैठ गई उसकी हथेली बेलन– चकले की सहेली थोड़े सने आटे हाथो में थोड़े अनमने ढंग से लगे
रिंकी✍️
जनता अब जाग जाग ✍️👇 कविता अनुशीर्षक में पढे— % & भाग–भाग अब भ्रष्टाचारी चहु दिशा यही राग हमारी अब भड़क उठी जनता मेरी बस बहुत हुआ ! ले ह्रदय में आग –आग जनता मेरी अब जाग –जाग ले खींच अब ....
रिंकी✍️
उठते कदम जब डगमगाते है जब गिरते गिरते संभल जाते है अंधेरे बंद कमरे में , जब कोई न दिखे... एक दीया है, जो दूर कही जल रहा है... वो दीया है किसी हताश का हताश की आस्था और विश्वास का जिसके रोशन से हल्की रोशन है जगह उस रोशन से संभल जाते है लोग संभल जाते है लोग लखड़ाने से । अंधेरे में , अकेले में , बिखर जाने से वो जल रहा दीया , एक विश्वास है जो जल रहा है दूर मगर एक आश है रास्ता है यही कही बस उस रास्ते की तलाश है ✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या उठते कदम जब डगमगाते है जब गिरते गिरते संभल जाते है अंधेरे बंद कमरे में , जब कोई न दिखे... एक दीया है, जो दूर कही जल रहा है... वो दीया है कि
रिंकी✍️
आज सोचा कि सुबह की चाय , आज तुम्हारे साथ हो रोज़ की थकावट से आज थोड़ा आराम मिले शाम तक तुम्हारी महक मुझमें यूंही महकती रहे आज मुस्कुराहट शाम तक यूंही रहे बरकरार चलना तो है हर रोज , उसी रास्ते पर हमे रोज़ वही काम, रोज वही भागदौड़ वही पुराने रास्ते वही पुराना मोड़ लेकिन आज विचार आया आज क्यों न एक नया रास्ता लिया जाए तुम भी तो नहीं आती हो कभी यहां भूले बिसरे शायद तुम्हारे पास भी वक़्त नही । तो क्यों न आज थोड़ा रुककर एक चाय हो जाये जिंदगी की इस भागदौड़ में , आज थोड़ा सा बदलाव किया जाए ✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या आज सोचा कि सुबह की चाय , आज तुम्हारे साथ हो रोज़ की थकावट से आज थोड़ा आराम मिले शाम तक तुम्हारी महक मुझमें यूंही महकती रहे आज मुस्कुराहट
Vijay Tyagi
"रावण अवश्य जलाऊँगा बात की तह में जाऊँगा.." जवाब अनुशीर्षक में पढ़े..🙏 कैसी मर्यादा,कौन मर्यादापुरूषोत्तम , जो सीता को परखता था, रावण का क्यो दहन करें, जो सीता को पावन रखता था, इस पापी कलयुग में, एक बात समझ में
रिंकी✍️
कविता नीचे अनुशीर्षक में पढ़े बहकर निकला कुछ तेरे अंदर राग सा तेरा मुख दमकता है कुछ आग सा पानी बूंद बूंद टपकते तेरे ललाट से तेरे लट चिपके हैं तेरे गाल से