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Digant K. Dusara

 अश्वमेध यज्ञ वलसाड़ गुजरात 2019

अश्वमेध यज्ञ वलसाड़ गुजरात 2019

5 Love

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Bhaskar Anand

मैं अवशेष हूँ अवस्थाओं का निजता का व्यवस्थाओं का अहंकारों का व्यवहारों का व्यथाओं का अलंकारों का मैं अवशेष हूँ अवस्थाओं का !! मैं सामंजस्य #Quotes

मैं अवशेष हूँ अवस्थाओं का निजता का व्यवस्थाओं का अहंकारों का व्यवहारों का व्यथाओं का अलंकारों का मैं अवशेष हूँ अवस्थाओं का !! मैं सामंजस्य #Quotes

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दामिनी नारायण सिंह Quotes

अयोध्या 🙏 तुम्हारे लिये फैसला होगा;
हमारे लिये उन अनगिनत
अस्थियों का वैदिक विसर्जन है,
जिनके शरीर में पत्थर बाँधते वक्त;
रावण की सेना ने
इतना भी जानना

तुम्हारे लिये फैसला होगा; हमारे लिये उन अनगिनत अस्थियों का वैदिक विसर्जन है, जिनके शरीर में पत्थर बाँधते वक्त; रावण की सेना ने इतना भी जानना #कविता #MyPoetry #राममंदिर #Ayodhya #daminiquote #ayodhyaverdict #भारतीयसंस्कृति

12 Love

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Shaarang Deepak

Ram Raksha Stotram (रामरक्षास्तोत्रम्) shlok [22, 23 & 24] in sanskrit with its meaning in Hindi || Let's Learn with The Mystic Learner || S

Ram Raksha Stotram (रामरक्षास्तोत्रम्) shlok [22, 23 & 24] in sanskrit with its meaning in Hindi || Let's Learn with The Mystic Learner || S #समाज #Rammandir #JaiShreeRam #Shorts #jaishriram #Ayodhya #Ramram #AyodhyaRamMandir #ramrakshastotram

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Vibhor VashishthaVs

Meri Diary #Vs❤❤
‼️💥सुप्रभात💥‼️
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनीं विश्वपूजिताम् । 
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम् ॥॥ 
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् । 
यः पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥॥
अर्थात:-
 वृंदा वृंदावनी विश्वपावनी विश्वपूजिता पुष्पसारा नंदिनी 
तुलसी और कृष्ण जीवनी यह तुलसी जी के आठ नाम
 है। यह सार्थक नामावली स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। जो तुलसीजी 
की पूजा करके इस नामाष्टक को पढ़ता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है..।
‼️🚩मेरी संस्कृति🌱 मेरा अभिमान🚩‼️
जब विश्व को सभ्यता का भी नहीं पता था।
तब से हमारा देश संस्कारों की 🌿तुलसी🌿 से आँगन सजा रहा था..।
सभी सनातनियों को 🌿तुलसी🌿 पूजन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...l
🙏तुलसी माता आपको कोटि कोटि प्रणाम🙏
🙏🏵जय जय श्री हरि🏵🙏
💐आप सभी का दिन शुभ एवं मंगलमय हो💐
✍️Vibhor vashishtha Vs Meri Diary #Vs❤❤
‼️💥सुप्रभात💥‼️
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनीं विश्वपूजिताम् । 
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम् ॥॥ 
एतन्नामाष्टकं

Meri Diary Vs❤❤ ‼️💥सुप्रभात💥‼️ वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनीं विश्वपूजिताम् । पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम् ॥॥ एतन्नामाष्टकं #yqdidi #YourQuotes #tulsi #yqquotes #yourquotebaba #yourquotedidi #vs❤❤ #sanatanadharma

0 Love

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रजनीश "स्वच्छंद"

काल सर्प।।

प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।
विकल मन पंछी हुआ, अंतर्मन भी है दुत्कारता।

स्वार्थलोलुप मनु संतति, है आत्मा मूर्छित पड़ी।
अहं स्वर है कर्ण भेदता, है वाणी लज्जित खड़ी।
वनचर मनुज के भेष में, दम्भ पाले ललकारता,
आडंबरों के युग मे चित बैठ अंदर धिक्कारता।
किसी अश्वमेधी यज्ञ का बन अश्व सरपट भागता,
निर्बल सबल सब भेदहींन, बढ़ रहा सबको धांगता।
जीवात्मा नेपथ्य से, है कराहता और पुकारता।
प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।

किसके उदर का एक निवाला धूलधूसरित हो रहा,
अनाजों के ढेर चढ़, रोटियों का ही गणित हो रहा।
इस समर में था कौन जीता, कौन था तटस्थ बना,
पाप है या पुण्य है ये, एक दूजे में था समस्त सना।
धन की बोरी कोई लादे, कष्ट कोई झुक है ढो रहा,
पाप कालिख है अब नहीं, जा गंगा में सब धो रहा।
रहे कब तलक वो मूक बैठे, है उठ अब हुंकारता।
प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।

बस किनारे बैठ कर, जलधार की थी विवेचना,
मन भटकता मझधार में और सो रही थी चेतना।
गहराई को मापा नहीं, थाह नहीं कोई वेग की,
स्वप्नसज्जित लालसा, कमी रही एक डेग की।
ले लेखनी लिख रहा, मैं आज मनुज के हार को,
टाल मैं जाऊं कहीं, इसके भावी समूल संहार को।
मैं भविष्य हूँ देखता, कागज़ पे उसे हूँ उतारता।
प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।

©रजनीश "स्वछंद" काल सर्प।।

प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता।
विकल मन पंछी हुआ, अंतर्मन भी है दुत्कारता।

स्वार्थलोलुप मनु संतति, है आत्मा मूर्छि

काल सर्प।। प्रतिकूल है बेला खड़ी, है काल सर्प फुंफकारता। विकल मन पंछी हुआ, अंतर्मन भी है दुत्कारता। स्वार्थलोलुप मनु संतति, है आत्मा मूर्छि #Poetry #Quotes #Life #kavita #hindikavita #hindipoetry

4 Love

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N S Yadav GoldMine

अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष्ण के सेवक के रूप में किया| सेवक की चिंता स्वामी की चिंता बन जाती है|
{Bolo Ji Radhey Radhey}
अर्जुन का युद्ध अपने ही पुत्र बब्रुवाहन के साथ हो गया, जिसने अर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया... और कृष्ण दौड़े चले आए... उनके प्रिय सखा और भक्त के प्राण जो संकट में पड़ गए थे|

अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा बब्रुवाहन ने पकड़ लिया और घोड़े की देखभाल की जिम्मेदारी अर्जुन पर थी| बब्रुवाहन ने अपनी मां चित्रांगदा को वचन दिया था कि मैं अर्जुन को युद्ध में परास्त करूंगा, क्योंकि अर्जुन चित्रांगदा से विवाह करने के बाद लौटकर नहीं आया था|

और इसी बीच चित्रांगदा ने बब्रुवाहन को जन्म दिया था| चित्रांगदा अर्जुन से नाराज थी और उसने अपने पुत्र को यह तो कह दिया था कि तुमने अर्जुन को परास्त करना है लेकिन यह नहीं बताया था कि अर्जुन ही तुम्हारा पिता है... और बब्रुवाहन मन में अर्जुन को परास्त करने का संकल्प लिए ही बड़ा हुआ| शस्त्र विद्या सीखी, कामाख्या देवी से दिव्य बाण भी प्राप्त किया, अर्जुन के वध के लिए|

और अब बब्रुवाहन ने अश्वमेध के अश्व को पकड़ लिया तो अर्जुन से युद्ध अश्वयंभावी हो गया| भीम को बब्रुवाहन ने मूर्छित कर दिया| और फिर अर्जुन और बब्रुवाहन का भीषण संग्राम हुआ| अर्जुन को परास्त कर पाना जब असंभव लगा तो बब्रुवाहन ने कामाख्या देवी से प्राप्त हुए दिव्य बाण का उपयोग कर अर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया|

श्रीकृष्ण को पता था कि क्या होने वाला है, और जो कृष्ण को पता था, वही हो गया| वे द्वारिका से भागे-भागे चले आए| दाऊ को कह दिया, "देर हो गई, तो बहुत देर हो जाएगी, जा रहा हूं|"

कुंती विलाप करने लगी... भाई विलाप करने लगे... अर्जुन पांडवों का बल था| आधार था, लेकिन जब अर्जुन ही न रहा तो जीने का क्या लाभ|

मां ने कहा, "बेटा, तुमने बीच मझदार में यह धोखा क्यों दिया? मां बच्चों के कंधों पर इस संसार से जाती है और तुम मुझसे पहले ही चले गए| यह हुआ कैसे? यह हुआ क्यों? जिसके सखा श्रीकृष्ण हों, जिसके सारथी श्रीकृष्ण हो, वह यों, निष्प्राण धरती पर नहीं लेट सकता... पर यह हो कैसे गया?"

देवी गंगा आई, कुंती को कहा, "रोने से क्या फायदा, अर्जुन को उसके कर्म का फल मिला है| जानती हो, अर्जुन ने मेरे पुत्र भीष्म का वध किया था, धोखे से| वह तो अर्जुन को अपना पुत्र मानता था, पुत्र का ही प्यार देता था| लेकिन अर्जुन ने शिखंडी की आड़ लेकर, मेरे पुत्र को बाणों की शैया पर सुला दिया था| क्यों? भीष्म ने तो अपने हथियार नीचे रख दिए थे| वह शिखंडी पर बाण नहीं चला सकता था| वह प्रतिज्ञाबद्ध था, लेकिन अर्जुन ने तब भी मेरे पुत्र की छाती को बाणों से छलनी किया| तुम्हें शायद याद नहीं, लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है... तब मैं भी बहुत रोई थी| अब अर्जुन का सिर धड़ से अलग है| बब्रुवाहन ने जिस बाण से अर्जुन का सिर धड़ से अलग किया है, वह कामाख्या देवी माध्यम से मैंने ही दिया था|

अर्जुन को परास्त कर पाना बब्रुवाहन के लिए कठिन था, आखिर उसने मेरे ही बाण का प्रयोग किया और मैंने अपना प्रतिशोध ले लिया| अब क्यों रोती हो कुंती? अर्जुन ने मेरे पुत्र का वध किया था और अब उसी के पुत्र ने उसका वध किया है, अब रोने से क्या लाभ? जैसा उसने किया वैसा ही पाया| मैंने अपना प्रतिशोध ले लिया|"

और प्रतिशोध शब्द भगवान श्रीकृष्ण ने सुन लिया... हैरान हुए... अर्जुन का सिर धड़ स अलग था| और गंगा मैया, भीष्म की मां अर्जुन का सिर धड़ से अलग किए जाने को अपने प्रतिशोध की पूर्ति बता रही हैं... श्रीकृष्ण सहन नहीं कर सके... एक नजर भर, अर्जुन के शरीर को, बुआ कुंती को, पांडु पुत्रों को देखा... बब्रुवाहन और चित्रांगदा को भी देखा... कहा, "गंगा मैया, आप किससे किससे प्रतिशोध की बात कर रही हैं? बुआ कुंती से... अर्जुन से, या फिर एक मां से? मां कभी मां से प्रतिशोध नहीं ले सकती| मां का हृदय एक समान होता है, अर्जुन की मां का हो या भीष्म की मां का... आपने किस मां प्रतिशोध लिया है?" गंगा ने कहा, "वासुदेव ! अर्जुन ने मेरे पुत्र का उस समय वध किया था, जब वह निहत्था था, क्या यह उचित था? मैंने भी अर्जुन का वध करा दिया उसी के पुत्र से... क्या मैंने गलत किया? मेरा प्रतिशोध पूरा हुआ... यह एक मां का प्रतिशोध है|"

श्रीकृष्ण ने समझाया, "अर्जुन ने जिस स्थिति में भीष्म का वध किया, वह स्थिति भी तो पितामह ने ही अर्जुन को बताई थी, क्योंकि पितामह युद्ध में होते, तो अर्जुन की जीत असंभव थी... और युद्ध से हटने का मार्ग स्वयं पितामह ने ही बताया था, लेकिन यहां तो स्थिति और है| अर्जुन ने तो बब्रुवाहन के प्रहारों को रोका ही है, स्वयं प्रहार तो नहीं किया, उसे काटा तो नहीं, और यदि अर्जुन यह चाहता तो क्या ऐसा हो नहीं सकता था... अर्जुन ने तो आपका मान बढ़ाया है, कामाख्या देवी द्वारा दिए गए आपके ही बाण का... प्रतिशोध लेकर आपने पितामह का, अपने पुत्र का भी भला नहीं किया|"

गंगा दुविधा में पड़ गई| श्रीकृष्ण के तर्कों का उसके पास जवान नहीं था| पूछा, "क्या करना चाहिए, जो होना था सो हो गया| आप ही मार्ग सुझाएं|"

श्रीकृष्ण ने कहा, "आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई, उपाय तो किया ही जा सकता है, कोई रास्ता तो होता ही है| जो प्रतिज्ञा आपने की, वह पूरी हो गई| जो प्रतिज्ञा पूरी हो गई तो अब उसे वापस भी लिया जा सकता है, यदि आप चाहें तो क्या नहीं हो सकता? कोई रास्ता तो निकाला ही जा सकता है|"

गंगा की समझ में बात आ गई और मां गंगा ने अर्जुन का सिर धड़ से जोड़ने का मार्ग सुझा दिया| यह कृष्ण के तर्कों का कमाल था| जिस पर श्रीकृष्ण की कृपा हो, जिसने अपने आपको श्रीकृष्ण को सौंप रखा हो, अपनी चिंताएं सौंप दी हों, अपना जीवन सौंप दिया हो, अपना सर्वस्व सौंप दिया हो, उसकी रक्षा के लिए श्रीकृष्ण बिना बुलाए चले आते हैं| द्वारिका से चलने पर दाऊ ने कहा था, 'कान्हा, अब अर्जुन और उसके पुत्र के बीच युद्ध है, कौरवों के साथ नहीं, फिर क्यों जा रहे हो?' तो कृष्ण ने कहा था, 'दाऊ, अर्जुन को पता नहीं कि वह जिससे युद्ध कर रहा है, वह उसका पुत्र है| इसलिए अनर्थ हो जाएगा| और मैं अर्जुन को अकेला नहीं छोड़ सकता|' भगवान और भक्त का नाता ही ऐसा है| दोनों में दूरी नहीं होती| और जब भक्त के प्राण संकट में हों, तो भगवान चुप नहीं बैठ सकते|

अर्जुन का सारा भाव हो, और कृष्ण दूर रहें, यह हो ही नहीं सकता| याद रखें, जिसे श्रीकृष्ण मारना चाहें, कोई बचा नहीं सकता और जिसे वह बचाना चाहें, उसे कोई मार नहीं सकता| अर्जुन और श्रीकृष्ण हैं ही एक... नर और नारायण|

©N S Yadav GoldMine
  अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष

अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष #पौराणिककथा

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N S Yadav GoldMine

{Bolo Ji Radhey Radhey}
अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष्ण के सेवक के रूप में किया| सेवक की चिंता स्वामी की चिंता बन जाती है|

अर्जुन का युद्ध अपने ही पुत्र बब्रुवाहन के साथ हो गया, जिसने अर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया... और कृष्ण दौड़े चले आए... उनके प्रिय सखा और भक्त के प्राण जो संकट में पड़ गए थे|

अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा बब्रुवाहन ने पकड़ लिया और घोड़े की देखभाल की जिम्मेदारी अर्जुन पर थी| बब्रुवाहन ने अपनी मां चित्रांगदा को वचन दिया था कि मैं अर्जुन को युद्ध में परास्त करूंगा, क्योंकि अर्जुन चित्रांगदा से विवाह करने के बाद लौटकर नहीं आया था|

और इसी बीच चित्रांगदा ने बब्रुवाहन को जन्म दिया था| चित्रांगदा अर्जुन से नाराज थी और उसने अपने पुत्र को यह तो कह दिया था कि तुमने अर्जुन को परास्त करना है लेकिन यह नहीं बताया था कि अर्जुन ही तुम्हारा पिता है... और बब्रुवाहन मन में अर्जुन को परास्त करने का संकल्प लिए ही बड़ा हुआ| शस्त्र विद्या सीखी, कामाख्या देवी से दिव्य बाण भी प्राप्त किया, अर्जुन के वध के लिए|

और अब बब्रुवाहन ने अश्वमेध के अश्व को पकड़ लिया तो अर्जुन से युद्ध अश्वयंभावी हो गया| भीम को बब्रुवाहन ने मूर्छित कर दिया| और फिर अर्जुन और बब्रुवाहन का भीषण संग्राम हुआ| अर्जुन को परास्त कर पाना जब असंभव लगा तो बब्रुवाहन ने कामाख्या देवी से प्राप्त हुए दिव्य बाण का उपयोग कर अर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया|

श्रीकृष्ण को पता था कि क्या होने वाला है, और जो कृष्ण को पता था, वही हो गया| वे द्वारिका से भागे-भागे चले आए| दाऊ को कह दिया, "देर हो गई, तो बहुत देर हो जाएगी, जा रहा हूं|"

कुंती विलाप करने लगी... भाई विलाप करने लगे... अर्जुन पांडवों का बल था| आधार था, लेकिन जब अर्जुन ही न रहा तो जीने का क्या लाभ|

मां ने कहा, "बेटा, तुमने बीच मझदार में यह धोखा क्यों दिया? मां बच्चों के कंधों पर इस संसार से जाती है और तुम मुझसे पहले ही चले गए| यह हुआ कैसे? यह हुआ क्यों? जिसके सखा श्रीकृष्ण हों, जिसके सारथी श्रीकृष्ण हो, वह यों, निष्प्राण धरती पर नहीं लेट सकता... पर यह हो कैसे गया?"

देवी गंगा आई, कुंती को कहा, "रोने से क्या फायदा, अर्जुन को उसके कर्म का फल मिला है| जानती हो, अर्जुन ने मेरे पुत्र भीष्म का वध किया था, धोखे से| वह तो अर्जुन को अपना पुत्र मानता था, पुत्र का ही प्यार देता था| लेकिन अर्जुन ने शिखंडी की आड़ लेकर, मेरे पुत्र को बाणों की शैया पर सुला दिया था| क्यों? भीष्म ने तो अपने हथियार नीचे रख दिए थे| वह शिखंडी पर बाण नहीं चला सकता था| वह प्रतिज्ञाबद्ध था, लेकिन अर्जुन ने तब भी मेरे पुत्र की छाती को बाणों से छलनी किया| तुम्हें शायद याद नहीं, लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है... तब मैं भी बहुत रोई थी| अब अर्जुन का सिर धड़ से अलग है| बब्रुवाहन ने जिस बाण से अर्जुन का सिर धड़ से अलग किया है, वह कामाख्या देवी माध्यम से मैंने ही दिया था|

अर्जुन को परास्त कर पाना बब्रुवाहन के लिए कठिन था, आखिर उसने मेरे ही बाण का प्रयोग किया और मैंने अपना प्रतिशोध ले लिया| अब क्यों रोती हो कुंती? अर्जुन ने मेरे पुत्र का वध किया था और अब उसी के पुत्र ने उसका वध किया है, अब रोने से क्या लाभ? जैसा उसने किया वैसा ही पाया| मैंने अपना प्रतिशोध ले लिया|"

और प्रतिशोध शब्द भगवान श्रीकृष्ण ने सुन लिया... हैरान हुए... अर्जुन का सिर धड़ स अलग था| और गंगा मैया, भीष्म की मां अर्जुन का सिर धड़ से अलग किए जाने को अपने प्रतिशोध की पूर्ति बता रही हैं... श्रीकृष्ण सहन नहीं कर सके... एक नजर भर, अर्जुन के शरीर को, बुआ कुंती को, पांडु पुत्रों को देखा... बब्रुवाहन और चित्रांगदा को भी देखा... कहा, "गंगा मैया, आप किससे किससे प्रतिशोध की बात कर रही हैं? बुआ कुंती से... अर्जुन से, या फिर एक मां से? मां कभी मां से प्रतिशोध नहीं ले सकती| मां का हृदय एक समान होता है, अर्जुन की मां का हो या भीष्म की मां का... आपने किस मां प्रतिशोध लिया है?" गंगा ने कहा, "वासुदेव ! अर्जुन ने मेरे पुत्र का उस समय वध किया था, जब वह निहत्था था, क्या यह उचित था? मैंने भी अर्जुन का वध करा दिया उसी के पुत्र से... क्या मैंने गलत किया? मेरा प्रतिशोध पूरा हुआ... यह एक मां का प्रतिशोध है|"

श्रीकृष्ण ने समझाया, "अर्जुन ने जिस स्थिति में भीष्म का वध किया, वह स्थिति भी तो पितामह ने ही अर्जुन को बताई थी, क्योंकि पितामह युद्ध में होते, तो अर्जुन की जीत असंभव थी... और युद्ध से हटने का मार्ग स्वयं पितामह ने ही बताया था, लेकिन यहां तो स्थिति और है| अर्जुन ने तो बब्रुवाहन के प्रहारों को रोका ही है, स्वयं प्रहार तो नहीं किया, उसे काटा तो नहीं, और यदि अर्जुन यह चाहता तो क्या ऐसा हो नहीं सकता था... अर्जुन ने तो आपका मान बढ़ाया है, कामाख्या देवी द्वारा दिए गए आपके ही बाण का... प्रतिशोध लेकर आपने पितामह का, अपने पुत्र का भी भला नहीं किया|"

गंगा दुविधा में पड़ गई| श्रीकृष्ण के तर्कों का उसके पास जवान नहीं था| पूछा, "क्या करना चाहिए, जो होना था सो हो गया| आप ही मार्ग सुझाएं|"

श्रीकृष्ण ने कहा, "आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई, उपाय तो किया ही जा सकता है, कोई रास्ता तो होता ही है| जो प्रतिज्ञा आपने की, वह पूरी हो गई| जो प्रतिज्ञा पूरी हो गई तो अब उसे वापस भी लिया जा सकता है, यदि आप चाहें तो क्या नहीं हो सकता? कोई रास्ता तो निकाला ही जा सकता है|"

गंगा की समझ में बात आ गई और मां गंगा ने अर्जुन का सिर धड़ से जोड़ने का मार्ग सुझा दिया| यह कृष्ण के तर्कों का कमाल था| जिस पर श्रीकृष्ण की कृपा हो, जिसने अपने आपको श्रीकृष्ण को सौंप रखा हो, अपनी चिंताएं सौंप दी हों, अपना जीवन सौंप दिया हो, अपना सर्वस्व सौंप दिया हो, उसकी रक्षा के लिए श्रीकृष्ण बिना बुलाए चले आते हैं| द्वारिका से चलने पर दाऊ ने कहा था, 'कान्हा, अब अर्जुन और उसके पुत्र के बीच युद्ध है, कौरवों के साथ नहीं, फिर क्यों जा रहे हो?' तो कृष्ण ने कहा था, 'दाऊ, अर्जुन को पता नहीं कि वह जिससे युद्ध कर रहा है, वह उसका पुत्र है| इसलिए अनर्थ हो जाएगा| और मैं अर्जुन को अकेला नहीं छोड़ सकता|' भगवान और भक्त का नाता ही ऐसा है| दोनों में दूरी नहीं होती| और जब भक्त के प्राण संकट में हों, तो भगवान चुप नहीं बैठ सकते|

अर्जुन का सारा भाव हो, और कृष्ण दूर रहें, यह हो ही नहीं सकता| याद रखें, जिसे श्रीकृष्ण मारना चाहें, कोई बचा नहीं सकता और जिसे वह बचाना चाहें, उसे कोई मार नहीं सकता| अर्जुन और श्रीकृष्ण हैं ही एक... नर और नारायण|

©N S Yadav GoldMine #Rose {Bolo Ji Radhey Radhey}
अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अ

#Rose {Bolo Ji Radhey Radhey} अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अ #पौराणिककथा

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N S Yadav GoldMine

अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष्ण के सेवक के रूप में किया| सेवक की चिंता स्वामी की चिंता बन जाती है|

अर्जुन का युद्ध अपने ही पुत्र बब्रुवाहन के साथ हो गया, जिसने अर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया... और कृष्ण दौड़े चले आए... उनके प्रिय सखा और भक्त के प्राण जो संकट में पड़ गए थे|

अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा बब्रुवाहन ने पकड़ लिया और घोड़े की देखभाल की जिम्मेदारी अर्जुन पर थी, बब्रुवाहन ने अपनी मां चित्रांगदा को वचन दिया था कि मैं अर्जुन को युद्ध में परास्त करूंगा, क्योंकि अर्जुन चित्रांगदा से विवाह करने के बाद लौटकर नहीं आया था|

और इसी बीच चित्रांगदा ने बब्रुवाहन को जन्म दिया था, चित्रांगदा अर्जुन से नाराज थी और उसने अपने पुत्र को यह तो कह दिया था कि तुमने अर्जुन को परास्त करना है लेकिन यह नहीं बताया था कि अर्जुन ही तुम्हारा पिता है... और बब्रुवाहन मन में अर्जुन को परास्त करने का संकल्प लिए ही बड़ा हुआ| शस्त्र विद्या सीखी, कामाख्या देवी से दिव्य बाण भी प्राप्त किया, अर्जुन के वध के लिए|

और अब बब्रुवाहन ने अश्वमेध के अश्व को पकड़ लिया तो अर्जुन से युद्ध अश्वयंभावी हो गया, भीम को बब्रुवाहन ने मूर्छित कर दिया| और फिर अर्जुन और बब्रुवाहन का भीषण संग्राम हुआ| अर्जुन को परास्त कर पाना जब असंभव लगा तो बब्रुवाहन ने कामाख्या देवी से प्राप्त हुए दिव्य बाण का उपयोग कर अर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया|

श्रीकृष्ण को पता था कि क्या होने वाला है, और जो कृष्ण को पता था, वही हो गया| वे द्वारिका से भागे-भागे चले आए| दाऊ को कह दिया, "देर हो गई, तो बहुत देर हो जाएगी, जा रहा हूं|"

कुंती विलाप करने लगी... भाई विलाप करने लगे... अर्जुन पांडवों का बल था| आधार था, लेकिन जब अर्जुन ही न रहा तो जीने का क्या लाभ|

मां ने कहा, "बेटा, तुमने बीच मझदार में यह धोखा क्यों दिया? मां बच्चों के कंधों पर इस संसार से जाती है और तुम मुझसे पहले ही चले गए| यह हुआ कैसे? यह हुआ क्यों? जिसके सखा श्रीकृष्ण हों, जिसके सारथी श्रीकृष्ण हो, वह यों, निष्प्राण धरती पर नहीं लेट सकता... पर यह हो कैसे गया?"

देवी गंगा आई, कुंती को कहा, "रोने से क्या फायदा, अर्जुन को उसके कर्म का फल मिला है| जानती हो, अर्जुन ने मेरे पुत्र भीष्म का वध किया था, धोखे से| वह तो अर्जुन को अपना पुत्र मानता था, पुत्र का ही प्यार देता था| लेकिन अर्जुन ने शिखंडी की आड़ लेकर, मेरे पुत्र को बाणों की शैया पर सुला दिया था| क्यों? भीष्म ने तो अपने हथियार नीचे रख दिए थे| वह शिखंडी पर बाण नहीं चला सकता था| वह प्रतिज्ञाबद्ध था, लेकिन अर्जुन ने तब भी मेरे पुत्र की छाती को बाणों से छलनी किया| तुम्हें शायद याद नहीं, लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है... तब मैं भी बहुत रोई थी| अब अर्जुन का सिर धड़ से अलग है| बब्रुवाहन ने जिस बाण से अर्जुन का सिर धड़ से अलग किया है, वह कामाख्या देवी माध्यम से मैंने ही दिया था|

अर्जुन को परास्त कर पाना बब्रुवाहन के लिए कठिन था, आखिर उसने मेरे ही बाण का प्रयोग किया और मैंने अपना प्रतिशोध ले लिया| अब क्यों रोती हो कुंती? अर्जुन ने मेरे पुत्र का वध किया था और अब उसी के पुत्र ने उसका वध किया है, अब रोने से क्या लाभ? जैसा उसने किया वैसा ही पाया| मैंने अपना प्रतिशोध ले लिया|"

और प्रतिशोध शब्द भगवान श्रीकृष्ण ने सुन लिया... हैरान हुए... अर्जुन का सिर धड़ स अलग था| और गंगा मैया, भीष्म की मां अर्जुन का सिर धड़ से अलग किए जाने को अपने प्रतिशोध की पूर्ति बता रही हैं... श्रीकृष्ण सहन नहीं कर सके... एक नजर भर, अर्जुन के शरीर को, बुआ कुंती को, पांडु पुत्रों को देखा... बब्रुवाहन और चित्रांगदा को भी देखा... कहा, "गंगा मैया, आप किससे किससे प्रतिशोध की बात कर रही हैं? बुआ कुंती से... अर्जुन से, या फिर एक मां से? मां कभी मां से प्रतिशोध नहीं ले सकती| मां का हृदय एक समान होता है, अर्जुन की मां का हो या भीष्म की मां का... आपने किस मां प्रतिशोध लिया है?" गंगा ने कहा, "वासुदेव ! अर्जुन ने मेरे पुत्र का उस समय वध किया था, जब वह निहत्था था, क्या यह उचित था? मैंने भी अर्जुन का वध करा दिया उसी के पुत्र से... क्या मैंने गलत किया? मेरा प्रतिशोध पूरा हुआ... यह एक मां का प्रतिशोध है|"

श्रीकृष्ण ने समझाया, "अर्जुन ने जिस स्थिति में भीष्म का वध किया, वह स्थिति भी तो पितामह ने ही अर्जुन को बताई थी, क्योंकि पितामह युद्ध में होते, तो अर्जुन की जीत असंभव थी... और युद्ध से हटने का मार्ग स्वयं पितामह ने ही बताया था, लेकिन यहां तो स्थिति और है| अर्जुन ने तो बब्रुवाहन के प्रहारों को रोका ही है, स्वयं प्रहार तो नहीं किया, उसे काटा तो नहीं, और यदि अर्जुन यह चाहता तो क्या ऐसा हो नहीं सकता था... अर्जुन ने तो आपका मान बढ़ाया है, कामाख्या देवी द्वारा दिए गए आपके ही बाण का... प्रतिशोध लेकर आपने पितामह का, अपने पुत्र का भी भला नहीं किया|"

गंगा दुविधा में पड़ गई| श्रीकृष्ण के तर्कों का उसके पास जवाब नहीं था| पूछा, "क्या करना चाहिए, जो होना था सो हो गया| आप ही मार्ग सुझाएं|"

श्रीकृष्ण ने कहा, "आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई, उपाय तो किया ही जा सकता है, कोई रास्ता तो होता ही है| जो प्रतिज्ञा आपने की, वह पूरी हो गई| जो प्रतिज्ञा पूरी हो गई तो अब उसे वापस भी लिया जा सकता है, यदि आप चाहें तो क्या नहीं हो सकता? कोई रास्ता तो निकाला ही जा सकता है|"

गंगा की समझ में बात आ गई और मां गंगा ने अर्जुन का सिर धड़ से जोड़ने का मार्ग सुझा दिया| यह कृष्ण के तर्कों का कमाल था| जिस पर श्रीकृष्ण की कृपा हो, जिसने अपने आपको श्रीकृष्ण को सौंप रखा हो, अपनी चिंताएं सौंप दी हों, अपना जीवन सौंप दिया हो, अपना सर्वस्व सौंप दिया हो, उसकी रक्षा के लिए श्रीकृष्ण बिना बुलाए चले आते हैं| द्वारिका से चलने पर दाऊ ने कहा था, 'कान्हा, अब अर्जुन और उसके पुत्र के बीच युद्ध है, कौरवों के साथ नहीं, फिर क्यों जा रहे हो?' तो कृष्ण ने कहा था, 'दाऊ, अर्जुन को पता नहीं कि वह जिससे युद्ध कर रहा है, वह उसका पुत्र है| इसलिए अनर्थ हो जाएगा| और मैं अर्जुन को अकेला नहीं छोड़ सकता|' भगवान और भक्त का नाता ही ऐसा है| दोनों में दूरी नहीं होती| और जब भक्त के प्राण संकट में हों, तो भगवान चुप नहीं बैठ सकते|

अर्जुन का सारा भाव हो, और कृष्ण दूर रहें, यह हो ही नहीं सकता| याद रखें, जिसे श्रीकृष्ण मारना चाहें, कोई बचा नहीं सकता और जिसे वह बचाना चाहें, उसे कोई मार नहीं सकता| अर्जुन और श्रीकृष्ण हैं ही एक... नर और नारायण|

©N S Yadav GoldMine
  #Silence अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं

#Silence अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं #पौराणिककथा

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PARBHASH KMUAR

जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था। मगर जीवित होने के पश्चात तो जैसे, असुरों के अत्याचार की सारी सीमाएं अतिक्रमित होने लगी। राजा बलि ने भी शुक्राचार्य की कृपा से अपना जीवन लाभ किया था, इसलिए वह भी उनकी सेवा में लग गए। इस दौरान, राजा बलि की सेवा से प्रसन्न होकर शुक्राचार्य ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया।

इधर, पौराणिक मान्यता के अनुसार, असुरों के हर दूसरे दिन देवताओं पर किए गए अत्याचारों से माता अदिति अत्यंत दुखी हो गईं थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने स्वामी कश्यप ऋषि को सुनाते हुए कहा, “हे स्वामी! मेरे तो सभी पुत्र मारे-मारे फिरते हैं और उन्हें इस अवस्था में देखकर, मेरा हृदय क्रंदन करने लगता है।”

अपनी पत्नी की यह बात सुनकर, कश्यप ऋषि ने सोचा, इस व्यथा के समाधान के लिए तो अपना सर्वस्व प्रभु नारायण के चरणों में समर्पित कर, उनकी आराधना करना आवश्यक है। उन्होंने अदिति को भी ऐसा ही करने के लिए कहा। माता अदिति ने तब नारायण का कठोर तप किया और प्रभु भी माता के तप से प्रसन्न होकर उनके पुत्र के रूप में आविर्भूत हुए। अपने गर्भ से ऐसे चतुर्भुज प्रभु के अवतार से माता अदिति तो जैसे धन्य ही हो गईं।

वहीं प्रभु ने अवतरित होते ही वामन अवतार धारण कर लिया था। इसके बाद, महर्षि कश्यप ने अन्य ऋषियों के साथ मिलकर उस वामन ब्रह्मचारी का उपनयन संस्कार सम्पन्न किया।

इसके बाद, वामन ने अपने पिता से शुक्राचार्य द्वारा आयोजित राजा बलि के अश्वमेध यज्ञ में जाने की आज्ञा ली। यह राजा बलि का अंतिम अश्वमेध यज्ञ था। वामन जैसे ही उस यज्ञ में पहुंचे राजा बलि ने उन्हें देखते ही उनका आदर सत्कार किया और उनसे दान मांगने का आग्रह किया। इस पर वामन ने राजा बलि से कहा, “हे राजन! आपके कुल की शूरता व उदारता जगजाहिर है। मुझे तो बस अपने पदों के समान तीन पद जमीन चाहिए।”

राजा बलि उन्हें यह दान देने ही वाले थे, तभी शुक्राचार्य ने उन्हें चेताया, “यह अवश्य ही विष्णु हैं। इनके छलावे में आ गए, तो तुम्हारा सर्वस्व चला जाएगा।” परंतु राजा बलि अपनी बात पर स्थिर रहे। उन्होंने वामन को तीन पद जमीन देने का निर्णय कर लिया। राजा बलि की यह बात सुनते ही वमानवतार श्री विष्णु ने अपना शरीर बड़ा कर लिया और प्रथम दो पदों में ही उन्होंने स्वर्गलोक और धरती को अपने नाम कर लिया।

वामन के चरण पड़ने से ब्रह्मांड का आवरण थोड़ा उखर सा गया था एवं इसी स्थान से, ब्रह्मद्रव बह आया था जो बाद में जाकर मां गंगा बनीं। अब वामन ने बलि से पूछा, “राजन! तीसरा पद रखने का स्थान कहां है?” कोई दूसरा

©parbhashrajbcnegmailcomm 
  जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था।

जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था। #Knowledge

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रजनीश "स्वच्छंद"

मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ मैं ब्रह्म हूँ,
मैं सत्य का स्तम्भ हूँ।
माथे मुकुट मोती जड़ित,
मैं हूँ प्रत्यंचा एक तनित।
मैं हूँ धरा अम्बर भी मैं,
एकाकी हूँ मैं अंतर भी मैं।
संशय रहित, कभी द्वन्द्व हूँ,
श्लोक मन्त्र और छंद हूँ।
रावण कभी हूँ मैं प्रपंचित,
ज्ञान संचित ज्ञान वंचित।
यज्ञ हूँ मैं अश्वमेधी,
मैँ बली पूजा की बेदी।
मैं प्यास और मैं ही क्षुधा,
मैं ही गरल मैं ही सुधा।
मथ के सागर मैं हूँ निकला,
अमृत हूँ मैं विष मैं हूँ पिघला।
भाव उदित मैं काव्य जनित,
शत्रु सखा मैं हूँ अमित।
मैं कालजयी नश्वर भी मैं,
दानव भी मैं ईश्वर भी मैं।
मैं परम् और मैं हूँ खण्डित,
मैं स्वछंद और मैं ही बन्दित।
युधिष्ठिर मुख का सत्य भी,
मैं ही स्वीकार्य और त्यक्त भी।
जिह्वा-ध्वनित वाणी भी मैं,
दान-रहित पाणी भी मैं।
कर्ण भी मैं मैं कुंती हूँ,
कभी सार्थक किंवदन्ति हूँ।
स्तोत्र जटिल तुलसी सरल,
पाषाण वज्र जल सा तरल।
आदि अनन्त मैं रोध हूँ,
स्नेह मैं और क्रोध हूँ।
दुर्बुद्धि भी कभी बोध हूँ,
मानवजनित कभी शोध हूँ।
यम भी मैँ और तम भी मैं,
खुशियों की लड़ी मातम भी मैं।
मैं हक हूँ और हुंकार हूँ,
आर्तनाद और पुकार हूँ।
आजन्मा और मैं अमर्त्य हूँ,
मैं ही परम एक सत्य हूँ।
मैं जीत की हूँ गर्जना,
मैं शंखनाद हूँ अर्चना।
मैं तो ज्वलित अंगार हूँ,
मैं जीव-मृत्यु हार हूँ।
व्याधी भी मैं उपचार हूँ,
मैं ही तो जीवन सार हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ म

मैं ज्ञान-सार हूँ।। मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ, अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ। मैं समय की हूँ गति, पुरुषार्थ की मैं हूँ मति। मैं सार हूँ म #Poetry #kavita #tourgurugram #tourdelhi

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दामिनी नारायण सिंह Quotes

समय के उस सिंधु पर जिसने लिखा था राम नाम,
सौ सौ बलाएं नानका हाँ; सौ सौ बलाएं नानका।
गुरुनानक देव जी🙏 समय के उस सिंधु पर जिसने लिखा था रामनाम
सौसौ बलाएं नानका हाँ सौसौ बलाएं नानका
#गुरुनानकदेव जी

इधर होती तो शायद नहीं जान पाती
        नवरात्

समय के उस सिंधु पर जिसने लिखा था रामनाम सौसौ बलाएं नानका हाँ सौसौ बलाएं नानका #गुरुनानकदेव जी इधर होती तो शायद नहीं जान पाती नवरात् #प्रकाशपर्व #daminiquote #GurunanakNanakJayanti550

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Ravikant Mishra

तीरथ वर नैमिष विख्याता ।
अति पुनीत साधक सिधि दाता ।।🙏




भगवान की कृपा से ऐसे 
स्थान पर जन्म मिला मुझे 😊 नैमिषक्षेत्र : इसे आदितीर्थ कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद से लगभग 40 किलोमीटर पूर्वकी ओर है। यह स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की त

नैमिषक्षेत्र : इसे आदितीर्थ कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद से लगभग 40 किलोमीटर पूर्वकी ओर है। यह स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की त #yqbaba #yqdidi #proud #Devotional #Bhakti #Namish

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Ravikant Mishra✨

तीरथ वर नैमिष विख्याता ।
अति पुनीत साधक सिधि दाता ।।🙏




भगवान की कृपा से ऐसे 
स्थान पर जन्म मिला मुझे 😊 नैमिषक्षेत्र : इसे आदितीर्थ कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद से लगभग 40 किलोमीटर पूर्वकी ओर है। यह स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की त

नैमिषक्षेत्र : इसे आदितीर्थ कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद से लगभग 40 किलोमीटर पूर्वकी ओर है। यह स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की त #yqbaba #yqdidi #proud #Devotional #Bhakti #Namish

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Riya Mathur

नज़्म #nishantupadgyay क्यों अधनंगी सी धोती में, नंगे विचारों की होली से,  सन् सोलह के चम्पारन में, जला दिए दानावल एक चिंगारी से,  तुम न

नज़्म #nishantupadgyay क्यों अधनंगी सी धोती में, नंगे विचारों की होली से,  सन् सोलह के चम्पारन में, जला दिए दानावल एक चिंगारी से,  तुम न

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Divyanshu Pathak

'राजपूत' ( अतीत के झरोखे से-02 )

अग्नि-पुराण के अनुसार- चन्द्रवंशी कृष्ण और अर्जुन तथा सूर्यवंशी राम और लव-कुश के वंशज राजपूत थे।स्वयं 'राजपूत' भी इस कथन को सहर्ष स्वीकार करते हैं।इसी आधार पर श्री गहलोत ने भी लिखा है कि- "वर्तमान राजपूतों के राजवंश वैदिक और पौराणिक काल के सूर्य व चन्द्रवंशी क्षत्रियों की सन्तान हैं।ये न तो विदेशी हैं और न ही अनार्यों के वंशज।जैसा कि कुछ यूरोपीयन लेखकों ने अनुमान लगाया।डॉ दशरथ शर्मा भी लिखते हैं कि राजपूत सूर्य और चन्द्रवंशी थे। दशवीं शताब्दी में चरणों के साहित्य और इतिहास लेखन में राजपूतों को सूर्यवंशी व चन्द्रवंशी बताया है।
1274 ई. का शिलालेख जो चित्तौड़गढ़,
1285 ई.

दशवीं शताब्दी में चरणों के साहित्य और इतिहास लेखन में राजपूतों को सूर्यवंशी व चन्द्रवंशी बताया है। 1274 ई. का शिलालेख जो चित्तौड़गढ़, 1285 ई. #yqbaba #yqdidi #yqhindi #पाठकपुराण #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1

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ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)

अश्वसेन है नाम मेरा,,,,,

अश्वसेन है नाम मेरा,,,,,

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Gengestar lovers

 श्री राम का अश्वमेघ यज्ञ हुआ पुर्ण 🚩🙏🙏🚩

श्री राम का अश्वमेघ यज्ञ हुआ पुर्ण 🚩🙏🙏🚩 #पौराणिककथा

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Amar Anand

काशी अविनाशी है !!!
विशेष नीचे कैप्शन में... काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है!!!!!!

पंचकोशी काशी का अविमुक्त क्षेत्र ज्योतिर्लिंग स्वरूप स्वयं भगवान विश्वनाथ हैं । ब्रह्माजी ने भगवान क

काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है!!!!!! पंचकोशी काशी का अविमुक्त क्षेत्र ज्योतिर्लिंग स्वरूप स्वयं भगवान विश्वनाथ हैं । ब्रह्माजी ने भगवान क

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली।

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली।

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Sneha Agarwal 'Geet'

जब बारी आती है 
प्यार मोहब्बत की
तो सहसा ही
याद आती है सभी को
राधा कृष्ण की
वो सुंदर सी जोड़ी।
(पूरी रचना कैप्शन में पढ़ें।)

©Sneha Agarwal 'Geet' जब बारी आती है 
प्यार मोहब्बत की
तो सहसा ही
याद आती है सभी को
राधा कृष्ण की
वो सुंदर सी जोड़ी।
जिस पर न जाने
कितनी ही ग़ज़लें,

जब बारी आती है प्यार मोहब्बत की तो सहसा ही याद आती है सभी को राधा कृष्ण की वो सुंदर सी जोड़ी। जिस पर न जाने कितनी ही ग़ज़लें, #कविता #साहित्य_सागर #स्नेहा_अग्रवाल #sneha_geet

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Yashpal singh gusain badal'

"जीवन संघर्ष"
क्यों   भयातुर    हो   सखे !
सब    कर्म  के  परिणाम हैं,
तू   देख   कर  संधान   कर,
अभ्यास   कर ,प्रवीण   बन,
अनायास तुझको मिल गया,
उस  पर   तुम्हारा  गर्व क्या?
सर्वस्व     जिसमें    ना   लगे,
वो   संघर्ष  भी, संघर्ष  क्या?
तेरे      निरंतर      कर्म    से,
बह    रहा    जो     स्वेद   है,
तप    तुम्हारा     है      यही,
यही      तो    अश्वमेघ     है,
जो       तपा      संघर्ष     से,
जो     जला     कुंदन    बना,
मृत्यु    का    भय  छोड़कर,
जो     लड़ा     अर्जुन   बना,
प्रयास    गर   निष्फल   हुए,
अनुभव   मिलेगा  फिर  नया,
होंगे   परिष्कृत   शस्त्र   नव,
विजय      मिलेगी     अंततः,
उद्योग   कर, पुरुषार्थ    कर, 
स्व   कर्म   को   यथार्थ   कर,
अपने    अभीष्ट    लक्ष्य   का,
उठ    बढ़ो,    आह्वान    कर,
लक्ष्य    प्राप्ति     के      लिए,
तू   नित   नए   विज्ञान   कर,
हर   क्षण   को   स्फूर्त    कर,
नित्य     नूतन     ज्ञान     भर,
उठो     चलो     संकल्प    ले,
लक्ष्य     को    प्रस्थान    कर,
भाव    अपने     पुण्य     रख,
जीवन    का    उत्थान    कर।
यशपाल सिंह बादल

©Yashpal singh gusain badal'
  "जीवन संघर्ष"
क्यों   भयातुर    हो   सखे !
सब    कर्म  के  परिणाम हैं,
तू   देख   कर  संधान   कर,
अभ्यास   कर ,प्रवीण   बन,
अनायास तुझको मिल

"जीवन संघर्ष" क्यों भयातुर हो सखे ! सब कर्म के परिणाम हैं, तू देख कर संधान कर, अभ्यास कर ,प्रवीण बन, अनायास तुझको मिल #कविता

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Yashpal singh gusain badal'

"जीवन संघर्ष"
क्यों   भयातुर    हो   सखे !
सब    कर्म  के  परिणाम हैं,
तू   देख   कर  संधान   कर,
अभ्यास   कर ,प्रवीण   बन,
अनायास तुझको मिल गया,
उस  पर   तुम्हारा  गर्व क्या?
सर्वस्व     जिसमें    ना   लगे,
वो   संघर्ष  भी, संघर्ष  क्या?
तेरे      निरंतर      कर्म    से,
बह    रहा    जो     स्वेद   है,
तप    तुम्हारा     है      यही,
यही      तो    अश्वमेघ     है,
जो       तपा      संघर्ष     से,
जो     जला     कुंदन    बना,
मृत्यु    का    भय  छोड़कर,
जो     लड़ा     अर्जुन   बना,
प्रयास    गर   निष्फल   हुए,
अनुभव   मिलेगा  फिर  नया,
होंगे   परिष्कृत   शस्त्र   नव,
विजय      मिलेगी     अंततः,
उद्योग   कर, पुरुषार्थ    कर, 
स्व   कर्म   को   यथार्थ   कर,
अपने    अभीष्ट    लक्ष्य   का,
उठ    बढ़ो,    आह्वान    कर,
लक्ष्य    प्राप्ति     के      लिए,
तू   नित   नए   विज्ञान   कर,
हर   क्षण   को   स्फूर्त    कर,
नित्य     नूतन     ज्ञान     भर,
उठो     चलो     संकल्प    ले,
लक्ष्य     को    प्रस्थान    कर,
भाव    अपने     पुण्य     रख,
जीवन    का    उत्थान    कर।
यशपाल सिंह बादल

©Yashpal singh gusain badal' #achievement "जीवन संघर्ष"
क्यों   भयातुर    हो   सखे !
सब    कर्म  के  परिणाम हैं,
तू   देख   कर  संधान   कर,
अभ्यास   कर ,प्रवीण   बन,
अना

#achievement "जीवन संघर्ष" क्यों भयातुर हो सखे ! सब कर्म के परिणाम हैं, तू देख कर संधान कर, अभ्यास कर ,प्रवीण बन, अना #कविता

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Yashpal singh gusain badal'

कर्म
क्यों    भयातुर   हो   सखे ?
सब  कर्म   के  परिणाम  हैं,
तू   देख    कर  संधान  कर,
अभ्यास   कर,  प्रवीण  बन,
अनायास तुझको मिल गया,
उस  पर  तुम्हारा  गर्व  क्या?
सर्वस्व    जिसमें    ना   लगे,
वो  संघर्ष  भी, संघर्ष   क्या?
तेरे      निरंतर      कर्म    से,
बह     रहा   जो    स्वेद    है,
तप      तुम्हारा     है     यही,
यही     तो      अश्वमेघ     है,
जो      तपा      संघर्ष      से,
जो      जला     कुंदन   बना,
मृत्यु     का   भय    छोड़कर,
जो     लड़ा     अर्जुन     बना,
प्रयास    गर    निष्फल    हुए,
अनुभव    मिलेगा  फिर  नया,
होंगे   परिष्कृत    शस्त्र    नव,
विजय     मिलेगी       अंततः,
उद्योग   कर,   पुरुषार्थ   कर, 
स्व    कर्म  को   यथार्थ   कर,
अपने    अभीष्ट    लक्ष्य   का,
उठ     बढ़ो,   आह्वान    कर,
लक्ष्य    प्राप्ति     के     लिए,
तू    नित   नए   विज्ञान  कर,
हर  क्षण   को   स्फूर्त    कर,
नित्य     नूतन     ज्ञान     भर,
उठो     चलो    संकल्प     ले,
लक्ष्य    को    प्रस्थान     कर,
भाव    अपने     पुण्य     रख,
जीवन     का    उत्थान    कर।

©Yashpal singh gusain badal' #achievement क्यों भयातुर हो सखे 
सब कर्म के परिणाम हैं,
तू देख कर संधान कर,
अभ्यास कर,प्रवीण बन,
अनायास तुझको मिल गया,
उस पर तुम्हारा गर्व

#achievement क्यों भयातुर हो सखे सब कर्म के परिणाम हैं, तू देख कर संधान कर, अभ्यास कर,प्रवीण बन, अनायास तुझको मिल गया, उस पर तुम्हारा गर्व #कविता

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B Pawar

तेरी सोहबत में रंगों के भेद खुले
तब समझा , रंग तो केवल रंग हैं
लाल-हरा , गुलाबी-पीला , श्वेत-अश्वेत
सभी प्यार के और प्यार में ही विलीन
निरे मूढ़ों को रंगों की समझ कहाँ?
बाहरी रंगों में छल है, दिखावा है।
और जब सभी रंगों को मिला दे तो
प्रकाशित होती है एक ज्योति प्रेम की।
तुमसे मिलकर रंगों में रंग घुल जाते है
और बचता है सिर्फ एक रंग प्रीत का। यहां नीचे पूरा पढ़ें 👇👇👇

तेरी सोहबत में रंगों के भेद खुले
तब समझा , रंग तो केवल रंग हैं
लाल-हरा , गुलाबी-पीला , श्वेत-अश्वेत
सभी प्यार के औ

यहां नीचे पूरा पढ़ें 👇👇👇 तेरी सोहबत में रंगों के भेद खुले तब समझा , रंग तो केवल रंग हैं लाल-हरा , गुलाबी-पीला , श्वेत-अश्वेत सभी प्यार के औ #Holi #yqbaba #colours #Rang #yqdidi #yqhindi #yqquotes

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Dr Jayanti Pandey

सापेक्षता का सिद्धांत.......... सच सिर्फ तथ्यात्मक सच नहीं होता। सच की सच्चाई कहने वाले पर, सुनने वाले पर,किसके बारे में है,किस परिस्थिति में कहा गया है आदि इत्यादि पर निर्

सच सिर्फ तथ्यात्मक सच नहीं होता। सच की सच्चाई कहने वाले पर, सुनने वाले पर,किसके बारे में है,किस परिस्थिति में कहा गया है आदि इत्यादि पर निर् #yqdidi #yqhindi #jayakikalamse

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Arpit Singh

★मैं कितना तुममें हूँ...★

किसी दिन
पश्चिम से आती हुई किरण
मेरे आँगन को चूमेंगी
उस दिन आंकलन करूँगा
कि, मैं कितना तुममें हूँ.

वादियों से निकलती
सर्द हवाओं का हर वो मार्ग
जो तुम तक जाती होगी
वो हल्की सी धूप कल आयेगी
और हँसों के जोड़े नहा-निखर कर
मेरे बरामदे से तुम्हारी ठिठुरन पर व्यंग्य करेंगे.

तुम्हारी अट्टालिका से
गुजरती हुई वो रेशमी शिराएँ 
जो आभास करवायेगी तुम्हारे अश्वेत ज़ुल्फों का
उस सेमल के पुष्प की पांचों पंखुड़ियां 
जिसमें छिपी ओस की बूंदें
तुम्हारे नयनों की धार से मिलके सागर ढूँढेगी.

तुम्हारी हर दमक पर
सुनहरी सर्वरी कोहरे की चादर ओढेगी
सूने अम्बर साक्ष्य रहेंगे शरद और तुम्हारी रुसवाई का
फिर भी मेरे नयन तुम्हारे प्रेम को जीवंत मान विवेचन करेंगे
कि, मैं कितना तुममें हूँ...  #शरद_की_शाम (same mentioned below👇👇👇)
#मैऔरतुम
#love#nature
#naturediariesbyarpit
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#yqbaba
#mothertongue_verse
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रजनीश "स्वच्छंद"

ज़िंदा हूँ मैं।।

रुधिरों में बहता वही तो रक्त,
रवानी वही वही है अभिव्यक्त।
संताप का ज्वर समेटे मन मे,
बस जिये जा रहा हूँ अभिशप्त।
फिर आया ख्याल, अरे हाँ अभी ज़िंदा हूँ मैं।

फुटपाथों पर सोता भविष्य-बचपन,
खाली उदर और नग्न बदन।
मूक बधिर सुनता हूँ चीत्कार सब,
द्रवित होता हृदय नहीं सुन कोई रुदन।
फिर आया ख्याल, अरे हाँ अभी ज़िंदा हूँ मैं।

तीव्र कुशाग्र, तीव्रतम कुशाग्र,
मन छलता दानवी ये व्याघ्र।
दैव जनित माटी में पशुता का वास,
निजकर करूँ अपना ही श्राद्ध।
फिर आया ख्याल, अरे हाँ अभी ज़िंदा हूँ मैं।


उचित अनुचित भरपूर वंचित,
हृदय धकेलता लहु भाव निःसंचित।
कष्ट पूरित मानव देह धर,
कर्म धर्म का शेष न किंचित।
फिर आया ख्याल, अरे हाँ अभी ज़िंदा हूँ मैं।

न सहचर अनुचर, धड़ बिन सर,
व्ययीत होता पहर पे पहर।
अश्वरोध लगे आंखों से,
कृमिरुप रहा मैं हूँ टघर।
फिर आया ख्याल, अरे हाँ अभी ज़िंदा हूँ मैं।

स्याही श्वेत कागज़ भी श्वेत,
बस अवलोकन का रहता खेद।
न कोई श्रमिक न पथद्रष्टा मैं,
बस बहते रहे आंसू और स्वेद।
फिर आया ख्याल, अरे हाँ अभी ज़िंदा हूँ मैं।

किस हक कलम लिए फिरता हूँ,
पल पल स्वनयन गिरता हूँ।
कुछ पन्नों पे बन लिपि कोई,
चौक चौराहे टंगा मिलता हूँ।
फिर आया ख्याल, अरे हाँ अभी ज़िंदा हूँ मैं।

एक कथा फिर दूजा कथा,
बना के अपनी कलम को सखा।
आज नहीं तो कल सुन लेगा,
कोई इस बहते स्याही की व्यथा।
फिर आया ख्याल, अरे हाँ अभी ज़िंदा हूँ मैं।

©रजनीश "स्वछंद" ज़िंदा हूँ मैं।।

रुधिरों में बहता वही तो रक्त,
रवानी वही वही है अभिव्यक्त।
संताप का ज्वर समेटे मन मे,
बस जिये जा रहा हूँ अभिशप्त।
फिर आया ख्

ज़िंदा हूँ मैं।। रुधिरों में बहता वही तो रक्त, रवानी वही वही है अभिव्यक्त। संताप का ज्वर समेटे मन मे, बस जिये जा रहा हूँ अभिशप्त। फिर आया ख् #Poetry #kavita

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