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Anupama Jha
भीगे-भीगे मौसम में मन भी भीगा भीगा सा है बहुत कुछ दिल में अटका अटका सा है गुज़ारिश बादलों से जमकर बरसने की बहाना है कुछ गलतफहमियों को, जो खटका खटका सा है.... -©Anupama #खटका#अटका#बारिश#yqdidi
PRATIK MATKAR
ऊन कोवळे कडक जाहले असे सोहळे कधी न पाहिले कुणी म्हणाले टळेल वेळ ही कुणी म्हणाले बसेल मेळ ही कुणा वाटतो घटकेचा खेळ ही कुणा वाटते कायमची जेल ही अशी निराशा वाट्याला येते इमले सारे पाडुनी जाते भाग 2
Raone
बहुत लिखा है इश्क़ मुहब्बत प्यार वफ़ा पर पर क्या इसका अर्थ भी आप समझ पाओगे वो डायरी मेरी खोल के देखो, जिसमें मेरी तुम तलाश लिखी हो ज़रा दिल से पढ़ना उन अल्फ़ाज़ों को जिसमें पूरी की पूरी बस आप छपी हो पर अफ़सोस की शायद तब भी तुम समझ न पाओ कि किनती उसमें पीर लिखी है सच है तुमने जा चाहा था वक्त के साथ मैं मर जाऊँ आपके श्राप से तिनका तिनका सा मैं उड़ जाऊँ ख़ून से अपने, हमने ये तो गीत लिखा है दिल से देख तू ऐ ज़िन्दग़ी, पूरे पन्नों में बस तू हीं छिपा है राone@उल्फ़त-ए- ज़िन्दग़ी (भाग-2) (भाग-2)
Raone
माँ अब तो ये जवानी आयी, बचपन अपना छीन गयी। थोड़ी सी समझदारी देकर, अनमोल बचपना ले गयी। क्यूँ बड़ा किया हे माँ, क्यूँ छुड़ाया तुमने अपना आँचल । बड़ा न होता पर क्या जाता, संग तो था तेरे साथ का कल। तुम राजा बेटा मुझको कहती थी, बस याद वहीं तड़पाती है। दिन तो कट जाता हे माँ मेरी, पर ये रात निगोड़ी बहुत डराती है। तेरी छाती में था संसार हे माँ, वो संसार हीं बहुत याद अब आती है । फिर से वो नींद दे दे माँ, जो तेरे आँचल में आ जाती थी। ....2 (भाग-1 का शेष) @उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी माँ (भाग-2)
Rakhi Raj
पंखुड़ी (भाग 2) शाम को वो लड़की काव्य को फिर अपनी खिड़की पर ख़डी हुई दिखी, उसकी आँखों में एक चमक थी जैसे जिंदगी की नयी शुरुआत की रह तक रही हो..उसने काव्य को देखा दोनों एक दूसरे को देख के मुस्कुराये तभी पीछे से रमेश आ गया... उसने खिड़की बंद करदी काव्य भी अपनी खिड़की को बंद कर अब किताबें पढ़ने लगी | काव्य जहाँ रहती है वहाँ की गलियां बहोत संकरी सी थी .. खिड़कियों के बीच ज्यादा दूरी नहीं थी चाय पीने से लेकर अब तक उसमे दिमाग़ मे जो सवाल उमड़े वो फीर घूमने लगे अचानक उसे खिड़की से आवाजें आने लगी "चीखें "उस लड़की की काव्य जो खुद सहम जाती थी शादी के नाम से अब ओर सहम सी गयी, इन चीखों को नजरअंदाज करके अपने कानो में इयरफोन लगा वो बिस्तर पर लेटे लेटे छत पर लगे पंखे को देखती रही. |||सुबह उठकर काव्य ने रोज की तरह अपनी खिड़की खोली पर उसके सामने वाली खिड़की बंद थी.... काव्य काव्य नीचे से आवाज आयी "जल्दी चाय पि ले रमेश के यहाँ चलते है फिर उसने शादी मे न बुलाया पर मुँह दिखाई तो देके आनी ही पड़ेगी " अपने सवालों को लिये काव्य अपनी माँ के साथ जाती है खिड़कियों से हुए काव्य ओर उसे लड़की के बीच हुए मुस्कान के आदान प्रदान से उन दोनों के बीच जैसे कोइ रिश्ता सा बन गया है......... (जारी ) #पंखुड़ी भाग 2
Roshan-nama
कुदरत का ये केहेर नहीं तो क्या है अच्छे खासे घर अब जेल हो चुके हैं पहले हमने खिलवाड़ किया कुदरत से अब हम खुद कुदरत का खेल हो चुके हैं 😞😞😞 #lockdown3 भाग 2