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Hardik Sharma

कुंए में गिर कर एक की मौत #jindagihai #tojahanhai #Nozoto #न्यूज़

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AB

Being loved by your haters push you to achieve more and great in your life, कुंएं से निकल कर कभी बाहर कदम रखना और देखना जितना बड़ा समंदर उतन

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जब कभी
तुम्हें स्वंय में
इतना अधिक
संलिप्त हुआ
देखती हूँ
तो अनुभव
करती हूँ
मेरे प्रेम ने
तुम्हारे मन,
ह्रदय, शरीर
और आत्मा को 
किस प्रकार
और स्तर तक 
प्रभावित कर
रखा है,

कि तुम कौन हो?
तुम्हें यह भी
स्मरण नहीं
हो आता,..

©'अल्प 
— % &  Being loved by your haters push you to achieve more and great in your life, कुंएं से निकल कर कभी बाहर कदम रखना और देखना जितना बड़ा समंदर उतन

Dr Jayanti Pandey

उन्हें जांचना है उनको जो देश के पक्ष में हैं यह अजब नमूने हैं जो खुद के विपक्ष में हैं पुलिस और डंडे के जोर से शासन चला रहे शिवराई की प्रति #yqbaba #YourQuoteAndMine #yqquotes #scribbles #wrscribblezone #yqwritosphere #jayakikalamse #wsfunkyday

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कहां- कहां के नमूने आज-कल नेताओं की बाज़ार में हैं,
जिनमें चलने का माद्दा नहीं,वो भी दौड़ने को कतार में हैं। उन्हें जांचना है उनको जो देश के पक्ष में हैं
यह अजब नमूने हैं जो खुद के विपक्ष में हैं

पुलिस और डंडे के जोर से शासन चला रहे
शिवराई की प्रति

jaydhar sharma , jay

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग #कहानी #nojoto_story #save_life #corona_fight

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एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के
बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर
अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक
घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में
डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और
लोगों का मरना बन्द हो जायेगा।
राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह
घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है । अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक
बाल्टी "पानी" डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ
भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए
के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है।
दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी।
राजा समझ गया कि इसी कारण से
महामारी दूर नहीं हुई और लोग
अभी भी मर रहे हैं।
दरअसल ऐसा इसलिये हुआ
क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में
आया था वही विचार पूरे राज्य के
लोगों के मन में आ गया और किसी ने
भी कुंए में दूध नहीं डाला।
मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ
वैसा ही हमारे जीवन में
भी होता है। जब
भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे
लोगों को मिल कर करना होता है
तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह
सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और
हमारी इसी सोच की वजह से
स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं।
अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश में भी ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।
आज शाम तक यह कहानी हर भारतीय के पास पहुचाँनी     चाहिए सभी घर में रहकर कोरोना को हराने मे सहयोग करें । 21दिन घर में रहकर हमें अपनेआप को बचाना है किसी ओर को नहीं।  

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग

yogesh atmaram ambawale

13 अप्रैल 1919 को अंग्रेज़ जनरल डायर ने वैसाखी का त्योहार मनाने इकट्ठे हुए निहत्थे निर्दोष भारतीयों पर जिस बेरहमी से गोलियाँ चलवाईं, वह मानव #yqdidi #YourQuoteAndMine #जलियाँवालाबाग

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जलियाँवाला बाग घूमते हुए आज आंखे नम हो गई,
कैसा माहौल बना होगा उस वक्त सोच कर रूह कांफ उठी.
बचने का कोई रास्ता ही नही था,चारों ओर दीवारें थी और एक कुँआ था.
अंदर बाहर आने जाने का एक ही छोटा दरवाजा था,
चलने लगी जब गोलियाँ,जान बचाने कितनों ने कुंए में कूदी मारी
छोटे,बड़े,बूढ़े,बच्चे किसी को न बक्श रहा था,
बेखौफ जनरल डायर अंधाधुन्द गोलीबारी कर रहा था.
पूरा ये नज़ारा आज आंखों के सामने आ रहा था जब मैं जलियाँवाला बाग घूम रहा था.
अमर ज्योति के दर्शन करते वक्त,आज भी कानों में वंदे मातरम का नारा गूंज रह था. 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेज़ जनरल डायर ने वैसाखी का त्योहार मनाने इकट्ठे हुए निहत्थे निर्दोष भारतीयों पर जिस बेरहमी से गोलियाँ चलवाईं, वह मानव

रजनीश "स्वच्छंद"

दुनिया सागर मैं बून्द रहा।। जो आज मैं आंखें मूंद रहा, दुनिया सागर मैं बून्द रहा। निजबल का जो अभिमान खड़ा, मूर्छित और वो कुंद रहा। अंधी नगरी #Poetry #kavita

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दुनिया सागर मैं बून्द रहा।।

जो आज मैं आंखें मूंद रहा,
दुनिया सागर मैं बून्द रहा।
निजबल का जो अभिमान खड़ा,
मूर्छित और वो कुंद रहा।

अंधी नगरी का राजा काना मैं,
दुनिया बटेर उसका दाना मैं।
कुंए का मेढक मैं बन बैठा,
है जग विस्तृत कब माना मैं।

सावन का अंधा मैं बैठा था,
दम्भ लहु अंदर पैठा था।
रस्सी तो जलती रही मगर,
तना हुआ तब भी ऐंठा था।

खून पसीना एक हुआ कब,
कर्म मेरा कहो नेक हुआ कब।
बस बांछें खिलती रहतीं थीं,
यत्न कहो तुम अनेक हुआ कब।

चींटी था पर भी निकले थे,
अहं-बर्फ़ कहाँ कब पिघले थे।
खूंटे के बल जो कूद पड़ा,
चहुये के दांत कहाँ कब निकले थे।

छाती पे मूंग मैं दलता रहा,
खोटा सिक्का पर चलता रहा।
सच से आंखें चुराईं थीं,
डूबते सूरज सा ढलता रहा।

ताश के पत्ते बन बिखरा हूँ,
कब आग चखी और कब निखरा हूँ।
पल पल घुटनों पर आता रहा,
सब जिसपे फूटे मैं वो ठीकरा हूँ।

जब आंख खुली थी सवेर नहीं,
घर था अंधेरा लगी कोई देर नहीं।
अपना बोया था काट रहा,
किस्मत का था कोई फेर नहीं।

चिड़िया बस चुगती खेत रही,
जीवन मुट्ठी से फिसलती रेत रही।
आज किनारे बैठ हूँ रोता,
कालिख बोलो कब श्वेत रही।

©रजनीश "स्वछंद" दुनिया सागर मैं बून्द रहा।।

जो आज मैं आंखें मूंद रहा,
दुनिया सागर मैं बून्द रहा।
निजबल का जो अभिमान खड़ा,
मूर्छित और वो कुंद रहा।

अंधी नगरी

Sugandh Mishra

कमरतोड़ मेहनत पर विश्राम नहीं , ये श्रमिक हैं पर अब इनपर काम नहीं, थकन भी है और चुभन भी , पांव जलते हैं पर चले जाते हैं। जीवन मजबूरी ही सही

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कमरतोड़ मेहनत पर विश्राम नहीं ,
ये श्रमिक हैं पर अब इनपर काम नहीं,
थकन भी है और चुभन भी ,
पांव जलते हैं पर चले जाते हैं।
जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।। १

रात लंबी है अंधे कुंए सी गहरी ,
इनके लिए ना कोई इफ्तार ना कोई सहरी ,
कांधे पे उम्मीद की गठरी फिर भी लिए जाते हैं ।
जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।२

ना रहगुजर कोई , ना कहीं रहनुमाओं के पर ,
साथ है तो एक बस दर्द मगर ,
रहम की मुनादियों के शोर फिर भी सुने जाते हैं ।
जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।३

श्रमबीज जहां बोया उस माटी ने दुत्कार दिया ,
जिस आंगन जन्म लिया उसने भी कहां सत्कार किया,
क्या कर्म भूमि क्या मात्र भूमि ,
ये हर पथ पे लहू बहाते हैं ।
जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।४

अपने ही देश में इनका कोई स्थान नहीं ,
ये निर्माणकर्ता पर इनका कोई सम्मान नहीं ,
अपने आंसुओं की गंगा ये खुद ही पिए जाते हैं ।
जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।५

बेबसी रोती है चीत्कार करती है ,
घनघोर पीड़ा ये मानवता को शर्मसार करती है ,
क्या इसलिए हम मनुष्य जन्म पाते हैं?
जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।६
~सुगंध 
  कमरतोड़ मेहनत पर विश्राम नहीं ,
ये श्रमिक हैं पर अब इनपर काम नहीं,
थकन भी है और चुभन भी ,
पांव जलते हैं पर चले जाते हैं।
जीवन मजबूरी ही सही

रजनीश "स्वच्छंद"

विद्वान हुआ है कौन यहां।। विद्वान हुआ है कौन यहां और कौन यहां पंडित बन फिरता, बदलाव नियम है दुनिया का आडम्बर भी खण्डित बन गिरता। कह भी डाल #Poetry #Quotes #Life #Truth #kavita

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विद्वान हुआ है कौन यहां।।

विद्वान हुआ है कौन यहां और कौन यहां पंडित बन फिरता,
बदलाव नियम है दुनिया का आडम्बर भी खण्डित बन गिरता।

कह भी डालूं किसे मैं ज्ञानी बोलो, जो शब्द पढ़े या भाव पढ़े,
उस ज्ञानी का मुझे क्या करना जो बिन पतवार ही नाव चढ़े।
बस दिशा नहीं कुछ दशा भी हो जो इतिहासों पर गौर करे,
शब्द श्रृंखला जोड़े वो लेखन में भाव भी आ जहां ठौर करे।
महल अटारी अट्टालिका हो पर मिट्टी घर की भी बात गहे,
बन गज वो झूमे मतवाला पर दबे कुचलों की भी बात कहे।
गौण हुए अब भाव अर्थ बस काव्य यहां छन्दित बन फिरता,
विद्वान हुआ है कौन यहां और कौन यहां पंडित बन फिरता।

कुछ दबे रहे हो दीनहीन, विद्रोह की ज्वाला लिए शब्द हों,
जहां शब्द भी तम को हरने लगें ज्यों सूरज के अश्व सप्त हों।
सत्य लेखनी लिख जाए जो सम्यक सार्थक और समुचित हो,
ज्ञानधार मिले जा भवसागर उसकी राह कहीं ना संकुचित हो।
हो प्रलय नहीं, शीतल बयार हो, आंसू भी जो भाप बना जाए,
तिनके को भी बिठा के सर वो उसको तुम से आप बना जाए।
और लड़े लड़ाई हक की उसकी जो इससे वंचित बन फिरता।
विद्वान हुआ है कौन यहां और कौन यहां पंडित बन फिरता,

विधि विधा और विधान भी है, फिर क्यों फैला हाहाकार है,
बना के देवी हो जिसकी पूजा, होता फिर क्यों अत्याचार है।
भूख से लड़ती कोख रही, गोद मे ही जीवन ने दम तोड़ा है,
सच्चई है कड़वी दवा, तोड़ बढ़ो आगे जो भी वहम थोड़ा है।
मेढक बन जो तुम रहे समझते अपनी दुनिया इस कुंए को,
हाथ चलाओ दूर करो आंखों के सम्मुख फैले इस धुंए को।
किसने किया है पाप यहां और कौन यहां दण्डित बन फिरता,
विद्वान हुआ है कौन यहां और कौन यहां पंडित बन फिरता।

©रजनीश "स्वछंद" विद्वान हुआ है कौन यहां।।

विद्वान हुआ है कौन यहां और कौन यहां पंडित बन फिरता,
बदलाव नियम है दुनिया का आडम्बर भी खण्डित बन गिरता।

कह भी डाल
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