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कवी - के. गणेश
देवा वाट पाहू मी किती जीव थकून गेला रे.. विरहात आयुष्याचा आता उन्हाळा झाला रे.! विरह वेदना
Pushpendra Pankaj
नयना निहारें राह तेरी ,तू कहाँ है? राह तकते नयन नीरस हो चुके हैं । होठों ने तो कहना चाहा बहुत कुछ, वो बेचारे स्वयं सुध बुध खो चुके हैं ।। बिछुङ कर मिलना कहाँ आसान होता, मिलन की उम्मीद का पथ चुके हैं ।। अब तो आदत बन गया रहना अकेला, जितना विरह में रोना था हम रो चके हैं ।। पेट ने उपवास रखा ,अब तो आजा, शायद मेरे श्वास पूरे हो चुके हैं ।। पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj विरह वेदना
शिव सागर
विरह वेदना मेरे सांसों में अब भी अपनी गंध पाओगे लाख बार भूलो फिर भी मेरा बंध पाओगे मुझे भाव नहीं दो तो ना घबराऊंगा तुझे फिर से मनाने का प्रबंध पाओगे। हम दोनों के हामी से हि ये रिश्ता बना था दो - दो हाथ से भावों का गुलदस्ता बना था मेरे कमियों का आभास तुझको पूरा था जनम से आदमी हूं मैं ना फरिश्ता बना था। मेरा मन इक झटके में हो जाता था पावन जब बच - बचके करता था तेरा अवलोकन जब तेरे नाम को भजनों कि तरह जपता था मेरे कामि मन का भी हो जाता था शोधन। तुझे श्रीराम जैसा कोई कमल नयन मिले फिर भी प्रेमी मन का भी तनिक हौसला ना हिले चूंकि धीरज से मेरा बेहद घनिष्ठ नाता है मैं शबरी हूं मेरा प्रेम सदियों से खिले। विरह वेदना
Romy kumari
विरह वेदना की पीड़ा, सखी मुझसे कही ना जाएगी हकीकत क्या मेरी रातों की, मेरी आँखे ही बताएगी. रोमी की कलम से.. 💔 #विरह-वेदना
Dr. Bhagwan Sahay Meena
विरह वेदना अंतहीन, घायल मृगी सी सिसक रही। विकल प्राण, सजल नयन, मयूरी माधव बिन अकुला रही। व्याकुल हृदय, दुःख से विहल, चक्षु निर्झर बहा रही। बैरन वंशीवट, कालिंदी तट, शरद रैन तड़पा रही। नीरव निशा, गहन तम, सूनी सेज दग्धा रही। सौतन लगे मुरली माखन, गोपी आठों याम घबरा रही। करूण क्रंदन करें षोड़स श्रृगांर , विकल आत्मा,विरह रागिनी गा रही। लौट आ केशव, विरह तप्त , तेरी ग्वालिनी पुकार रही। हृदय मरुस्थल,यौवन पतझड़, धेनु गिरिधर की रंभा रही। सुन योग संदेशा, हरे हुए घाव, गोपियां उद्धव से बतला रही। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani विरह वेदना
dilip khan anpadh
कृष्ण-विरह वेदना ************** हे यदुवंशी,है परमधन आन मिलो,ढूंढे है ये मन छोड़ गए जिस नीरव तट पर ढूंढे नयन तुझे पनघट पर।। ओ मेरे श्याम,ओ मेरे केशव भूल गए क्यों पलछिन वो सब अंग लगाया, प्रीत जगाके साथ रहे जब कसमे खाके।। ओ छलिया, ओ ब्रज के गिरिधर विनती करूँ, बांध के ये कर आ जाओ तरसे है,ये मन सौंप दिया तुझको ये जीवन।। ओ प्रिय, ओ प्राण पखेडू कब तक विरह तान,में छेड़ूँ तुम बिन रूह तपस में जलता दर्शन दुर्लभ,नयनो को खलता।। ओ कामरूप,ओ प्रेम पुंज क्यों छोड़ गए ये आम्रकुंज आ जाओ तो घट घट वासी प्रेम सुधा बिन राधा प्यासी।। राह निहारूँ,आश लगाऊं तू बता कंहा मैं जाऊं रूह बिना ये जीवन कैसा जल रहा शमसान है जैसा।। विरह वेदना सह न पाऊं अंतः मन से तुम्हे बुलाऊँ कोई राह जो तुम तक जाए वो सांस-श्याम मिलने आ जाए।। दिलीप कुमार खाँ"""अनपढ़"" #कृष्ण विरह वेदना
Romy kumari
व्यथित मन, आँखे नम, उसपे ये बिछुरन की पीड़ा एक झलक पाने प्रियतम की तरस गया मन ये अधीरा. रोमी की कलम से.. 💔 #Confusion #विरह वेदना
Romy kumari
ना मेरे अस्तित्व ना मेरे अस्मिता का मान किया उसने जब किया तो बस मेरा अपमान किया. रोमी की कलम से.. 💔 #girl #विरह वेदना