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Parasram Arora
आज शाम आज शाम कमरे क़े उदास और लावारिस कोने मे पडे उस कैनवास पर बने चित्र की रंगिनियत फीकी दिख रही थी और उसके अक्स भी अदृश्य होते दिख रहे थे जब कि रोज सुनाई पड़ने वाला संगीतमय कोलाहल भी सन्नाटों मे परिवर्तित होगया था अंधेरा भी निरंतर पसरता जा रहा है और मुझे नहीं लगता कि वो अंधेरा मुझे विचलित करने मे कभी क़ामयाबी हासिल कर मुझे कभी अवसादग्रस्त कर पायेगा ©Parasram Arora अवसादग्रस्त....
Parasram Arora
ज़ो गीत वास्तव मे मैं लिखना चाहता था वो मैं अभी तक लिख नहीं पाया हूँ हा उस गीत क़े छन्दों की अनुभूति से मैं कई बार. रूबरू हुआ हूं और सोचने लगा हूँ.. काश कभी मैं उन छंदॉ को अपने गीत मे पिरो पाता ये भी सच है कि मेरी इस छिपी हुई अदृश्य पीड़ा को उन छदो ने भी महसूस किया है और आज उन्हॉने मुझे आश्वासत भी कर दिया यह कह कर "हमें तुम अपने भीतर ऐसे ही ज़िंदा रहने दो. गीतकार क्योंकि हम जानते है हमे लिपिबदद कर देने क़े उपरान्त हमारी अनुपस्तिथि मे तुम्हारे अवसाद ग्रस्त हो जाने की पूरी संभावना है ©Parasram Arora अवसादग्रस्त.....
Parasram Arora
#RajasthanDiwas कविमाहराज ये कैसी कविता है? जिसमे न नक्शत्रों का ज़िक्र है न आकाशगंगा का हवाला इतने टिमटिमाते सितारे आसमान मे हैँ वे भी तुम्हे नजर नहीं आये? क्या हुआ उन इंद्रधनुशोका क्यों उन्होंने भी तुम्हारा ध्यान अपनी ओर नहीं खींचा?. ऎसी बेस्वाद कविता को अवसादग्रस्त न कहां जाय तो क्या कहा जाय? ©Parasram Arora अवसादग्रस्त कविता
Parasram Arora
दिन पूरा दिन होता हैँ और रात पूरी रात होती हैँ किन्तु ये अवसादग्रस्त अनिद्रा इस बात का समर्थन कहा करती हैँ जबकि मेरी हर करवट पर ये चरमराती हुईं बूढ़ी खाट भी तो इसी बात की पुष्टि करती हैँ. ! अवसादग्रस्त अनिद्रा..... Message
कवी - के. गणेश
आयुष्य वाचलेल्या पानासारखं आठवणींनी मनात भरावं.. आपण संपलो तरीही आपलं अस्तित्व उरावं..! पुस्तक..
Bharat
कभी वो मेरे पास आने से कटराती थी आज तो वो हमेशा मेरे संग को बतलाती है क्योकि मैने मन से उसको अपना बनाया था कभी उसको मैने अपनी सांस समाया था जब से मैने उसको अपने कर में थामा है तब से इस जहां ने मुझे संग से जाना है रात-रात भर उसके संग में बतियाता हूँ समय आने पर उसको में हथियाता हूँ पुस्तक
Sankranti
क्या मैं इतनी बुरी हूं.... पुस्तक सोई पुस्तकालय में बोली इतने दिन चुप रहने के बाद आज वो अपना मुंह खोली मुस्किल से कोई मुझे ले जाता है वो भी रख मुझे टेबल पर सामने मेरे सो जाता है क्या मैं इतनी बुरी हूं.... मैं एक जगह रखे रखे थक जाती हूं एक बार भी तो वो मुझे खोलकर देख ले इसके लिए तरस जाती हूं जब वो बाहर जाता फोन साथ ले जाता जब वापस आता फोन में लग जाता वो तो मेरा ख्याल ही भूल जाता है क्या मैं इतनी बुरी हूं.... मैं मददगार..., इतनी काम की हूं फिर भी क्यों लगती बेकार हूं कुछ तो देख मुझे अजीब सी शक्ल बनाते जैसे लिखा हो मुझमें ऐसा कुछ जिसे देख वो डर जाते क्या मैं इतनी बुरी हूं.... ©Sankranti #पुस्तक
Vini Patel
मेने मेरे सर से पूछा :- सर इन्सान को बदलना हैं तो केसे बदले? सर ने कहा:- इन्सान अनुभव से बदलता है। मेने कहाँ:- सर इन्सान चाहे तो वो अच्छे पुस्तक पढ़ने से भी बदल सकता है। पुस्तक।
Kavita jayesh Panot
पुस्तक देती सबको ज्ञान , पुस्तक का करना सीखो सम्मान , पुस्तक ही माता है, ज्ञानदाता है, नवजीवन का निर्माता है, सबका भाग्य विधाता हैं, पुस्तक का आदर करना सीखो, जीवन का निमार्ण करना सीखो।। i love reading books. # पुस्तक