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कमलेश
हर आशिकों कि आशक़ी उसके लिए अफ़सरा होती हैं हरेक टूटे आशिक़ों कि नफ़रत भी उसकी डायन( EX) होती हैं.. - कमलेश #meri ex का वर्गीकरण 👸🧟♀️
Mahima Jain
•| संख्यात्मक अवरोहनी |• छह दिन पुरानी बात है, पंच दिवसीय प्रतियोगिता में लिया भाग है। चार पंक्तियों से अधिक कम ही लिखती हूं, तीन बहनों में मैं ही सबसे छोटी हूं। दो दिन से सोच रही हूं कैसे ये मुश्किल हल करनी है, एक दिवस में अब सभी चुनौती पूर्ण करनी है।। मेरी छह पंक्ति की संख्यात्मक कविता। Challange done for Nidhi Bansal ❤️ #pranti2021 #prantitask2 #meriavrohikavita #prantimahima
Rashmi Hule
आपल्या चुकांचे समर्थन करत राहिले की इतरांच्या चुका मोठ्याच वाटत राहतात... आपल्या चुकांचे वर्गीकरण करुन स्वीकारल्या की इतरांच्या चुकांकडे पाहाण्याचा दृष्टिकोन बदलतो... अपनी गलती का समर्थन जब तक करते रहेंगे, दुसरों की गलतियां बडी ही लगती हैं. अपनी गलतियों का वर्गीकरण कर के उन्हें स्वीकारने से दुसरों की गलतिय
kumar pramod
Raj Singh
Divyanshu Pathak
#Good evening जी.... कैप्शन देख लीजिए । ऐसा करते हैं... #ऐसाकरतेहैं #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #mankibaat #jaati_dharam #abhishek #shal
Ajay Amitabh Suman
========================== मेरे भुज बल की शक्ति क्या दुर्योधन ने ना देखा? कृपाचार्य की शक्ति का कैसे कर सकते अनदेखा? दुःख भी होता था हमको और किंचित इर्ष्या होती थी, मानवोचित विष अग्नि उर में जलती थी बुझती थी। =========================== युद्ध लड़ा था जो दुर्योधन के हित में था प्रतिफल क्या? बीज चने के भुने हुए थे क्षेत्र परिश्रम ऋतु फल क्या? शायद मुझसे भूल हुई जो ऐसा कटु फल पाता था, या विवेक में कमी रही थी कंटक दुख पल पाता था। =========================== या समय का रचा हुआ लगता था पूर्व निर्धारित खेल, या मेरे प्रारब्ध कर्म का दुचित वक्त प्रवाहित मेल। या स्वीकार करूँ दुर्योधन का मतिभ्रम था ये कहकर, या दुर्भाग्य हुआ प्रस्फुटण आज देख स्वर्णिम अवसर। =========================== मन में शंका के बादल जो उमड़ घुमड़ कर आते थे, शेष बची थी जो कुछ प्रज्ञा धुंध घने कर जाते थे । क्यों कर कान्हा ने मुझको दुर्योधन के साथ किया? या नाहक का हीं था भ्रम ना केशव ने साथ दिया? ========================= या गिरिधर की कोई लीला थी शायद उपाय भला, या अल्प बुद्धि अभिमानी पे माया का जाल फला। अविवेक नयनों पे इतना सत्य दृष्टि ना फलता था, या मैंने स्वकर्म रचे जो उसका हीं फल पलता था? ========================== या दुर्बुद्धि फलित हुई थी ना इतना सम्मान किया, मृतशैया पर मित्र पड़ा था ना इतना भी ध्यान दिया। क्या सोचकर मृतगामी दुर्योधन के विरुद्ध पड़ा , निज मन चितवन घने द्वंद्व में मैं मेरे प्रतिरुद्ध अड़ा। ========================== अजय अमिताभ सुमन : सर्वाधिकार सुरक्षित ©Ajay Amitabh Suman #कविता #दुर्योधन #अश्वत्थामा #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा #कृपाचार्य ===================== मन की प्रकृति बड़ी विचित्र है। किसी भी छोटी
Vikas Sharma Shivaaya'
*जैसे आपका भोजन आपको स्वयं ही खाना पड़ता है, तभी भूख मिटती और शक्ति प्राप्त होती है। इसी प्रकार से आपको अपने मन में स्वयं झाड़ू लगानी होगी, तभी उससे मन की शुद्धता और प्रसन्नता प्राप्त होगी।* कुल मिलाकर चार प्रकार का ज्ञान होता है। मिथ्या ज्ञान, संशयात्मक ज्ञान, शाब्दिक ज्ञान, और तत्त्वज्ञान। *1- मिथ्या ज्ञान* उसे कहते हैं, जब वस्तु कुछ और हो और व्यक्ति उसे समझता कुछ और हो। जैसे रस्सी को सांप समझना। यह मिथ्या ज्ञान है। *2- संशयात्मक ज्ञान* उसे कहते हैं, जब वस्तु समझ में ही नहीं आए। जैसे यह वस्तु रस्सी है, या सांप है, कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। कोई निर्णय नहीं हो पा रहा। ऐसी स्थिति में जो ज्ञान होता है, उसे संशयात्मक ज्ञान कहते हैं। *3- शाब्दिक ज्ञान।* जब व्यक्ति शब्दों से तो किसी वस्तु को ठीक-ठीक समझ लेता है, जान लेता है, बोल भी देता है, परंतु वैसा आचरण नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति वाले ज्ञान को शाब्दिक ज्ञान कहते हैं। जैसे *क्रोध नहीं करना चाहिए।* यह बात ठीक है। व्यक्ति समझता है, बोलता भी है, परंतु फिर भी इस के अनुकूल आचरण नहीं करता। व्यवहार में फिर भी क्रोध कर ही देता है। ऐसे ज्ञान को शाब्दिक ज्ञान कहते हैं। *4- चौथा है तत्त्वज्ञान।* जब शाब्दिक ज्ञान को व्यक्ति अपने आचरण में भी ठीक वैसा ही उतार लेता है, जैसा वह शब्दों से कह रहा था। तो उसके ज्ञान को तत्त्वज्ञान कहते हैं। यही वास्तविक ज्ञान है। ऐसे वास्तविक ज्ञान से ही पूर्ण लाभ होता है। जो व्यक्ति व्यवहार में क्रोध नहीं करता, उसका ज्ञान तत्त्वज्ञान है। अब ज्ञान की इस व्यवस्था के अनुसार हमें यह भी समझना चाहिए, कि यदि घर में कूड़ा कचरा गंदगी रहेगी, तो घर दूषित रहेगा, और वहां जो भी बैठेगा, उसे सुख शांति आनंद नहीं मिलेगा। और यदि झाड़ू पोंछा लगा कर घर साफ-सुथरा होगा, तो वहां जो भी बैठेगा उसे सुख शांति आनंद मिलेगा। बैठना अच्छा लगेगा। मन प्रसन्न रहेगा। इसी प्रकार से शाब्दिक ज्ञान तो सभी को है, कि *यदि मन में क्रोध घृणा ईर्ष्या अभिमान आदि बुराइयां रहेंगी, तो मन अशुद्ध रहेगा, और उसके प्रभाव से व्यक्ति सारा दिन दुखी रहेगा। और यदि मन में प्रेम दया सरलता नम्रता आदि अच्छे गुण रहेंगे, तब मन शुद्ध रहेगा, और व्यक्ति सारा दिन प्रसन्न रह पाएगा। इसलिए अपने मन को शुद्ध करना ही बुद्धिमत्ता है। मन को कचरा पेटी न बनाएं, फूलों का गुलदस्ता बनाएं।* परंतु जब तक व्यक्ति उस शाब्दिक ज्ञान को तत्त्वज्ञान में न बदल दे, तब तक उस शाब्दिक ज्ञान से कोई विशेष लाभ नहीं होता। केवल 10 20 प्रतिशत लाभ होता है। इसलिए अपने शाब्दिक ज्ञान को वास्तविक ज्ञान में अथवा तत्त्वज्ञान में बदलने का प्रयत्न करना चाहिए। अब रही बात, कि *शाब्दिक ज्ञान को तत्त्वज्ञान में कैसे बदलें?* इसका उपाय है, कि *उस शाब्दिक ज्ञान को सैकड़ों बार दोहराएं। हर रोज दोहराएं। दिन में दो चार पांच दस बार दोहराएं। ऐसे धीरे-धीरे वह शाब्दिक ज्ञान तत्त्वज्ञान में बदल जाएगा।* दूसरी बात - *उस शाब्दिक ज्ञान को थोड़ा-थोड़ा अपने व्यवहार में लाएं। ऐसे व्यवहार में लाते लाते, धीरे-धीरे वह शाब्दिक ज्ञान तत्त्वज्ञान में बदल जाएगा। और आपका जीवन आनन्दित हो जाएगा।* 🐾 *हे परमात्मा*, 🐾 *अगर आप का कुछ तोड़ने का मन करे*, 🐾तो मेरा ग़रूर तोड़ देना.. *अगर आप का कुछ जलाने का मन करे*, 🐾तो मेरा क्रोध जला देना.. 🐾 *अगर आप का कुछ बुझाने का मन करे*, 🐾तो मेरी घृणा बुझा देना..🐾 *अगर आप का मारने का मन करे*, 🐾तो मेरी इच्छा को मार देना..🐾 *अगर आप का प्यार करने का मन करे*, 🐾तो मेरी ओर देख लेना..🐾 *"मैं शब्द, तुम अर्थ, तुम बिन मैं व्यर्थ"* 🐚☀🐚 🐾स्नेह वंदन 😊🍀🙏शुभ प्रभात🙏🍀😊 🍁*आपका दिन मंगलमय हो 🌹 *शुभ् प्रभात् 🌹विध्न् विनाशक भगवान् गणेश जी की कृपा हमेशा आप सभी पर बनी रहे🙌 ©Vikas Sharma Shivaaya' *जैसे आपका भोजन आपको स्वयं ही खाना पड़ता है, तभी भूख मिटती और शक्ति प्राप्त होती है। इसी प्रकार से आपको अपने मन में स्वयं झाड़ू लगानी होगी,