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    PopularLatestVideo

somnath gawade

 हास्य नभांगणातील जाहिरात:
     चंद्र विकणे आहे;
घेणाऱ्याला किंमत सांगून
दिवसासुद्धा चांदण्याचे 
 दर्शन मोफत आहे.😂🤣 #जाहिरात

अल्पेश सोलकर

खंत वाटते... चतुर मोबाईल ने.. पुस्तकाची जागा घेतली.. #alpeshsolkar

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खंत वाटते...
चतुर मोबाईल ने.. पुस्तकाची जागा घेतली.. खंत वाटते...
चतुर मोबाईल ने.. पुस्तकाची जागा घेतली..
#alpeshsolkar

PAVAN BHISE

#मातारमाई #डॉ_बाबासाहेब_आंबेडकर #त्याग #समर्पण... थोट्स ऑफ पाकिस्तान या पुस्तकाची अर्पण पत्रिका... #UnlockSecrets

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Pushpendra Pankaj

निष्पक्ष लेखन मर्यादित लेखन #कविता

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Dawoli aala

#लेखन

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की हर रोज लिखता हुँ ,

ज़नाब में बस हकीकत लिखता हुँ ।।

                                       :-Dawoli aala #लेखन

Tomar Sister's

#लेखन

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कागज़ पर अपनी भावनाएं व्यक्त करना इतना भी आसान नहीं होता जितना लगता है। खुद को खुद में ही खोकर विचारों के सागर में डूबते-उतराते उन भावनाओं को जीते हुए ख़ुद को मथना पड़ता है, तब कहीं जाकर लेखनी शब्दों को कगज पर उतारती है और बनती है वो रचना जो बुद्धि जनों को अपनी रौं में बहा ले जाती है। 
Tomar Sisters #लेखन

Ashutosh singh chauhan

लेखन

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खुशबू हवाएं ले उड़ी , वक्त रंगत ले गया
 गुल ने दास्तां कही , क्या से क्या यह हो गया ।
 और न लेखन के बारे में कोई दावा है
 हम नहीं कहते कि हम ही कहते हैं ।
 यही तो कहते हैं , कि हम भी कहते हैं । लेखन

Mohan Sardarshahari

# लेखन #प्रेरक

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लिखता तो इसलिए  हूं कि
दिल में हर चीज छुपाना संभव नहीं 
वरना कलम-कोपी कोई चंदन का पेड़ 
और मैं भी कोई भुजंग नहीं।।

©Mohan Sardarshahari # लेखन

पूर्वार्थ

#लेखन

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लेखन.....

कभी-कभी लेखन भी....
कहां आसान सा होता है??

मन में चलते तो है....
जैसे कई तेज तूफ़ान से हैं.....

पर उस तूफ़ान में से.....
अपने लेखन के लिए,कुछ शब्द चुन पाना...
कहां आसान सा होता है??....

उस वक्त तो बस,,,,,,,
औरों की ही.....
कविताएं पढ़ -पढ़ कर .....
जैसे अपना मन भरते ही जाते है......

और अपने लेखन की कला को.....
कुछ हद तक, निखारते जाते हैं...
और फिर से,,,,,
अपने उस लेखन को.....
आज़माते जाते हैं....,,,,,,,,

कभी - कभी .....
अपने मन की बातें ,,,,,,,,
लेखन में उतार पाना ......
कहां उतना आसान होता है?....
कहां आसान होता है?? .......

©purvarth #लेखन

Manmohan Dheer

लेखन

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घटनाएं ही लेखन का मूल हैं
स्मृतियों के लिए भी आवश्यक
मन का सोचा कहाँ होता है पूरा 
सो अच्छा बुरा है लेखन भी
पहले व्युत्क्रम नही होता था
लेखन घटनाओं पर होता था 
कल्पनाओं के बादल नही यहां
सक्रिय प्रदर्शन होता है यथार्थ
कलम दौड़ती नियंत्रण में अंधी बन
जाने क्या क्या लिख जाती है
अपना बच्चा सबसे प्यारा
लेखक का भी यही मूल है
लेखन अच्छा बुरा नही होता है
होता है यथार्थ या वीभत्स कल्पना
.
.
धीर लेखन
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