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Manisha Bose

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Kranti Thakur

तुम्हें लिखने में इतना मशरूफ़ हो गया हूँ
कि ख़ुद को पढ़ने या 
समझने का वक़्त नहीं रहता
हाँ संवेदनाएँ मार दी है मैंने
और मैं अब पहले सा बेचैन नहीं रहता।


- क्रांति #संवेदनाएँ

kumar ramesh rahi

अंदर से मैं जिंदा लाश हूं, 
         बाहर से अपनों की आस हूं! 
मूर्त सा बस है दिखता शरीर, 
         परंतु सभी प्राणियों में खास हूं! 
संवेदनाएं हृदय को झकझोरती हैं,
         भावों का उठता ज्वार
भंगिमाए  शून्यता के पार 
         जाने किस पथ पर मोड़ती है! 
हलचल सी ऐसी होती, 
         रह रह जैसे कोई पीड़ा रोती! 
लहरों का प्रचंड वेग सुनामी हो जैसे,
         जहां कंपकपाती हो धरा
प्रलय का अनुगामी हो जैसे!
         पिघलता तुंग हिमालय
झरने ये झरते आंखों से,
         नदिया वन उपवन भीग रहे
टहनी टूटी चोट लगी जो शाखों से!
         अम्बर भी विह्वल हो रोया है,
उसका भी जाने कोई खोया है!
         ऊपर वाले तेरी कैसी माया है,
अफनायी उम्मीदों मे ही सोया है! #नोजोटोहिन्दी #हिन्दीसाहित्य 
#मैंअन्दरसेजिन्दालाशहूं
#संवेदनाए

Parasram Arora

सुखद संवेदनाये #we #कविता

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कितने अच्छे थे मेरे वे दिन
ज़ब मै हर छल  से  दूर था
अधरों पर किलकारी  और चेहरेपर 
उल्लासित नूर था
कदम लड़खडातें थे.
लेकिन इरादों मे  उत्साह भरपूर था
आज वो अबोध मासूम सा  शिशु  पक
कर प्रौढ़ता मे कदम रख चुका हैँ
और जीवन के चक्रव्यू मे फंस कर
अपनी सुखद संवेदनाओं क़ो.
नष्ट कर चुका हैँ

©Parasram Arora सुखद संवेदनाये 

#we

✍🏼एहसासे सागर

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Parasram Arora

संवेदनाएं..

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निस्तब्ध  पर्वतों  से   चैतन्यदायिनी  हवाएं 
सागर  पर  संध्याकालीन  सुकुमार    निलिमाएँ 
प्रीटी  क़े  सेतुः  से  कब जाकर. जुड़ीं
कब बलवती हुई  संवेदनाएं 
और कब . जाकर  जुड़ीं  शाश्वत की धाराओं से 
पता  ही  न चला संवेदनाएं..

Kaushik

poem संवेदनायें खोता समाज

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मुझे डर लगता है
मुझे संवेदनाये खोते समाज
 से डर लगता है
इंसान को हम इन्सान क्यूँ
कहते है
क्योंकि वह चलता है
दॊ पैरों पर 
या खा लेता है
अपना भोजन
सलीके से
या कुछ और
प्रश्न है तुम्हारे लिए.....
इंसान  के लिए
या इन्सान होने की योग्यता
कुछ और है
संवेदनायें , हृदय, मस्तिष्क ?
क्या ?
स्वयं से पूछना....
मैं उत्तर की प्रतिक्षा मे नही हूँ
क्योंकि यह शाश्वत प्रश्न है
...... कौशिक श्रेय #poem  संवेदनायें खोता समाज

Ashish Deshmukh

हम हिंदी अंग्रेजी को ही बोली समझ बैठे
संवेदनशील ह्रदय आंखों में जुबां रखता है

©Ashish Deshmukh #संवेदनाओं #भाषा

vidushi MISHRA

तेरी संवेदनाएं #विचार

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बहुत वक्त बाद मेरी संवेदना  किसी के प्रति जगी लेकिन वह  ठहरी  ही नहीं हवे की तरह आई और मुझे शीतलता प्रदान करके चली गई शायद कुछ कहना चाहती थी और अनकही लफ्जों में कह कर चली गई और फिर से अपने ना आने का वक्त बिना बताए मुझसे जुदा हो गई.... तेरी संवेदनाएं

Deepa Didi Prajapati

#भाव- संवेदनाएं #विचार

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