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Kranti Thakur
तुम्हें लिखने में इतना मशरूफ़ हो गया हूँ कि ख़ुद को पढ़ने या समझने का वक़्त नहीं रहता हाँ संवेदनाएँ मार दी है मैंने और मैं अब पहले सा बेचैन नहीं रहता। - क्रांति #संवेदनाएँ
kumar ramesh rahi
अंदर से मैं जिंदा लाश हूं, बाहर से अपनों की आस हूं! मूर्त सा बस है दिखता शरीर, परंतु सभी प्राणियों में खास हूं! संवेदनाएं हृदय को झकझोरती हैं, भावों का उठता ज्वार भंगिमाए शून्यता के पार जाने किस पथ पर मोड़ती है! हलचल सी ऐसी होती, रह रह जैसे कोई पीड़ा रोती! लहरों का प्रचंड वेग सुनामी हो जैसे, जहां कंपकपाती हो धरा प्रलय का अनुगामी हो जैसे! पिघलता तुंग हिमालय झरने ये झरते आंखों से, नदिया वन उपवन भीग रहे टहनी टूटी चोट लगी जो शाखों से! अम्बर भी विह्वल हो रोया है, उसका भी जाने कोई खोया है! ऊपर वाले तेरी कैसी माया है, अफनायी उम्मीदों मे ही सोया है! #नोजोटोहिन्दी #हिन्दीसाहित्य #मैंअन्दरसेजिन्दालाशहूं #संवेदनाए
Parasram Arora
कितने अच्छे थे मेरे वे दिन ज़ब मै हर छल से दूर था अधरों पर किलकारी और चेहरेपर उल्लासित नूर था कदम लड़खडातें थे. लेकिन इरादों मे उत्साह भरपूर था आज वो अबोध मासूम सा शिशु पक कर प्रौढ़ता मे कदम रख चुका हैँ और जीवन के चक्रव्यू मे फंस कर अपनी सुखद संवेदनाओं क़ो. नष्ट कर चुका हैँ ©Parasram Arora सुखद संवेदनाये #we
Parasram Arora
निस्तब्ध पर्वतों से चैतन्यदायिनी हवाएं सागर पर संध्याकालीन सुकुमार निलिमाएँ प्रीटी क़े सेतुः से कब जाकर. जुड़ीं कब बलवती हुई संवेदनाएं और कब . जाकर जुड़ीं शाश्वत की धाराओं से पता ही न चला संवेदनाएं..
Kaushik
मुझे डर लगता है मुझे संवेदनाये खोते समाज से डर लगता है इंसान को हम इन्सान क्यूँ कहते है क्योंकि वह चलता है दॊ पैरों पर या खा लेता है अपना भोजन सलीके से या कुछ और प्रश्न है तुम्हारे लिए..... इंसान के लिए या इन्सान होने की योग्यता कुछ और है संवेदनायें , हृदय, मस्तिष्क ? क्या ? स्वयं से पूछना.... मैं उत्तर की प्रतिक्षा मे नही हूँ क्योंकि यह शाश्वत प्रश्न है ...... कौशिक श्रेय #poem संवेदनायें खोता समाज
Ashish Deshmukh
हम हिंदी अंग्रेजी को ही बोली समझ बैठे संवेदनशील ह्रदय आंखों में जुबां रखता है ©Ashish Deshmukh #संवेदनाओं #भाषा
vidushi MISHRA
बहुत वक्त बाद मेरी संवेदना किसी के प्रति जगी लेकिन वह ठहरी ही नहीं हवे की तरह आई और मुझे शीतलता प्रदान करके चली गई शायद कुछ कहना चाहती थी और अनकही लफ्जों में कह कर चली गई और फिर से अपने ना आने का वक्त बिना बताए मुझसे जुदा हो गई.... तेरी संवेदनाएं
Deepa Didi Prajapati
ईश्वरीय सम्पूर्ण सृष्टि का नक्शा रूपी पृथ्वी पर मनुष्य की भाव- संवेदनाओं को नष्ट कर देने वाला स्थल,कारागार रूपी नरक है। ©Deepa Didi Prajapati #भाव- संवेदनाएं