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Motivational indar jeet group
जीवन दर्शन 🌹 हमें अपने भीतर तलाश करना चाहिए , वहाँ अगणित विशेषताओं के बीज मौजूद है । उनके उपयोग करने से भूतकाल के दुर्भाग्य को भविष्य के सौभाग्य में आसानी से बदला जा सकता है !.i. j ©motivationl indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹 हमें अपने भीतर तलाश करना चाहिए , वहाँ अगणित विशेषताओं के बीज मौजूद है । उनके उपयोग करने से भूतकाल के दुर्भाग्य को भविष्य के सौ
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
टिकट निरीक्षक हो या कानून के जानकार, ये लोग हैं हमारे भारत देश के कर्णधार, इनका प्रमुख योगदान है देश के विकास में, सभी के सभी नज़र आते हैं काले लिबास में। सिर्फ और सिर्फ इनका पहनावा है काला, इन्होंने देश की स्थति को हद तक है संभाला, दिल के सफेद, कमी नहीं इनके विश्वास में, सभी के सभी नज़र आते हैं, काले लिबास में। काली बदली में छिपा चाँद सा, लगती वो काले लिबास में। किससे कहूँ कि क्यों मचल रहा मन, मिलने की आस में।। 👉आइए अब कुछ उनकी भी विशेषताओं को लिख
Vikrant Rajliwal
Vikrant Rajliwal
Sandeep Kothar
सराहना (Appreciation) सराहना तो सिर्फ आज एक बहाना है सरल शब्दों में... चापलूसी का अब यह जमाना है कदरदान तो हर जगह मिल ही जाएंगे मगर दिल से तारीफ़ का अब न कोई ठिकाना है! ©Sandeep Kothar सराहना (Appreciation) सराहना तो सिर्फ आज एक बहाना है सरल शब्दों में... चापलूसी का अब यह जमाना है कदरदान तो हर जगह मिल ही जाएंगे मगर दिल से
Sandeep Kothar
सराहना (Appreciation) सराहना तो सिर्फ आज एक बहाना है सरल शब्दों में... चापलूसी का अब यह जमाना है कदरदान तो हर जगह मिल ही जाएंगे मगर दिल से तारीफ़ का अब न कोई ठिकाना है! ©Sandeep Kothar सराहना (Appreciation) सराहना तो सिर्फ आज एक बहाना है सरल शब्दों में... चापलूसी का अब यह जमाना है कदरदान तो हर जगह मिल ही जाएंगे मगर दिल से
Divyanshu Pathak
नव निर्माण और उन्नति का माध्यम ( कोराकाग़ज़ ) ---- स्वामी दयानंद सरस्वती विरजानन्द जी के आश्रम में पहुंचे और उनसे अपना शिष्य बनाने की विनती की तब विरजानन्द जी ने उनसे पूछा कि बेटा तुम क्या जानते हो आज तक कुछ पढा है क्या? तब स्वामी जी ने कहा कि मैंने बहुत सी पुस्तकों को पढ़ा है। यह सुनकर विरजानन्द जी बोले, ठीक है किताबें पढ़ीं हैं तो पर मैं तुम्हें अपना शिष्य नहीं बना सकता इसलिए तुम जा सकते हो। जब स्वामी दयानंद जी ने ये बात सुनी तो उनकी आँखों से आँसू निकलने लगे वे विनीत भाव में बोले गुरुजी मैं क्या करूँ जो आप का शिष्य हो सकूँ।तब विरजानन्द जी ने कहा कि अब तक जो कुछ भी तुमने अपने मन के काग़ज़ पे अंकित किया है उसे मिटा दे और इन किताबों की गठरी को यमुना जी में बहा दे तब मैं तुम्हें अपना शिष्य बनाऊँगा, तेरे मन में कुछ लिख पाऊँगा। कुछ स्पष्ट सुंदर और स्थाई लिखने के लिए "कोराकाग़ज़" होना बहुत जरूरी है। ( कैप्शन देखें ) कोराकाग़ज़ मानव जीवन से जुड़ा हुआ एक ऐसा उपागम है,जो कालक्रम की हर एक गतिविधि का साक्षी बनता है। श्रष्टि के आरंभ में श्रुतियों का लिपिबद्ध होकर