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Pooja Udeshi
रहिमन इतना दीजिये जितमे मेरा और मेरा परिवार का पेट भर जाऐ! अगर कोई अपने द्वार आए वो भी भूखा ना जाऐ! लेटने को पलंग ना सही सर पर छत देना! बच्चे भगवान का रूप होते है तो उनको इतनी काबिलियत देना कि कुछ बन जाऐ! लड़की सुखी रहे गर पराये घर जाऐ! मै मरू तो चार कंधो के साथ हजार लोगो का काफ़िला जाये, मुझे फूलों से सजाया जाऐ! चन्दन तिलक लगाया जाऐ! सुन्दर चिंता मे सुलाया जाऐ! रहिमन मरने से पहले तू ही मेरे समक्ष आ कर मेरे प्राण शान्ति के साथ हर ले जाऐ! ©POOJA UDESHI #रहिमन #WallTexture
श।यर देव Thakur
रहीमन वीणा बावरी, बजाय कौन फकीर, कोई पैं करें कोई पों करें, हर कोई बने माहिर। ©देव Thakur रहिमन वीणा बावरी #mastmagan
Ram Pujari
लगता है मुझको कई बार, दिखता है नहीं, जो साफ-साफ। कोशिश करनी होगी-अदृश्य को जानने की मुझे बारम्बार। हंसमुख रिश्तों में छिपे हुए, सच को समझने की है बस दरकार। रहिमन धागा प्रेम का....!!!
Rk Patel 0999
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय. रहिमन धागा प्रेम का,
Tara Chandra
विपदा! तू भी देन, श्री हरि की, सच्चा साथ निभाती..... ज्ञानचक्षु! जो तुम हो खोलती, जीवन मर्म सिखाती....। विपदा! तू भी देन..... बचपन! वैभव भरा किसी का, फूल सा पाला जाये.... कोई पग-पग ठोकर खाता, तू जो नाच नचाये.....। विपदा! तू भी देन..... कोई पल तो मिले हर्ष का, मन सन्ताप मिटाये... या इतना करदे तू करुणा, तुझमें मन रम जाये......। विपदा! तू भी देन..... विनती है, मत आना "कुमति" संग, पाप, लोभ मत लाना... देना सन्त जनों की संगत, और भजन का बाना.....। विपदा! तू भी देन..... तुम्ही हो, जो मनुज बनाती, जीवन दर्शन सहज दिखाती, ज्ञानीजन खोजत शास्त्रों में, तुम अनुभव से सिखाती...। विपदा! तू भी देन..... दान-पुण्य, और धर्म-कर्म क्या? दया, शील, मृदुवचन, प्रेम क्या? सबका दुःख अपना सा लागे, यही श्री हरि की थाती....। विपदा! तू भी देन..... ©Tara Chandra #विपदा
Trilok
जीवन से विपदाओं का, खत्म अंधेरा कब होगा इस लम्बी रात के बाद, समाधान सवेरा कब होगा विपदाओं से कैसा ये गठबंधन, घूमती रहती चऊं ओर निशदिन एक से मुक्त होऊं उसके पहले, आ ही जाती नित नई नूतन इस कोलाहल से हटकर, शांत डेरा कब होगा जीवन से विपदाओं का, खत्म अंधेरा कब होगा विपदाओं के होते अनेक प्रकार, छोटी बड़ी के रूप में आकार बिना दस्तक आ जाती कई बार, दबा देता इसका मजबूत भार सामना ना हो इनसे, वो वक्त मेरा कब होगा जीवन से विपदाओं का, खत्म अंधेरा कब होगा मैंने किया है सुदृढ़ इस मन को, प्रभावित न कर सकेगी जीवन को अब विपदा रूप लेगी संपदा का, रुख मोड़ना होगा इस पवन को संकल्पों के माध्यम से, खुशहाल बसेरा अब होगा जीवन से विपदाओं का, खत्म अंधेरा कब होगा विपदा
Kiran Jatav
चाह तो बहुत है जिंदगी को मैंने भी पर ये कम्बखत कब किस की हुई है ना कल मेरा था और ना कल का पता बस अभी जो है बो ही मेरा सुन्दर पल है हू हू