Find the Latest Status about व्यथित मन पर कविता from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, व्यथित मन पर कविता.
Rajesh rajak
मैं इस अखंड साम्राज्य का अधिपति, मूक दर्शक की भांति,देखता रहा, धू धू कर लंका जल गई मै कुछ न कर सका, समय की विडम्बना देखिए,भाई विभीषण बन, जाके दुश्मन से मिल गया, मेरी लंका स्वर्ण की नहीं थी, न ही मेरे रिपु,श्री राम थे, मै तो अपने अखंडित,अविभाजित,कबीले का सरदार था, सिर्फ कुछ उसूल थे सरदार के, लोक लाज,मर्यादा,स्त्री सम्मान, जरूरी था, यही कबीले के संस्कार थे, पर विभीषण बन चुके भाई ने सब जला दिए, मेरे आदर्श जो श्री राम थे, सीखे थे जो संस्कार प्रभु राम से, आज मिट्टी में मिला दिए, आज मित चुके संस्कार,कुरीति ने लिया नव आकार, जो देखे थे स्वप्न कभी, कर न सका,उनको साकार, जल रहा हूं, हां जल रहा हूं, बिन आकार, विभीषण वन चुके अपने भ्रात के हाथों, हो रहा मेरा जीते जी अंतिम संस्कार, व्यथित मन के अंदर मचा है हाहाकार,,,, व्यथित मन,
Kapil Tomer
-----व्यथित मन----- अति दुखदायी बेचैन ये मन, रोता है बहुत दिन रैन ये मन। प्रभु शक्ति दे, सद्बुद्धि दे, पायेगा तभी कुछ चैन ये मन।। 😶😑 ✍️कपिल वीरसिंह ©Kapil Tomer व्यथित मन
Shilpa yadav
व्यथित मन अत्यन्त याद करता है सब्र नही फूलो की बरसात करता है जिन्दगी मेरी भी कभी लडखडाती है सजल नैन भी कभी सूखा करता है सूरज भी तो कभी डूबा करता है कभी ह्रदय भी मेरा चीख उठता है ऐ जिन्दगी बहुत कुछ सिखाती है कद्र नही खुशियो की सौगात करता है - शिल्पा यादव मेरा व्यथित मन
pawan kumar suman
मेरे सादगी से तंग आ बसा ली वो अलग दुनियाँ, ओझल कर देती हमेशा हमें पर दिख जाती थी बेताबियाँ। पिंजरे की पंछी की तरह उड़ने को बेचैन रहती थी वो- खोल दिया होता दिल का पिजरा यदि सामने न होती मजबूरियाँ। बदल गए सारे सुर,लय-तान हमारे, आख़िर वो ले उर गई जान हमारे। दिल से चाहा था जिस जिस को मैंने- छोड़ मरदते चले गए अरमान हमारे। बैशाखी पर है कहाँ जिंदगी चलने वाला, सच्चाई छुपती कहाँ जड़ो जितना ताला। देखी है दुनियां स्वार्थ में जीते यहाँ हर लोग- व्यथित मन को न रहा सहारा देने वाला। ©pawan kumar suman व्यथित मन #Dark
Kishan Prajapat
खामोशियां बेवजह नहीं होती कुछ दर्द आवाज चीन लिया करते हैं ©Kishan Prajapat दुखी मन पर कविता #Path
Swakeeya ..
मन बड़ा विचलित और अशांत है कई दिनों से! कुछ ढूंढता रहता है हर वक्त, पर न जाने क्या? इसीलिए न खोज ख़त्म होती है न ही सुकून मिल पाता है। शायद ये अधूरापन ही है जो हावी है मन और जीवन में रहने नहीं देता चित्त स्थिर चलायमान चंचल यायावर की भांति तलाशता है अधूरेपन का विकल्प इसे कुछ अनैतिक नहीं चाहिए न ही भविष्य में स्वयं के प्रति कोई ग्लानि बस चाहिए कोई माध्यम जिसमें विलीन होकर खोकर मन भूल जाए इस अस्थिर एकाकीपन का सारा का सारा एहसास।। मन व्यथित..विचलित सा है #Swakeeya#