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DANVEER SINGH 'DUNIYA'
मैं पहला व्यक्ति हूं, जिसने नाम के पीछे गांव का नाम जोड़ा । गरीबों के लिये अपना खाना पीना तक छोड़ा। 1 इस जहां में कौन किसकी परवाह करता है, जनाब मैंने तो इनके लिए अपना ऐश आराम तक छोड़ा।2 मैंने देखा है स्टैंड और स्टेशनों पर प्यास और भूख से तड़पते मासूम से नैत्र जल भरे चेहरों को। मैं व्याकुल सा हो गया था जैसे देखा झूठे गिलास पत्तरो को ऐसे पी चाट रहे थे वे जैसे 56 प्रकार के व्यंजनों को अरदास कर रहे थे भगवान से हाथ फैला कर मांग रहे थे इंसान से कुछ न मिला हाथ तक जोड़ा।3 फिर देखा उन सफेद मच्छरों को उन बेबस और लाचारो के ऊपर चिल्लाते थे धमकी देकर भी खून चूस ले जाते थे गरीब लोगों को भूख से भिखारी बना दिया जब से इन मच्छरों पर दवा छिड़कना बंद किया इन्होंने प्लेट क्या गिराई हमारी हमें प्लेट से गिरा दिया कहते थे साथ लेकर चलेंगे ऐसे ले गए अधभर तक छोड़ा।4 मैंने फिर कहा एक बार पढ़ कर देखो वहां खाना भी मिलेगा एक बार सोचो जिंदगी बदल जाएगी ऐसा काम करो पहले मेहनत कर लो फिर आराम करो जितने पहले सोच में जीरो लग रही हैं जो इतनी मेहनत के बाद लग जाएंगी मेहनत करने से सदा खुशियां बहार आएंगी सागर का नाम लेना आ जाऊंगा वही तुम्हें छोड़ कर जाऊंगा ना कहीं तुम्हारे लिए काम काज तक छोड़ा।5 मैंने सोचा शिक्षा का एक संस्थान खोलू उसे प्यार से सागर शक्ति शिक्षा सेंटर बोलूं नि:शुल्क हो फीस उसमें मेहनत लगी हो प्रत्येक की जिसमें गुरु की प्रेरणा से भविष्य उज्जवल होगा उसमें बच्चा प्रत्येक जाति धर्म मजहब का होगा दया मानवता सामाजिकता कण कण में बहती है जब ही तो मेरी शक्ति हर जुल्म को सह लेती है अब बताओ मैंने कहां तक मोड़ा।6 निर्धनता
Parasram Arora
जिसे तुमने धन समझा है वह धन नही है वह तो भीतर की निर्धनता को भुलाने का उपाय है ओशो ©Parasram Arora धन. निर्धनता #Happiness
Pragati Dutt
निर्धनता का सुख! कितनी भली थी वो निर्धनता , जहाँ नहीं थी कोई कुटिलता। जबसे ये धन , पास में आया। इसने सबको , दूर भगाया। निर्धन थे तब ,कितने ठाट। मिलजुल कर ,खाते थे भात। ऐसे धन से ,भी क्या लाभ। तितर बितर, सारा परिवार। जिसने भी इस ,धन को पाया। उसने मन का चैन गँवाया । जगह जगह ताले ठुकवाते, फिर भी सुख से , ना सो पाते। निर्धन नमक से ,रोटी खाता। सुख की नींद , वही ले पाता। बनवाते शाही मकान , खोकर अपना ही ईमान। इससे तो झोंपड़ी अच्छी, जिसकी दुनियाँ होती सच्ची। मूर्ख छोड़ दे धन का लोभ , निर्धनता का भी सुख भोग। धन के फेर में पड़ जायेगा, तृप्त कभी ना हो पायेगा। सारे जीवन भर रो रो कर , इसको पाते सब कुछ खोकर। निर्धन हो चाहे सम्राठ, जाना सबको खाली हाथ। फिर क्यूँ सब बनते धनवान, व्यर्थ दिखाते झूठी शान। बड़े बड़े साधू सन्यासी, वो भी बस धन के अभिलाषी। करते सारे भोग विलास, निर्धनता को देते त्याग। निर्धनता का ये गुणगान, समझ ना पायेगा धनवान। बन जायेगा गर धनवान, पा ना पायेगा आराम। इससे तो निर्धन बन जाऊँ, सुख के दिन और रात बिताऊँ। ईश्वर दे बस इतना ही धन, जिससे कलुषित हो ना ये मन। #निर्धनता का सुख!
Shreya Mishra
संपन्नता और निर्धनता की तृष्णा संपन्नता व्यक्ति को और संपन्न बनने की लालसा की ओर अग्रेसर करती हैं,और निर्धनता व्यक्ति को एक अच्छे दिन के आस की लिप्सा की ओर... ^श्रेया मिश्रा_ #संपन्नता और निर्धनता की तृष्णा
Anuradha Vishwakarma
मैनरहाम रेखा: सोवियत रूस और फ़िनलैंड के बीच की रेखा है | jhankiom vishwakarma #Wish मैनरहीन रेखा: सोवियत रूस और फ़िनलैंड के बीच की रेखा है |
#Seema.k*_-sailent_*write@
🥰आज भी वही दिलकश फरेब अदाएं हैं🥰 💯❤️🔥 वो बालों में 🌺 फूल लगना तेरा/ वो👁️ आंखों से दिल को दर्द देना तेरा!💘 © seema kapoor@ रेखा
naina aggarwal
लक्ष्मण क्या गए, सीता के लिए लक्ष्मण रेखा खींच कर, हम सब आज भी, ऐसी ही एक रेखा के पीछे है, फर्क बस इतना ही है, कुछ हमने अपने आप ही खींची है, और, कुछ हमने दूसरो से खिचवाईं है। रेखा ।
Gurdeep Kanheri
खींच दूँ कोई ऐसी रेखा कि तुम पार जा न पाओ मेरे बनकर रहो इस दिल में दिल से बाहर जा न पाओ। ©Gurdeep रेखा