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Harshit Pranjul Agnihotri
Bambhu Kumar (बम्भू)
2. थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया... थे यही #सावन के दिन हरखू गया था #हाट को सो रही #बूढ़ी ओसारे में बिछाए #खाट को #डूबती #सूरज की किरनें #खेलती थीं #रेत से घास का गट्ठर लिए वह
AB
कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्। विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥13॥ अर्थात- कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करते हुए, निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा,! ll🌸ll ॐ नमः शिवाय ll🌸ll _________________________________________________ ( आवश्यक सूचना :- जो भी शुभचिंतक जुड़े रह
Vibhor VashishthaVs
अद्भुत शब्द-शिल्पी, साहित्य की अनेक विधाओं के मूर्धन्य विद्वान, अपनी कालजयी रचनाओं के माध्यम से वैश्विक साहित्य जगत में हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां दिलाने वाले महान साहित्यकार एवं युग प्रवर्तक लेखक जयशंकर प्रसाद जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि। आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। 🙏💐प्रसाद जी को कोटि-कोटि नमन💐🙏 ✍️Vibhor vashishtha Vs Meri Diary#Vs❤❤ छोड़कर पार्थिव भोग विभूति, प्रेयसी का दुर्लभ वह प्यार . पिता का वक्ष भरा वात्सल्य, पुत्र का शैशव सुलभ दुलार . दुःख का करके स
kavi manish mann
इस संकट की घड़ी में मुझे अटल बिहारी बाजपेई जी की एक कविता याद आ रही है। कृपया कैप्शन में पढ़े🙏✍️✍️ बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों से हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना ह
Rakesh Sonker
अनुशीर्षक में पढ़े... (मित्रता दिवस विशेष) ~ राकेश सोनकर ©Rakesh Sonker आज कहने को मित्रता दिवस लोग जोरो शोरो से एक दूसरे को बधाईया दे रहे है मेरे पास भी कई लोगों का मैसेज आया जो कभी जरूरत पर साथ नहीं देंगे ना कभ
Mr.Poet
बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों से हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना ह
Gufran Bahraichi
बज़्म ए गुलिस्तान ए सुखन ((वाॅट्सअप ग्रुप)) में कहे गए कलाम में से कुछ पसंदीदा अशआर आप सभी अहबाब को पेश ए ख़िदमत है उम्मीद करता हूँ आप स
Anil Siwach