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नेहा उदय भान गुप्ता

*ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर चला* आंखों में थी उदासी बेबसी और लाचारी, पेट में लगा ज़ख्म उसका नासूर था। जो हुआ ओ अनहोनी रही जीवन की, पर

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ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर गया......

    "पूरी कविता शीर्षक में"
 *ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर चला*

आंखों में थी उदासी बेबसी और लाचारी,
पेट में लगा ज़ख्म उसका नासूर था।
जो हुआ ओ अनहोनी रही जीवन की,
पर

नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹

*ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर चला* आंखों में थी उदासी बेबसी और लाचारी, पेट में लगा ज़ख्म उसका नासूर था। जो हुआ ओ अनहोनी रही जीवन की, पर

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ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर गया......

    "पूरी कविता शीर्षक में"
 *ओ मजदूर था साहिब हर राह से गुजर चला*

आंखों में थी उदासी बेबसी और लाचारी,
पेट में लगा ज़ख्म उसका नासूर था।
जो हुआ ओ अनहोनी रही जीवन की,
पर

Swatantra Yadav

कोई किसान अपने खेत में हल चला रहा था। बरसात के बाद का मौसम था ,हल के पीछे जमीन से बहुत से कीड़े मकोड़े निकल रहे थे.... उन कीड़े मकोड़ों को खान

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नियंत्रण रेखा पार कर गया है तुझे तेरा यूं महंगें रिसार्ट शिफ्ट करना 
क्यों ना अब द्विपक्षीय वार्ता कर ,गोलमेज सम्मेलन करा लें 
बस एक तुम समर्थन कर दो मेरे दावेदारी का
आओ ख़रीद फरोख्त कर मिलीजुली सरकार बना लें। 
कोई किसान अपने खेत में हल चला रहा था। बरसात के बाद का मौसम था ,हल के पीछे जमीन से  बहुत से कीड़े मकोड़े निकल रहे थे....
उन कीड़े मकोड़ों को खान

स्वतन्त्र यादव

कोई किसान अपने खेत में हल चला रहा था। बरसात के बाद का मौसम था ,हल के पीछे जमीन से बहुत से कीड़े मकोड़े निकल रहे थे.... उन कीड़े मकोड़ों को खान

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नियंत्रण रेखा पार कर गया है तुझे तेरा यूं महंगें रिसार्ट शिफ्ट करना 
क्यों ना अब द्विपक्षीय वार्ता कर ,गोलमेज सम्मेलन करा लें 
बस एक तुम समर्थन कर दो मेरे दावेदारी का
आओ ख़रीद फरोख्त कर मिलीजुली सरकार बना लें। 
कोई किसान अपने खेत में हल चला रहा था। बरसात के बाद का मौसम था ,हल के पीछे जमीन से  बहुत से कीड़े मकोड़े निकल रहे थे....
उन कीड़े मकोड़ों को खान

Shradha Rajput

गांव और शहर में फर्क #विचार

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Siddh Hansraj Manda

#गांव और #शहर में अंतर #समाज

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Sikandar Chauhan

गांव और शहर में अन्तर

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तेरी बुराई को अखबार कहता है,
और तू मेरे गांव को गंवार कहता है
और तेरी औकात पता है, तुझे ये शहर
तू चूल्लू भर पानी को Watarpark कहता है
और थक गया है हर शक्श काम करते-करते
और तू उसे अमीरी का बाजार कहता है,
कभी गांव आकर भी देख हर शक्श फूरसत में है,
तेरी फूरसत तो सिर्फ इतवार कहता है,
और अपने पराये बैठ जाते हैं बैलगाड़ी में ।
जिसमें पूरा परिवार न बैठ सके
तू उसे कार कहता है। गांव और शहर में अन्तर

Satish Kaushal

गांव, गांव है और शहर शहर है, गांव में प्यार ही प्यार होता है। और शहर में सिर्फ व्यापार होता है । #कविता

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Dharminder Dhiman

इतने तो मेरे गांव ने, मेरे पांव में नहीं जलाए..!

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इतने तो मेरे गांव ने,
मेरे पांव भी नहीं जलाए..!
जितना तेरे शहर ने,
मेरा दिल जला दिया..?  इतने तो मेरे गांव ने,
मेरे पांव में नहीं जलाए..!
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