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Sunita Bishnolia

नमन - श्रद्धांजलि अरे! भेड़ियो धूर्त पशु तुम,कब तक छुपकर वार करोगे। मानवता का त्याग के चोला,कब तक नर संहार करोगे।। अपनों का ही रक्त बहाया, कितना नीचे और गिरोगे। माँ का आँचल रक्त से भीगा, कितना नीचे और गिरोगे #सुनीता

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  नमन - श्रद्धांजलि

अरे! भेड़ियो धूर्त पशु तुम,कब तक छुपकर वार करोगे।
मानवता का त्याग के चोला,कब तक नर संहार करोगे।।

अपनों का ही रक्त बहाया, कितना नीचे और गिरोगे।
माँ का आँचल रक्त से भीगा, कितना नीचे और गिरोगे

Anil Siwach

।। श्री हरि।। 14 - नवीन परिभाषा कन्हाई नवीन-नवीन परिभाषाएँ बनाता रहता है। यह कब किस शब्द या क्रिया की क्या परिभाषा बना देगा, ब्रह्मा भी नहीं समझ सकते। अाज नियुद्ध-मल्लयुद्ध की सूझ गयी थी! गोचाण के लिए वन में आने पर बालकों का प्रतिदिन का बंधा क्रम है कि पहुंचते ही सब इधर-उधर बिखर जायेंगे। खड़िया, गैरिक, हरताल आदि वन-धातुएँ तथा नाना रंगों के कुसुम, किसलय, गुञ्जा, पक्षियों के गिरे पंख संग्रह करने रहते हैं। अपनी सामग्री एकत्र हुई और जुट जायेंगे एक दूसरे को सजाने-शृंगार करने में। दाऊ दादा और #Books

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।। श्री हरि।।
14 - नवीन परिभाषा  

कन्हाई नवीन-नवीन परिभाषाएँ बनाता रहता है। यह कब किस शब्द या  क्रिया की क्या परिभाषा बना देगा, ब्रह्मा भी नहीं समझ सकते।

अाज नियुद्ध-मल्लयुद्ध की सूझ गयी थी! गोचाण के लिए वन में आने पर बालकों का प्रतिदिन का बंधा क्रम है कि पहुंचते ही सब इधर-उधर बिखर जायेंगे। खड़िया, गैरिक, हरताल आदि वन-धातुएँ तथा नाना रंगों के कुसुम, किसलय, गुञ्जा, पक्षियों के गिरे पंख संग्रह करने रहते हैं। 
 
अपनी सामग्री एकत्र हुई और जुट जायेंगे एक दूसरे को सजाने-शृंगार करने में। दाऊ दादा और

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 7 - गायक श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए। वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है। वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है। #Books

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|| श्री हरि: || 
7 - गायक

श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए।

वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है।

वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 2 -उलझन में राम श्याम दोनों आकर द्वार के बाहर खड़े ही हुए थे कि एक तितली कहीं से उड़ती आयी और दाऊ की अलकों पर बैठ गयी। कन्हाई यह कैसे सहन करले कि यह क्षुद्र प्राणी उसके अग्रज के सिर पर ही बैठे; किन्तु तितली को हटाने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह अलकों से उड़ कर इसके दाहिने हाथ की नन्हीं मध्यमा अँगुली पर ही आ बैठी। इतनी सुकुमार, इतनी अरुण अँगुली - तितली को बैठने के लिए इससे अधिक मृदुल, सुन्दर सुरभित कुसुम भला कहाँ मिलने वाला है। अब श्याम उलझन में पड़ गया है। यह अपनी अँगुली पर बैठी इस छो #Books

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|| श्री हरि: ||
2 -उलझन में

राम श्याम दोनों आकर द्वार के बाहर खड़े ही हुए थे कि एक तितली कहीं से उड़ती आयी और दाऊ की अलकों पर बैठ गयी। कन्हाई यह कैसे सहन करले कि यह क्षुद्र प्राणी उसके अग्रज के सिर पर ही बैठे; किन्तु तितली को हटाने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह अलकों से उड़ कर इसके दाहिने हाथ की नन्हीं मध्यमा अँगुली पर ही आ बैठी। इतनी सुकुमार, इतनी अरुण अँगुली - तितली को बैठने के लिए इससे अधिक मृदुल, सुन्दर सुरभित कुसुम भला कहाँ मिलने वाला है।

अब श्याम उलझन में पड़ गया है। यह अपनी अँगुली पर बैठी इस छो


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