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Kanak lakhesar
किस्सा हमारा भी होता , ये दिल आवारा भी होता धक्के में ही रही जिंदगी , वरना नाम हमारा भी होता कोरे कागज , स्याही कलम , कुछ काम भी लेते हम मंजिल भी मिल जाती हमें , जो साथ तुम्हारा भी होता किस्से-कहानी के दरमियाँ , किरदार मेरा मरता गया दुआ ही कहाँ की उसने , जो जन्म दोबारा भी होता ये दिल जलाने वाली बातें , सुनने वाले हमदर्द नहीं जो हाथ पकड़ लेती तुम , दुखों का किनारा भी होता -knk . ©Kanak Guri 🖤🖤 #Light #kanaklakhesar #Shayar #gazal
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इक पिंजरा अब सुना सा हो गया है , कोई रहता था वहाँ....कभी हवाओं में झूमते हुए , तो कभी तारों में जुगनू ढूंढ़ते हुए । यादें थोड़ी धुंधली सी हो गई हैं , पर कुछ-कुछ याद हैं मुझे की हर सुबह में उसी पिंजरे के पास जाकर खुद को आज़ाद महसूस करती थीं , बहुत खूबसूरती से बनाया गया होगा उसे । शायद किसी ने बहुत प्यार से सजाया होगा उसे..... जिसमें बहुत सारे ख़्वाब हर रोज जगते थे और मेहनत थकान का तकिया लगाकर , उम्मीदों के बिस्तर पर सोती थी । हर नई सुबह इक नया वजूद देती...कुछ ऐसा था मेरा वो पिंजरा.... खैर , अब मुझे ज्यादा महसूस नही होता । पर वो पिंजरा आज भी जैसे मेरे लिये मेरी पहली ज़रूरत हो । वो पिंजरा नही , घर हो जैसे...जिसने मुझे अपनी खुशियों से बांध रखा हो...ना किसी के होने का डर , ना किसी को खोने का डर । बस इक सुकून था , इक सुकून अकेलेपन का...जिसमे दर्द तो था पर ये दर्द ही मेरी आदत थी । पर अब किसी दूर सितारें के साथ वोपिंजरा भी कहीं खो गया हैं । जो बाकी हैं कुछ , तो वो कुछ निशान हैं...वक़्त के साथ ये भी मिट जाएँगे , बिल्कुल वैसे ही , जैसे ये पिंजरा और पिंजरे वाली । ( हकीकत की ये दुनिया बहुत झूठी हैं कनक , सितारों के इस आसमाँ को ही अपना घर बना लो ) -knk . ©Kanak Guri .... #sagarkinare #kanaklakhesar #thought
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मैं खाली इक मंजर देखता हूँ इक दुनिया अपने अंदर देखता हूं इक कैदखाने में सब जी रहें गुनाहों से भरा समंदर देखता हूँ यूँ ही नहीं पनपती ढेरों शिकायतें इस बेबसी का खंजर देखता हूँ सब झूठ सा लगता मुझको यहाँ सवालों से घिरा बवंडर देखता हूँ खुशियों के अनेकों मकान बने हुए मैं दर्द की गहरी कंदर देखता हूँ खूबसूरत हैं मेरे खवाबों की दुनिया हक़ीकत में सिर्फ खंडर देखता हूँ ( कंदर - गुफ़ा/घाटी) -knk . ©Kanak Lakhesar .. #kanaklakhesar
Kanak lakhesar
चुप्पी के मायने कहाँ ढूँढते हैं ये लोग सारे-के-सारे नासमझ हुए ये लोग सुनी पड़ी हैं मेरे गाँव की पगडंडिया शहरी बाबू जो हुए आजकल ये लोग कब देखते हैं वो बूढ़ी आँखों का दर्द पैसे के गुमान में जो अन्धे हुए ये लोग इन चिरागों को अब ना ही जलाओ आग लगाने में माहिर हुए ये लोग शिकायतें भी करूँ तो किससे करूँ जो गालियां देते हैं बहरे हुए ये लोग कतराती हैं लिखने से मेरी भी कलम बात-बात पर सवाल पूछते हैं ये लोग -knk🍁 . ©Kanak Lakhesar ... #Corona_Lockdown_Rush #kanaklakhesar
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