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"पूरब से तुम आते हो
सिंदूरी रंग संग लाते हो
उज्जवल किरणे धरा पर, प्रत्येक सुबह फैलाते हो
घन के भीतर दूर कहीं, तम का प्रभाव छुपाते हो
लेकर भोर का संदेशा, तुम कितनी दूर से आते हो
शिक्षा शासन कारोबार में, कितना हाथ बटाते हो
संपूर्ण जगत की काया, अपनी महिमा से चमकाते हो
पशु पंछी के करुण स्वर से, जीवन का राग सुनाते हो
स्वर्ण की चमक से धरा को, अतिशय रमणीय बनाते हो
मानव के भीतर कार्य का उत्साह, उषा के संग लाते हो
ईश्वर की महिमा के जैसे, संपूर्ण धरा पर छाते हो
काशी बनारस आर्यवर्त की, गलियों को अतिशय भाते हो
गंगा यमुना की धारा में, अनुपम कांति लाते हो
वन उपवन, पुष्प कलियों की, शोभा को अपूर्व बनाते हो
तन मन को एक नई चेतना, हर नई सुबह दे जाते हो
यकीं भरोसा ज्ञान की अलख, निखिल जगत में जगाते हो
©✍️verma priya"