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dayal singh

bachpan ke din

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जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।

वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।

तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।


वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।


तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din

Sunita Arora

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शायद पा लेते बहुत कुछ, 
रख लेते कदम अगर चंlद पर!

उन आंखों की नमी ने बताया
खेल रहा है चंlद कुछ वक्त के लिए,
चहता है देखना हौसला हमारा,
 सब्र हमारा,और मुस्कान जो मिलती है पानी पीने पर, बहुत दिनो से प्यासे को!!

घबरा गया है चंदा,  हकिकत वैसी ना लगे तो तो क्या करेगा!
सदियों से देख,सुन रहा है,
चाँद सा रोशन  चेहरा!!

चलो मुस्कुरा लेने दो, हंस लेने दो,
दौड़ने दो,कहां जाएगा
बचपन का मामा है
यौवन का प्यार 
साथ रहने वाले इसके सितारे तो रहे ही है हमारे अपने!
खोज ही लेंगें   इस तक पहुंचने का रास्ता शायद पा लेते बहुत कुछ, 
रख लेते कदम अगर चंlद पर!

उन आंखों की नमी ने बताया
खेल रहा है चंlद कुछ वक्त के लिए,
चहता है देखना हौसला हमारा,
 सब्र हमारा,और मुस्कान जो मिलती है पानी पीने पर, बहुत दिनो से प्यासे को!!

घबरा गया है चंदा,  हकिकत वैसी ना लगे तो तो क्या करेगा!
सदियों से देख,सुन रहा है,
चाँद सा रोशन  चेहरा!!

चलो मुस्कुरा लेने दो, हंस लेने दो,
दौड़ने दो,कहां जाएगा
बचपन का मामा है
यौवन का प्यार 
साथ रहने वाले इसके सितारे तो रहे ही है हमारे अपने!
खोज ही लेंगें   इस तक पहुंचने का रास्ता 
है इससे तो हमारा छुटपन से वास्ता!!

पोछ लगे अश्रु ,फिर उठेगे,फिर चलेंगे
और अबकी हक ही जमा लेंगे अपना चाँद पर!!
है इससे तो हमारा छुटपन से वास्ता!!

पोछ लगे अश्रु ,फिर उठेगे,फिर चलेंगे
और अबकी हक ही जमा लेंगे अपना चाँद पर!!

Sudeep Keshri✍️✍️

बात पूरी #जिंदगी की करने के लिए अभी मैं बहुत #कच्चा हूँ, कभी-कभी तो लगता कि मैं छोटा #बच्चा हूँ, फ़िर भी जिंदगी के बारे में अपने #अनुभव बताता हूँ, जो अब तक जान पाया हूँ, जब मैं छोटा था... न थी कोई #उम्मीद... न कोई #उपलब्धि की #कामना... जैसे-जैसे बड़ा होता गया... #मुश्किल #कविता #छुटपन #लालसा

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बात पूरी जिंदगी की करने के लिए अभी मैं बहुत कच्चा हूँ,
कभी-कभी तो लगता कि मैं छोटा बच्चा हूँ,
फ़िर भी जिंदगी के बारे में अपने अनुभव बताता हूँ,
जो अब तक जान पाया हूँ,
जब मैं छोटा था...न थी कोई उम्मीद...
न कोई उपलब्धि की कामना...
जैसे-जैसे बड़ा होता गया... उम्मीदें बढ़ी...
बढ़ी उपलब्धि की लालसा...
जिसके कारन मन भारी होता गया...
जिंदगी मुश्किल लगने लगी...
फिर एक दिन खुद से थोड़ा बात किया...
अपने छुटपन के दिनों को याद किया...
और जिंदगी के राहों को आसान बनाने का सोच लिया। बात पूरी #जिंदगी की करने के लिए अभी मैं बहुत #कच्चा हूँ,
कभी-कभी तो लगता कि मैं छोटा #बच्चा हूँ,
फ़िर भी जिंदगी के बारे में अपने #अनुभव बताता हूँ,
जो अब तक जान पाया हूँ,
जब मैं छोटा था...
न थी कोई #उम्मीद...
न कोई #उपलब्धि की #कामना...
जैसे-जैसे बड़ा होता गया...

Lokesh Panthri

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मैं वही छुटपन वाला बचपन हूं
तेरे अन्दर ही तो दफन हूं
तू ही न जाने क्यों बड़ा हो गया
मैं तो आज भी जस का तस पड़ा हूं
चाहता हूं कोई छेड़े मुझे जगाये मुझे
कहीं पड़े पड़े दीमक लग जाऐ न मुझे
तू पचपन का है तो क्या हुआ
मेरे भाई दिल तो बचपन का रख
हैरान परेशान क्यूं हो रहा है
अब तो तेरा बचपन भी सो रहा है
जब तक तू यूं खोया रहेगा
तेरा बचपन भी तो सोया रहेगा
बात ये मैं साफ कर रहा हूं
तेरा बचपन हूं तो फिक्र कर रहा हूं
सांस तो ले रहा है तू
मेरे बग़ैर कैसे जी रहा है तू
आ वापस लौट चल उसी बचपन में
हसीन पल गुजारे हैं जिस लड़कपन में
आज भी तेरा मैं इंतज़ार करता हूं
उसी बचपन से मैं भी प्यार करता हूं
मैं वही छुटपन वाला बचपन हूं
तेरे अन्दर ही तो दफन हूं

Durga Bangari

#Nojoto##छुटपन का प्यार### #Poetry

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छुटपन का प्यार 

उन दोनो  के प्यार में कुछ तो रहा होगा, 
जब दुनिया उनको जुदा करने आयी 
वो लड़े नहीं
चुपचाप अपने घर वालों के चेहरे देख कर 
उन्होंने जुदा होना अपना बलिदान समझा। 
बच्चे थे,
नासमझ थे 
वो जानते नहीं थे 
ये छुटपन का बलिदान 
जीवन भर हर मोड़ पर याद आएगा
हर उस चौराहे पर जब ख़ुद को अकेला पायेंगे 
उसी का हाथ पकड़ने को जी चाहेगा
जिस को दुनिया के कहने पर 
ऐसे छोड़ दिया जैसे कभी प्यार था ही नहीं
शायद इसी लिए ये छुटपन के प्यार को 
पता ही नहीं चल पाता 
प्यार बलिदान से शहीद हुआ की बच गया॥ 

   -- दुर्गा बंगारी  #nojoto##छुटपन का प्यार###


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