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"#OpenPoetry हार से अपनी घबरा मत ,टूटी कश्ती नदी में बहा मत
कर कोशिश एक नयी उम्मीद और मेहनत से
किस्मत की लकीरों को यूं मिटा मत
टकराने दो तेज हवाओं को
इनपे छाया जूनून घमण्डपन का
तुझे रोकने ये आयी हैं
नजर मत रख ऐसी बेफिजूल फिजाओ पर
मंजिल की पहली सीढ़ी में मायूस न हो
फिर उठ चढ़ने की कोशिश कर
पहली ताश पे बादशाह कौन बनता हैं
मत घबरा इन नाकामी पर
जिन्दगि में बहुत कुछ हैं अभी पाने को
चलते-चलते वैसे भी थक जाएंगे
थोड़ा रुक!फिर संभल जाएंगे
अभी तो पहचाना ही हैं इरादों को
चलो फिर इसे गले लगाने को
नदियों का बहाव तो आना हैं
तुम्हे इसमें से बाहर आना हैं
किनारे बैठ कुछ सोच मत
बिन डुबकी के कोई गोताखोर नहीं बनता
अंधकार से तू घबरा मत
तेरे रोकने पग इसे तो आना ही हैं
तू हिम्मत अपनी बनाये रख
बिन रात के सवेरा आता कहाँ हैं?
डर लगे अगर तूफान देखकर
तू बढ़ता जा फिर भी रास्ता देखकर
मंजिल खुद तेरे पास आती प्रतीत होगी
तेरा बस निडर हौंसला देखकर"