"अंगार की पुकार सुन तू चल नई एक राह चुन,
है प्रज्ज्वलित इतिहास की धारा विवेचित राग सुन।
काया क्लेश मिटा के सब हर कांधे पर एक हांथ धर,
तू जल तपिश की आग में संसार में यह रूप धर ।
ना होगी यह गाथा पुरानी वीरों के बलिदानों की ,
तू आज नई एक सोच रख काया पलट वर्तमान की ।
भुखमरी गरीबी जैसे शब्दों का भी अंत कर,
तू रच नए समाज को जिसमें हो मुखरित देश भर।
ये घूसखोरी का अंत कर तू अब नई एक रीति रख,
भ्रष्टों का तख्ता पलटने का खुद में एक आक्रोश रख।
वो जा चुके कई दशक जो थे अंधेरी रात के ,
अब आ गई है वो सदी जो है विवेचित प्रकाश में ।
माया के जाल को नष्ट कर तू रच नए स्वप्न को अब,
जो चल रहा था आज तक मिटा दे उस जश्न को तब ।"