"#गाढ़ा_दाल
रसोइये ने पतली दाल बनाई
इतनी पतली
कि थाली में भात देने के बाद
जब उसने दाल चलाई
तो हिमालय से निकलती नदी याद आई
बाकी सब्जी अचार पापड़ सब ठीक
मैंने उससे पूछा
इस बहती हुई नदी का नाम बताओ
वो थोड़ा डरा-सहमा और हँसा भी
उसने हाथ जोड़ा, कहा न होगा ऐसा कभी
अंदर से उसे बड़ा दुख हुआ
वो भले ही ऊपर से खुश हुआ
मुझे तकलीफ़ हुई
भात के साथ दाल सौंद कर खाने में
तकलीफ़ उसे भी हुई होगी बनाने में
अगले दिन रसोइये ने गाढ़ी दाल बनाई
इतनी गाढ़ी
कि थाली में भात देने के बाद
जब उसने दाल चलाई
मुझे नदी नहीं ग्लेशियर की याद आई
वो बोला, मालिक खाना कैसा है
मैं चावल-दाल को सौंदता हुआ
कुछ न बोला बस मौन रहा
मेरा गुस्सा वो भाँप गया
हाथ जोड़ के काँप गया
उसकी विनती पर जब बोला मैं
तब गला मेरा सरक गया
मैं प्यासा पानी को तरस गया
वो पानी लाने भागा, मैं खड़ा हो गया
गाढ़े दाल का मामला गाढ़ा हो गया
……………….……..© पंकज नीरज"