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netrapal bharat

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Saurav Das

एक दिन शाखो से पत्ते झड़ जाएंगे!

न जाने तुम कहाँ, हम किधर जाएंगे! 

बैर रख कर किसी को कुछ मिलने वाला नहीं, 

जो ज़िन्दा है,एक दिन सब मर जाएंगे!!

©Saurav Das #शाखा 
#पत्ते 
#सब 
#इन्सान 
#मर
#Love

Rakesh Dhania

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शाखा पर बैठे हुए परिंदे को पता है कि शाखा कमजोर फिर भी वह शाखा पर बैठता है क्योंकि उसे शाखा से ज्यादा भरोसा अपने पँखो पर है

आयुष पंचोली

यह बात पुरानी हैं यारों, इसको नया मत कँह देना। परम्पराओ को अपनी , आधुनिकता मे ना भुला देना। क्या सत्य हैं छुपा हुआ,इन सारे रीति-रिवाजो मे, बिना तथ्य के जाने तुम, इनको ढोंग ना कँह देना। माना की तुम हो पढ़े लिखे, आधुनिक युग की बातें करते हो। पर भुल क्यो जाते हो, मूल तुम्हारा भी हैं वही, जिससे तुम भागे फिरते हो। #kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #mereprashnmerisoch

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🙏🙏🙏🙏🙏🙏 यह बात पुरानी हैं यारों, इसको नया मत कँह देना।
परम्पराओ को अपनी , आधुनिकता मे ना भुला देना।
क्या सत्य हैं छुपा हुआ,इन सारे रीति-रिवाजो मे,
बिना तथ्य के जाने तुम, इनको ढोंग ना कँह देना।

माना की तुम हो पढ़े लिखे, आधुनिक युग की बातें करते हो।
पर भुल क्यो जाते हो, मूल तुम्हारा भी हैं वही,
जिससे तुम भागे फिरते हो।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 19 - हारे को हरिनाम नदी घड़ियालों से भरी थी, आकाश मच्छरों से, तटीय प्रदेश लम्बी घासों से, जिनमें विषैले सर्पों की गणना नहीं और वन में हाथी, शेर, तेंदुए, चीते। वृक्षों पर भी निरापद शरण लेना सम्भव नहीं था। वहाँ भी सर्प और तेंदुए स्वच्छन्द छलांग ले सकते थे। उसने सोचा भी नहीं था कि बर्मा के इस प्रदेश में उसे रात्रि व्यतीत करनी पड़ेगी। सूर्यास्त के पूर्व ही वे लौट जायेंगे, ऐसा उनका विचार था। लेकिन सूर्य पश्चिम में पहुँच चुके और अब भी पता नहीं

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
19 - हारे को हरिनाम

नदी घड़ियालों से भरी थी, आकाश मच्छरों से, तटीय प्रदेश लम्बी घासों से, जिनमें विषैले सर्पों की गणना नहीं और वन में हाथी, शेर, तेंदुए, चीते। वृक्षों पर भी निरापद शरण लेना सम्भव नहीं था। वहाँ भी सर्प और तेंदुए स्वच्छन्द छलांग ले सकते थे।

उसने सोचा भी नहीं था कि बर्मा के इस प्रदेश में उसे रात्रि व्यतीत करनी पड़ेगी। सूर्यास्त के पूर्व ही वे लौट जायेंगे, ऐसा उनका विचार था। लेकिन सूर्य पश्चिम में पहुँच चुके और अब भी पता नहीं

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 30 - अपने लिए 'दादा!' कन्हाई बहुत छोटा था तब से विशाल के कन्धों पर बैठता आया है। गोपियाँ तो हंसी में विशाल को कृष्ण का घोड़ा कहती हैं। अब भी यह विशाल के समीप आता है तो उसके कंधेपर ही बैठता है। दूसरे सखाओं के समान विशाल से सटकर बैठना इसने सीखा नहीं है! अब दौड़ा-दौड़ा आया है और विशाल के कन्धे पर अपने दोनों पैर उसके आगे की ओर करके, उसका सिर पकड़कर बैठ गया है। विशाल सचमुच शरीर से विशाल है। आयु में दाऊ से छोटा होने पर भी ऊचाईं में उससे बड़ा है। जितना ऊँचा, उतना ही तगड़ा। विशाल का आक

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|| श्री हरि: ||
30 - अपने लिए

'दादा!' कन्हाई बहुत छोटा था तब से विशाल के कन्धों पर बैठता आया है। गोपियाँ तो हंसी में विशाल को कृष्ण का घोड़ा कहती हैं। अब भी यह विशाल के समीप आता है तो उसके कंधेपर ही बैठता है। दूसरे सखाओं के समान विशाल से सटकर बैठना इसने सीखा नहीं है! अब दौड़ा-दौड़ा आया है और विशाल के कन्धे पर अपने दोनों पैर उसके आगे की ओर करके, उसका सिर पकड़कर बैठ गया है।

विशाल सचमुच शरीर से विशाल है। आयु में दाऊ से छोटा होने पर भी ऊचाईं में उससे बड़ा है। जितना ऊँचा, उतना ही तगड़ा। विशाल का आक

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 67 - मनुहार 'दादा, तू आज उदास क्यों है?' श्यामसुंदर आया और बड़े भाई का हाथ अपने हाथ में लेकर पास बैठ गया है। 'तू खेलता तो है नहीं।' 'कनूं तू खेल। मेरा जी खेलने को नहीं होता।' आज दाऊ गुमसुम बैठा है। पता नहीं किसकी व्यथा ने इसे क्षुब्ध किया है आज। 'मैं नाचूं? देखेगा तू?' मोहन देखता है कि आज हठ करने से कोई लाभ नहीं। कहने से दाऊ खेलने भी लगे तो ऐसे बेमन के खेलने में भला, क्या आनंद आना है। #Books

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|| श्री हरि: ||
67 - मनुहार

'दादा, तू आज उदास क्यों है?' श्यामसुंदर आया और बड़े भाई का हाथ अपने हाथ में लेकर पास बैठ गया है। 'तू खेलता तो है नहीं।'

'कनूं तू खेल। मेरा जी खेलने को नहीं होता।' आज दाऊ गुमसुम बैठा है। पता नहीं किसकी व्यथा ने इसे क्षुब्ध किया है आज।

'मैं नाचूं? देखेगा तू?' मोहन देखता है कि आज हठ करने से कोई लाभ नहीं। कहने से दाऊ खेलने भी लगे तो ऐसे बेमन के खेलने में भला, क्या आनंद आना है।

Anil Siwach

38 - साहसी || श्री हरि: || #Books

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38 - साहसी 
 || श्री हरि: ||


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