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Jagdish Pant
।। बाप का परिश्रम ।। इस जीवन में मोह और माया ने हर रिश्ते नाते को फीका कर दिया, बाप बेटे के रिश्ते को भी इस समाज में केवल व्यापार और निवेश उद्योग का रास्ता बता दिया, दुःख तो इस चीज का हैं की बाप भूल गया बच्चे की परवरिश में अपना जीवन, पर बेटा अपनी मोज की जिंदगी में बाप को समझ बैठा पैसे का खजाना !! ©Jagdish Pant बाप का परिश्रम #Papa #परिणाम #परिभाषा_प्रेम_की #परंतु
Jay Krishan Kumar
गाँधी - शास्त्री --------------- नमन है इन दो महान विभूतियों को जिनकी यादों का जश्न आज संपूर्ण राष्ट्र ही नहीं विश्व के ज्यादातर देश भी मना रहे हैं । अच्छे-अच्छे संवाद कार्यक्रम और यादगार लम्हों को संवारने का सिलसिला जारी है , परंतु क्यों .. क्यों हम इतना सम्मान कर रहे हैं इनका ... क्यों हम इतनी तन्मयता से पूज रहे हैं उन्हें ... इसे लोग या तो समझते नहीं या समझना ही नहीं चाहते ..। हम उन महान व्यक्तियों को नहीं उनके व्यक्तित्व और व्यवहार को याद कर रहे हैं ... परंतु ..कौन....कौन है जो अनुसरण कर रहा है उन्हें ... उन्हें बस अपनी पहचान बनाने के लिए खुद से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है ... ताकि लोग कहे कि उन्होंने गाँधी को इतना सम्मान दिया ..तो ... गाँधी उनकी पहचान बन जाएंगे ... गाँधी का महत्व हर व्यक्ति बस उस तरह देना चाहता है ...जैसे नोट पर छपे होने की वजह से नोट असली होता है ... । शास्त्री जी की सरलता , खुद्दारी और ईमानदारी का अनुसरण कौन करके घूम रहा है यहां ... चोला-टोपी तक की साम्यता सबको भाती है पर आत्मा में बसी रहती मक्कारी है ... मतलब बाहरी और प्रतिरूप सबको बनना भाता है परंतु ... आत्मा ना बदलने की विडंबना भारी है । गाँधी जी को तो सबसे अधिक फायदे की वस्तु समझ लोग भुनाने में लगे हैं ...। मैं यह नहीं कहता कि उनकी यादों में जश्न ना हो , उनकी प्रतिमाओं को फूल मालाएं पहना कर सम्मान ना किया जाए ... परंतु हमारी सच्ची श्रध्दा उनके विचारों , उनके व्यवहारों , उनकी ईमानदारी , उनकी कर्मठता सबसे बड़ी उनकी आत्मीयता का अनुसरण करना होगा ... हम अपने जीवन जीने के तरीकों , क्रियाकलापों में उन्हें शामिल करें ... ताकि बिना दिखाने के प्रयत्न किए ही वो हममें ... हम सभी में दिखे ... हममें उनका व्यक्तित्व परिलक्षित हो ... हम उनकी पहचान बनें । हर वर्ष हम उन्हें याद करते हैं श्रद्धा पुष्प अर्पित करते हैं ... परंतु समाज में व्याप्त कुरीतियां .. असमानता .. छीना झपटी ... भ्रष्टाचार सब बस बढ़ता ही जा रहा है ... उन्हीं की तस्वीरे टंगी होती है दीवारों पर जिसके नीचे उन्ही के विचारों सिद्धांतो और संस्कारों की हत्या की जाती है हर बार सरेआम ... आखिर फिर क्या अर्थ रह जाता है ... उनकी तस्वीर टांगने की ...अब तो यह हाल हो गया है उन महान विभूतियों की ..... जो ईमानदारी की पहचान रहे ..उन्हें ही बेईमानों ने अपनी चौकीदारी पर लगा लिया ... और फिर 2 october या विभिन्न संबन्धित तिथियों को उन्हीं की मूरत साफ कर फूल मालाएं चढ़ा अपने कर्तव्य की पूर्ति समझ लेते हैं । क्या इतना सा महत्व रह गया है गाँधी , शास्त्री या ऐसे असंख्य महान विभूतियों का हमारे लिए ? आज सभी अपने fb , whatsapp , insta के साथ ही अपने - अपने प्रतिष्ठानों में गांधी को उनके कहे शब्दों को याद कर रहे हैं ... करना चाहिए ... परंतु हे महा-मानव यदि सच में तुम्हारे हृदय में उनके लिए सम्मान है तो उन्हें अपने आचरण में उतारने का प्रयत्न करो । # जय कृष्ण कुमार 9162439176 #गाँधी - शास्त्री
पंडितजी
विचार लो कि मृत्यु है ना मृत्यु से डरो कभी मरो परंतु यू मरो की याद तो करें सभी ब्राह्मण मात्र बंधु है यही बड़ा विवेक है परंतु अंतरिक में प्रमाण भूत वेद है #hindi #kavita #brahman #india #like #follow #poem #vichar #kahani Arsh Angira Jindgi_जिंदगी Chand Arzooo 😍😍
Navratan Banjara
कविता-सफर चलते जा रहे हैं अपने सफर को पुरा करने इंसान चलता जा रहा है समय। चलता जा रहा है जीवन का पहिया।। बहुत से मोड़ है जीवन के सफर में,थकता जा रहा है इंसान इस सफर से,हो रही हैं कठिनाई लेकिन करना है पुरा उसे ये सफर। धूप भी है तो कहीं ठंडी छाया भी है। कठिनाई है तो कई सरल जीवन है। काली अंधेरी रात है तो आगे उज्जवल सवेरा भी है। इंसान कर रहा है । सफर बड़ी कठिनाई से परंतु आगे बढ़ रहा है अपने परिश्रम से । हर इंसान छोड़ना चाहता है दुखों को पीछे आगे सफर करना चाहता है आराम से परंतु जिस तरह दिन के बाद रात होती है उसी तरह सुख के बाद दुख अवश्य भोगना है। चलता रहेगा यह सफर कई सुख के मोड़ है तो आगे दुख का भारी यातायात है।। कवि-नवरतन बंजारा कवि नवरतन बंजारा
rrChinkate
तो खूप कंटाळत असे .. भले त्याला त्या कामाचे पैसे मिळत होते ..परंतु कुटुंबाला वेळ देता येत नव्हता . पण तिला बॉस ला खुश करून कामामध्ये प्रोमोशन मिळवायचं होत ..त्यामुळे ती खूप मेहनत घेत होती . ओव्हर टाइम करत होती .. शीतल नेहमीप्रमाणे आजही उशिरापर्यंत काम करणार होती ..तिला त्याची सवय झाली होती.. ज्या ऑफिस मध्ये शीतल काम करत होती शैलेश तिथे शिपाई च काम करत होता .. शीतल उशिरापर्यंत काम करत राहिली कि शैलेशलाही थांबावं लागत होत .. आणि ह्या गोष्टीला शैलेश खूप कंटाळला होता . आज शैलेश ने शीतलला विचारलं कि ..मॅडम आजतरी लवकर निघणार ना ..शीतल त्याच उत्तर देत म्हणाली हो रे निघुयात ..झालंच .. तरीही सुमारे ११ वाजले आणि ते निघाले . शैलेशच्या मनात काहीतरी वेगळीच खिचडी शिजत होती . शीतलला थोडं घाबरवायचं म्हणजे ती उशिरापर्यंत काम करणार नाही ..आस मनात आखत शैलेश शीतलच्या मागोमाग चालला . परंतु आपण हे वाईट कृत्य का करायचं आस मनात आणून त्याची पावलं आपोआप मागे फिरली .. आता शीतल मुख्य रस्त्यावर होती . तिची नजर रिक्षा दिसतेय का त्यासाठी फिरत होती . आज रिक्षा वाल्यांना काय झालं मनातच पुटपुटत शीतल हळूहळू चालू लागली . चला आज चालतच घरी जावं लागणार . आस म्हणत शीतलची नाजूक पावले रस्त्यावर पडू लागली .. त्यांचा स्पर्श होताच रस्ताही सुखावला असेल . असा तिच मोहक शरीर बघून कोणीही मोहात पडण्यासारखं होत . काही अंतरावर जाताच मागून शीतलला कोणीतरी शीळ घातली .आणि अ जानेमन .थोडी रुक तो सही ..आसा आवाज दिला .. Shital.... : Continue : i am writing small story.. be continue. starting only..
Sabir Khan
विलंब निर्जीव है परंतु क्षमा योग्य है, विलंबी सजीव है परंतु क्षमा योग्य नहीं!!! दयावान् बनिये, दया मानवता की आत्मा है। 🙏 क्षमा
Vikrant Rajliwal
2 Years of Nojoto अभी पाठन कीजिए मेरे नवीनतम ब्लॉग का और जानिए मेरी आगामी कृति से सम्बंधित कुछ रोमाचक जानकारियां आपकी अपनी साइट vikrantrajliwal.com पर। एक अत्यंत ही दर्दभरा नाटक एक रोमांचक कहानी। (आगामी कृति) नमस्कार है मेरे सभी प्रिय पाठकों एव मित्रजनों, जैसा की मैंने आपको पहले भी सूचित किया है परंतु मुझ को ऐसा आभास हो रहा है कि वह समय भी आ गया जब मुझ को एक बार पुनः आप सब को सूचित करना पड़ेगा कि मेने वर्ष 2016 के शुरुआती दौर में एक अत्यंत ही दर्द से भरी, रोमांचक एव जीवन के हर रंग को प्रस्तुत करती एक कहानी एक नाटक पर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया था एव लगातार कार्य करते हुए कुछ ही महीनों में मैने अपनी उस प्रथम कहानी उस नाटक को लगभग 85 % पूरा कर दिया था। परंतु उसी समय मुझ को मास्टर ऑफ मास कोमनिकेशन एव डिप्लोमा की पढ़ाई करनी पड़ी। … [ 356 more words ] http://vikrantrajliwal.com/2019/08/17/ अभी पाठन कीजिए मेरे नवीनतम ब्लॉग का और जानिए मेरी आगामी कृति से सम्बंधित कुछ रोमाचक जानकारियां आपकी अपनी साइट vikrantrajliwal.com पर। एक अत्यंत ही दर्दभरा नाटक एक रोमांचक कहानी। (आगामी कृति) नमस्कार है मेरे सभी प्रिय पाठकों एव मित्रजनों, जैसा की मैंने आपको पहले भी सूचित किया है परंतु मुझ को ऐसा आभास हो रहा है कि वह समय भी आ गया जब मुझ को एक बार पुनः आप सब को सूचित करना पड़ेगा कि मेने वर्ष 2016 के शुरुआती दौर में एक अत्यंत ही दर्द से भरी, रोमांचक एव जीवन के हर रंग को प्रस्तुत करती एक कहानी एक ना
Shubham Sagar
मारा मुल्क आर्यावर्त जो कभी अपने अलौकिक ज्ञान से दूसरों को प्रकाशित करता था जो अपनी एतिहासिक विरासत के कारण विश्व में प्रसिद्ध था अपने विद्या एवं दर्शन से संपूर्ण विश्व में ज्ञान का दीप जलाता था एवं अपनी अद्वितीय छवि से पूरे विश्व पटल पर अपना नाम अंकित कर चुका था। बदलते समय ने इसका स्वरूप भी बदल दिया और इसे विभिन्न नामों से पुकारा जाने लगा आर्यावर्त में अधिक समृद्धि एवं धन होने के कारण इसे सोने की चिड़िया तो दूसरी तरफ अधिक ज्ञानी एवं शिक्षित होने के कारण इसे आर्यावर्त की संज्ञा दी गई इन नायकों ने अपने आलोक से पूरी दुनिया को आलोकित कर दिया। पर समय ने ऐसा करवट बदला की सब कुछ बदल गया विश्व गुरु कहलाने वाला आर्यावर्त धीरे-धीरे पराधीन हो गया विदेशी शासकों के लालची निगाहों ने स्वतंत्र सोने की चिड़िया को पिंजरे में कैद कर दिया फिर यहां के धन और दौलत को लूटना और धीरे-धीरे अपना वर्चस्व कायम से करना शुरू कर दिया। और अंततः आर्यावर्त पूरी तरह जंजीरों में जकड़ा चुका था। तथा जहां से निकल पाना मुश्किल था अंग्रेजों के कुदृष्टि यहां के हंसते खेलते धनसंपदा पर पड़ी और भिखारी की भांति दोनों हाथ फैलाते हुए हमारे देश में व्यापार की भीख मांगी आर्यावर्त ने हमेशा अपने सुपुत्र को प्रेम एवं दया का पाठ पढ़ाया इसी गुणगान के कारण हमने उन्हें रोजगार दिया। पर किसे मालूम था कि एक दिन इनका रोजगार हमें बेरोजगार कर देगा सर्वप्रथम उन्होंने हमारी एकता को खंडित किया तथा हमारे धन संपदा एवं अंत में हमें ।सब कुछ छीन लिया। आर्यावर्त की भूमि जो अतीत में हरियाली से सुशोभित थी अब उस पर लालिमा छा चुकी थी यहां की सारी शक्तियां ब्रिटेन के हाथों में थी आर्यावर्त उसका गुलाम हो चुका था चारों तरफ तबाही का मंजर था परंतु कहीं ना कहीं आर्यावर्त के सुपुत्र के दिल में आग की चिंगारी सुलग रही थी यह चिंगारी सन 18 सो 57 में एक दावानल की भांति पूरे भारत में फैल गई परंतु सही दिशा ना मिलने के कारण यह आग कुछ ही क्षणों के बाद धीमी हो गई क्योंकि इन में एकता की कमी थी।। परंतु क्रांतिकारियों ने इस आग को बुझने नहीं दिया वे परिस्थिति को परख चुके थे महात्मा गांधी सुभाष चंद्र बोस भगत सिंह एवं सरदार पटेल इत्यादि ने देश प्रेमियों के दिलों में धधक रही आग को बुझने नहीं दिया। वे उन्हें सही दिशा दिखाने के प्रयास में जुटे रहे शायद अंततः उन्हें सही दिशा मिल चुकी थी और बस बाकी था इसका विस्फोटित होना।। इस प्रकार संघर्ष करने के उपरांत 14 अगस्त 1947 ईसवी के अर्धरात्रि को शताब्दियों के खोई हुई स्वतंत्रता भारत को पुनः प्राप्त हो गई हमने भारत माता को गुलामी की जंजीर से मुक्त तो करवा दिया परंतु अपने स्वार्थ के लिए इसके अंग को हिंदुस्तान पाकिस्तान एवं बांग्लादेश आदि राष्ट्रों में विभाजित कर दिया । प्रस्तुतकर्ता:- Shubham S 15 Aug ki हार्दिक शुभकामनायें
Abhinav Awasthi
#OpenPoetry एक अनकही सी दास्तां है ये, धूल कंकड़ झोपड़ी की व्यथा है ये, झुग्गी बस्ती में बनते-टूटते सपनों का जत्था है ये, लरबराते-कँपकपाते परंतु कुछ कर दिखाने का जज्बा है ये, आधुनिकता तो नहीं परंतु वास्तविकता की पराकाष्ठा है ये, जरा सोच कर तो देखो भारतीय शिक्षा का रास्ता है ये, भारतीय शिक्षा का रास्ता है ये। - अभिनव अवस्थी (स्पर्श) # झुग्गी बस्ती की शिक्षा
Shakti Kumar
परंतु आज कमरे में उसे एक नया परिवर्तन नजर आया जिसने उसकी जिंदगी को ही परिवर्तित कर दिया........................... आज उसे कमरे में स्थित खिड़की खुली नजर आई जो अब तक हमेशा बंद रहती थी रोहन से पूछा तो मालूम हुआ कल ही इंस्टीट्यूट वालों ने हॉस्टल में खिड़की खोलने की इजाजत दी है अद्भुत नजारा था बाहर का पीपल का वटवृक्ष और उस पर चहकती चिड़िया अचानक ही आकाश की नजर दाएं तरफ स्थित राधिका गर्ल्स हॉस्टल की तरफ गई हरे रंग से रंगा एक कमरा कमरे की खुली खिड़की और खिड़की में बैठी एक अनजान लड़की जो जल्दी ही अनजा