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{¶पारसमणी¶}

♥️जय #हो #खाटू #नरेश #की ♥️

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♥️हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा ♥️

प्रहलाद जैसा विश्वास हो', 
भीलनी जैसी आस हो',!! 

द्रोपदी जैसी पुकार हो', 
मीरा जैसा इंतजार हो',!! 

तो कृष्ण को आना ही पड़ता है',!! 

मेरा सर्वेश्वर♥️मेरा श्याम
🙏♥️जय श्रीं श्याम♥️🙏

™¶§šB¶शु§भ¶ ♥️#जय #हो #खाटू #नरेश #की ♥️

RJ Naresh

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JALAJ KUMAR RATHOUR

तू बता क्या याद दिलाउ तुझे, हिज्र की रात या वस्ल तेरे साथ, वो तेरा हँसना या मेरा मजाक, वो चांद सितारो से सजी रात या तेरे हाथो मे मेरा हाथ, वो तेरे किये वादे या उन पर मेरा विश्वास, वो रिमझिम बारिशों में मुलाकात या तेरे लवो का स्वाद, वो अंधेरी तन्हा सड़क या मेरी तड़प, वो हमारी मुलाकातो के सिलसले या तेरे किये फासले, #नरेश #कविता #जलज

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तू बता क्या याद दिलाउ तुझे, 
हिज्र की रात या वस्ल तेरे साथ, 
वो  तेरा हँसना या मेरा मजाक, 
वो चांद सितारो से सजी रात या 
तेरे हाथो मे मेरा हाथ,
वो तेरे किये वादे या उन पर मेरा विश्वास, 
वो रिमझिम बारिशों में मुलाकात या
 तेरे लवो का स्वाद,
वो अंधेरी तन्हा सड़क या मेरी तड़प,
वो हमारी मुलाकातो के सिलसले या
 तेरे किये  फासले, 
अब तू ही बता क्या क्या याद दिलाउ तुझे, 
वो मेरा ,तेरी हर तकलीफ़ में साथ या फिर
तेरा कहना "यार अभी वक़्त नही है मेरे पास", 
..... #जलज &
#नरेश. मीना तू बता क्या याद दिलाउ तुझे, 
हिज्र की रात या वस्ल तेरे साथ, 
वो  तेरा हँसना या मेरा मजाक, 
वो चांद सितारो से सजी रात या तेरे हाथो मे मेरा हाथ,
वो तेरे किये वादे या उन पर मेरा विश्वास, 
वो रिमझिम बारिशों में मुलाकात या तेरे लवो का स्वाद,
वो अंधेरी तन्हा सड़क या मेरी तड़प,
वो हमारी मुलाकातो के सिलसले या तेरे किये  फासले,

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 17 - सात्विक त्याग कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेर्जुन। संगत्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।। (गीता 18।9)

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
17 - सात्विक त्याग

कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेर्जुन।
संगत्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।।
(गीता 18।9)

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 14 - सात्विकी श्रद्धा 'मैं एक प्रार्थना करने आया हूँ।' जिन्हें लोग 'सरकार' 'अन्नदाता' कहते थकते नहीं थे, वे नरेश स्वयं आये थे एक कंगाल ब्राह्मण की झोंपड़ी पर। उन्हें भी - जिनकी आज्ञा ही उनके राज्य में कानून थी और जिनकी इच्छा किसी को भी उजाड़-बसा सकती थी, उन्हें उस मुट्ठीभर हड्डी के दुर्बल ब्राह्मण से अपनी बात कहने में भय लगता था। 'क्या कहना है तुम्हें?' न सरकार, न अन्नदाता - वह ब्राह्मण इस प्रकार बोल रहा था जैसे नरेश वह है और जो नरेश उस

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
14 - सात्विकी श्रद्धा

'मैं एक प्रार्थना करने आया हूँ।' जिन्हें लोग 'सरकार'  'अन्नदाता' कहते थकते नहीं थे, वे नरेश स्वयं आये थे एक कंगाल ब्राह्मण की झोंपड़ी पर। उन्हें भी - जिनकी आज्ञा ही उनके राज्य में कानून थी और जिनकी इच्छा किसी को भी उजाड़-बसा सकती थी, उन्हें उस मुट्ठीभर हड्डी के दुर्बल ब्राह्मण से अपनी बात कहने में भय लगता था। 

'क्या कहना है तुम्हें?' न सरकार, न अन्नदाता - वह ब्राह्मण इस प्रकार बोल रहा था जैसे नरेश वह है और जो नरेश उस

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 7 – अमोह 'मेरा पुत्र ही सिंहासनासीन हो, यह मोह है वत्स!' आज सातवीं बार कुलपुरोहित समझा रहे थे मद्राधिपति को - 'सम्पूर्ण प्रजा ही भूपति के लिए अपनी संतान है और उसकी सुरक्षा संदिग्ध नहीं रहनी चाहिये।' मद्रनरेळ के कुमार बाल्यकाल सो कुसंग में पड़ चुके थे। वे उग्रस्वभाव के तो थे ही, दुर्व्यसनों ने उन्हें अत्याधिक लोक-अप्रिय बना दिया था। प्रजा चाहती थी कि उत्तराधिकारी कुमार भद्र हों, जो मद्रनरेश के भ्रातृ-पुत्र थे; किंतु पिता की ममता भी दुर्बल क

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
7 – अमोह

'मेरा पुत्र ही सिंहासनासीन हो, यह मोह है वत्स!' आज सातवीं बार कुलपुरोहित समझा रहे थे मद्राधिपति को - 'सम्पूर्ण प्रजा ही भूपति के लिए अपनी संतान है और उसकी सुरक्षा संदिग्ध नहीं रहनी चाहिये।'

मद्रनरेळ के कुमार बाल्यकाल सो कुसंग में पड़ चुके थे। वे उग्रस्वभाव के तो थे ही, दुर्व्यसनों ने उन्हें अत्याधिक लोक-अप्रिय बना दिया था। प्रजा चाहती थी कि उत्तराधिकारी कुमार भद्र हों, जो मद्रनरेश के भ्रातृ-पुत्र थे; किंतु पिता की ममता भी दुर्बल क

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 9 - श्रद्धा की जय आज की बात नहीं है; किंतु है इसी युगकी क्या हो गया कि इस बात को कुछ शताब्दियाँ बीत गयी। कुलान्तक्षेत्र (कुलू प्रदेश) वही है, व्यास ओर पार्वती की कल-कल-निदनादिनी धाराएँ वही हैं और मणिकर्ण का अर्धनारीश्वर क्षेत्र तो कहीं आता-जाता नहीं है। कुलू के नरेश का शरीर युवावस्था में ही गलित कुष्ठ से विकृत हो गया था। पर्वतीय एवं दूरस्थ प्रदेशों के चिकित्सक व्याधि से पराजित होकर विफल-मनोरथ लौट चुके थे। क्वाथा-स्नान , चूर्ण-भस्म, रस-रसायन कुछ भी तो कर सका होता। नरेश न उच्छृं #Books

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|| श्री हरि: ||
9 - श्रद्धा की जय

आज की बात नहीं है; किंतु है इसी युगकी क्या हो गया कि इस बात को कुछ शताब्दियाँ बीत गयी। कुलान्तक्षेत्र (कुलू प्रदेश) वही है, व्यास ओर पार्वती की कल-कल-निदनादिनी धाराएँ वही हैं और मणिकर्ण का अर्धनारीश्वर क्षेत्र तो कहीं आता-जाता नहीं है।

कुलू के नरेश का शरीर युवावस्था में ही गलित कुष्ठ से विकृत हो गया था। पर्वतीय एवं दूरस्थ प्रदेशों के चिकित्सक व्याधि से पराजित होकर विफल-मनोरथ लौट चुके थे। क्वाथा-स्नान , चूर्ण-भस्म, रस-रसायन कुछ भी तो कर सका होता।

नरेश न उच्छृं


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