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"कहते हैं चुटकी भर सिंदूर तो हर सुहागन अपनी मांग में सजाती है,
पर फौजन अमर सिंदूर लगाती है...
जो भारत मां की रक्षा के लिए अपना सुहाग लुटाती है,
सिंदूर का असली मतलब तो वो नारी ही जान पाती है...
वैसे ही राखी का यह पावन त्यौहार तो हम सब देशवासी मनाते हैं,
राखी की कीमत उन भाई-बहनों से पूछना जनाब,
जो राखी के दिन कई सालों से अपने घर नहीं आ पाते हैं,
क्योंकि वो अपनी बहन नहीं बल्कि पूरे देश की रक्षा का प्रण जो ले रखे होते हैं
और एक बार हिम्मत की सराहना उन बहनों की भी की जाए,
जिन्होंने सरहद की रक्षा पर अपने भाई को भेजा है,
हम बहने तो जरा सी भाई के लगी खरोच से भी परेशान हो जाती है,
कैसे वो डर के साए में दिन-रात जीती होगी,
जब बॉर्डर पर तनाव के हालात होते है,
वह बचपन के किस्से,राखी के धागे उनको भी तो याद आते होंगे,
राखी मनाने का मन उन भाई-बहनों का भी होगा,
पर भाई के इरादे ना हो कमजोर इसलिए कभी क्रोध भी नहीं कर पाती है
और सदा अपने भाई का हौसला बढ़ाती हैं,
वो भाई भी कई बार पोस्ट से मिली राखी को अपनी कलाई पर सजाते हैं,
कुमकुम तिलक को खुद अपने ही हाथों से अपने ललाट पर लगाते हैं,
पर कभी जब राखी नहीं मिल पाती है तो आंखें उनकी भी तो भर आती होगी,
आखिर बहन की चिंता किस भाई को नहीं होगी,
इस राखी उन भाइयों को भी भूल मत जाना,
भगवान से उन भाइयों की लंबी उम्र की फ़रियाद भी सब जरुर लगाना।"