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"अखंड ज्योति सी दीप्ति सर्वोपरि वेदी हो,
नारी तुम अबला नहीं देवी हो,
त्याग तुम्हारा लाचारी नहीं तुम अनसुलझी सी पहेली हो
नारी तुम अबला नहीं देवी हो
तुमसे जीवन ,तुमसे संगम ,पावन सा सुरूप हो तुम ,
तुमसे सृष्टि, तुमसे बृष्टि ,माँ कुष्मांडा का रूप हो तुम,
हार गए सब तीरथ भी ,चरणों में समेटे जीती हो ,
नारी तुम अबला नहीं देवी हो,
शीतलता की पावन मूरत ,शांति का स्वरूप हो तुम ,
पर उपकार का भाव लिए मां ,चंद्रघटा का रुप हो तुम ,
संतों की संगति ,असुरों की बलिवेदी हो ,
नारी तुम अबला नहीं देवी हो,
जब जब संकट आया ,मां कालरात्रि का रूप लिया ,
अबला समझने वालों का, सिर अलग निःसंकोच किया,
तुम चंडी हो ,तुम शक्ति हो ,हर रूप में ठहरी हो,
नारी तुम अबला नहीं देवी हो,
फिर बृंदा के अभिशाप से ,विष्णु भी कहां बच पाये हैं,
सालिगराम बने तुलसी के ,चरणों में जगा बनाये हैं,
सतीत्व के सम्मुख सब हारे ,तुम पूजनीय तुम देवी हो,
नारी तुम अबला नहीं देवी हो,
- deepshi bhadauria-"